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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 120/ पाण्डुलिपि - विज्ञान की विषय-वस्तु और विज्ञानार्थी की दृष्टि से उसकी प्रकृति और प्रतिपाद्य की पद्धति का उल्लेख करता है । डॉ० टैसीटरी ने अपने दृष्टिकोण से उन हस्तलेखों की विस्तृत टिप्पणियाँ लीं, जो ऐतिहासिक महत्त्व के थे । दूसरा रूप है मूल उद्धरणों का ; पांडुलिपि के प्रादि, मध्य और अन्त में ऐसे उद्धरण देने का और इतने उद्धरण देने का कि उनसे उन मूल उद्धरणों के द्वारा कवि या लेखक की भाषा, शैली तथा अन्य अभिव्यक्तिगत वैशिष्ट्यों की ओर दृष्टि जा सके । इसका तीसरा रूप है ग्रंथ में आयी समस्त पुष्पिकाओं को उद्धृत करना । पुष्पिका से कितनी ही महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ मिलती हैं । इस प्रकार विवरण प्रस्तुत करके पांडुलिपि - विज्ञानार्थी उपलब्ध सामग्री के उपयोग के लिए मार्ग प्रशस्त कर देता है । कालक्रमानुसार सूची इनमें से एक कालक्रमानुसार उपलब्ध ग्रंथ सूची भी हो सकती है जो इतिहास के क्षेत्रों में प्रसिद्ध 'The Chronology of Indian History' (भारतीय इतिहास के कालक्रम) के ढंग की हो सकती है। मेरे सामने ऐसी ही एक पुस्तक C. Mabel Duff की लिखी है । उसके प्रारम्भ में दी गई कुछ बातें यहाँ देना समीचीन प्रतीत होता है । पहले तो उन्होंने लिखा है कि "इस कृति में नागरिक तथा साहित्यिक इतिहास की न तिथियों को एकत्र कर व्यवस्थित रूप से तालिकाबद्ध कर देना अभिप्रेत है, जो वैज्ञानिक अनुसंधान से आज के दिन तक निर्धारित की जा चुकी है । इससे यह सिद्ध है कि वे तिथियों ही दी गई हैं जो वैज्ञानिक प्रविधि से पुष्ट होकर निर्विवाद हो गई हैं । दूसरी बात उन्होंने यह बताई है कि भारतीय इतिहास की सामग्री मात्रा में प्रचुर है और अनेक ग्रंथों और निबन्धों में फैली हुई है, अतः इस काल - तालिका में उस समस्त सामग्री का व्यवस्थित करके तो रखा ही गया है, स्रोतों का निर्देश भी है जिससे यह तालिका समस्त सामग्री के स्रोतों की अनुक्रमणिका भी बन गई है । ये दोनों बातें हमें ध्यान में रखनी होंगी। डफ ने इस तालिका में कुछ तिथियाँ (सन् संवत ) इटेलिक्स में दी हैं । इटेलिक्स में वे तिथियाँ दी गई हैं जो पूरी तरह सही नहीं हैं, पर निष्कर्ष से निकाली गई हैं और लगभग सही (Approx mately Correct ) मानी जा सकती हैं । यह प्रणाली भी उपयोगी है क्योंकि इसमें सुनिश्चित और प्रायः निश्चित तिथियों में अन्तर स्पष्ट हो जाता है जो वैज्ञानिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है । इस पुस्तक में से साहित्य सम्बन्धी कुछ उल्लेख उदाहरणार्थ प्रस्तुत करना समीचीन होगा । पुस्तक अंग्रेजी में है; यहाँ अपेक्षित अंशों का हिन्दी रूपान्तर दिया जा रहा है : ई०पू० 3102 शुक्रवार, फरवरी 18, कलियुग या हिन्दू ज्योतिष संवत् का प्रारम्भ'' यह बहुधा तिथियों में दिया जाता है, यह विक्रम संवत से 3044 वर्ष पूर्व का है और शक संवत् से 3179 वर्ष पूर्व का 140 पतंजली, वैयाकरण, 'महाभाष्य' का रचयिता ई०पू० 140-120 में विद्यमान । 'महाभाष्य' के श्रवतररणों से गोल्डस्टुकर एवं भण्डारकर ने पतंजलि की तिथि निर्धारित की है । जिनमे विदित होता है कि वह For Private and Personal Use Only
SR No.020536
Book TitlePandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyendra
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1989
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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