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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पाण्डुलिपि-प्राप्ति और तत्सम्बन्धित प्रयत्न : क्षेत्रीय अनुसन्धान/117 इस प्रकार प्राचार्य नलिन विलोचन शर्मा ने 'हिन्दी के गौण कवियों का इतिहास' शीर्षक अध्याय में '971' कवियों की तालिका दी है। यह तालिका भी उन्होंने प्रकाशित ग्रन्थों के आधार पर प्रकाशित की है । इस सम्बन्ध में उनकी भूमिकावत् यह टिप्पणी उल्लेख्य है : ___"परमानन्द सुहाने तथा इनसे भिन्न बहुसंख्यक कवियों की स्फुट रचनाएँ शिवसिंह सरोज में भी संगृहीत हैं । यह दुर्भाग्य का विषय है कि सरोजकार द्वारा उल्लिखित आकरग्रन्थों में से प्रायः सभी अाज अप्राप्य हैं । परमानन्द सुहाने के हजारा में जिन कवियों के छंद संगृहीत हैं, उनके नामों और समय आदि को, सरोज पर अवलम्बित आगे दी गई तालिका से मिला कर हिन्दी के गौण कवियों के अध्ययन के निमित्त आधार-भूमि तैयार की जा सकती है। इस तालिका में सरोजकार द्वारा किये गये नामों तथा समय के विषय में ग्रियर्सन तथा किशोरीलाल गोस्वामी की टिप्पणियों का भी उल्लेख है।" प्रश्न यह उठता है कि क्या मुद्रित और उपलब्ध ग्रन्थों के आधार पर ऐसी सूची प्रस्तुत करना पांडुलिपि विज्ञानार्थी के क्षेत्र में आता है ? आपत्ति सार्थक हो सकती है। पर पांडुलिपि विज्ञानार्थी को अपने भावी कार्यक्रम की दृष्टि से या किसी परिपाटी को या प्रणाली को हृदयंगम करने के लिए इनका ज्ञान आवश्यक है । हस्तलेखों में शतशः ऐसे संग्रह ग्रन्थ मिलेंगे जो 'हजारा' की भाँति के होंगे । उनके कवि और काव्य को तालिकाबद्ध करने के लिए यही प्रणाली काम में लायी जा सकती है जो प्राचार्य नलिन विलोचन शर्मा ने यहाँ दी है। तालिका का रूप : अब इस तालिका के रूप को समझने के लिए कुछ उदाहरण दिये जाते हैं : (1) प्रकबर बादशाह स०, दिल्ली, 1584 वि०, ग्रि० कि०, 1556-1605 । (2) अजबेस (प्राचीन) स०, 1570, वि० ; ग्रि०, कि०, इस नाम का कवि कोरी कल्पना । (5) अवधेश ब्राह्मण स०, वदरबारी, बुन्देलखण्डी, 1901 वि.; ग्रि०, 1840 ई० में उप० । (6) अवधेश ब्राह्मण स०, भूपा के बुंदेलखंडी, 1835 वि०; ग्रि०, जन्म 1832 ई० । कि० के अनुसार दोनों अवधेश ब्राह्मण एक ही हैं; रचनाकाल 1886--1917 ई० है; 1838 ई० जन्मकाल नहीं है __(787) लक्ष्मणशरण दास कि०, “इस कवि का अस्तित्व ही नहीं है" सरोज में उद्धृत पद में 'दास सरन लछिमन सुत भूप' का अर्थ है--"यह दास लछिमन सुत अर्थात् वल्लभाचार्य की शरण में है।" (806) शम्भु कवि स०, राजा शम्भुनाथ सिंह सुलंकी, सितारागढ़वाले 1, 1738 वि० नायिका भेद; आचार्य शर्मा यहाँ 'गोस्वामी' भूल से लिख गए हैं । यह 'गुप्त' है। शर्मा, नलिन विलोचन' साहित्य का इतिहास-दर्शन. पृ. 161 । 2. For Private and Personal Use Only
SR No.020536
Book TitlePandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyendra
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1989
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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