SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 110
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पांडुलिपि-प्राप्ति और तत्सम्बन्धित प्रयत्न : क्षेत्रीय अनुसधान/83 पहला पहल पुस्तक के सामान्य रूप-रंग-विषयक सूचना से सम्बन्धित होता है। पुस्तक देखने में सुन्दर है, अच्छी है, गन्दी है, बुरी है, मटमैली है, जर्जर है, जीर्ण-शीर्ण है, आदि । या भारी-भरकम है, मोटी है, पतली है। वस्तुतः इस रूप में पुस्तक का विवरण कोई अर्थ नहीं रखता, उपयोगी भी नहीं है। हाँ, यदि सुन्दर है या गन्दी है न लिख कर उसके बाह्य रूप-रंग का परिचय दे दिया जाय तो उसे ठीक माना जा सकता है, यथा, ग्रंथ का कागज गल गया है, उस पर स्याही के धब्बे हैं, चिकनाई के धब्बे, हल्दी के दाग हैं, रेतमिट्टी, धुएँ प्रादि से धूमिल हैं, कीड़े-मकोड़ों ने, दीमक ने जहाँ-तहाँ खा लिया है, पानी में भीगने से पुस्तक लिद्धड़ हो गयी है, आदि । पुस्तक के रूप का दूसरा पहलू है, 'प्राकार-सम्बन्धी' । यह बहुत महत्त्वपूर्ण है, और सभी विवरणों में इसका उल्लेख रहता है । इसमें ये बातें दी जाती हैं : (क) पुस्तक का प्रकार : प्रकार नामक अध्याय में इनकी विस्तृत चर्चा है। आजकल प्रकारों के जो नाम-विशेष प्रचलित हैं, वे डॉ० माहेश्वरी ने अपने ग्रन्थ में दिये हैं, वे निम्नलिखित हैं : . 1. पोथी-प्रायः बीच से सिली, प्राकार में बड़ी । 2. गुटका-पोथी की भाँति, पर छोटा : 6X4.5 इंच के लगभग । .. बहीनुमा पुस्तिका-21X4:25" इंच । अधिक लम्बी भी होती है । 4. पुस्तिका : आकार 7.5"X525" के लगभग । पोथा। · 6. पत्रा (खुले पत्रों या पन्नों का) 7. पानावली (विशेष विवरण 'प्रकार' शीर्षक अध्याय में देखिये)। (ख) पुस्तक का कागज या लिप्यासन : सामान्यत: लिप्यासन के दो स्थूल भेद किये गये हैं : (1) कठोर लिप्यासन-मिट्टी की ईंटें, शिलाएँ, धातुएँ, आदि इस वर्ग में आती हैं । धर्म, पत्र, छाल, वस्त्र, कागज आदि (2) कोमल माने जाते हैं। मिट्टी की ईंटें, शिला, धातु, चर्म, छाल, ताड़-पत्र आदि में से पत्र, पत्थर, धातु, चर्म, छाल, वस्त्र आदि के प्रकारों को तो 'जनक' कह सकते हैं। क्योंकि इनसे लिप्यासन जन्म लेते हैं। इनमें इनका प्रकृत रूप विद्यमान रहता है। उधर कागज पूरी तरह 'जनित' या मानव निर्मित है। यह विविध वस्तुओं से बनाया जाता है। कागज के भी कितने ही प्रकार होते हैं : यथा-देशी कागज, सामान्य, मोटा, पतला, कुछ मोटा, मशीनी और ये विविध रंगों के-भूरा, बादामी, पीला, नीला प्रादि । इस सम्बन्ध में मुनि पुण्यविजय जी ने जो उल्लेख किया है वह ध्यातव्य है : - "कागज ने माटे आपणा प्राचीन संस्कृत ग्रन्थामां कागद अने कद्गल शब्दों वपराग्रेला जोवा माँ आवे छे । जेम प्राजकाल जुदा जुदा देशों में नाना मोटा, झीणा जाड़ा, सारा नरसा आदि अनेक जातना कागलो बने छे तेम जून जमाना थी मांडी आज पर्यन्त आपणा देशना हरेक विभाग माँ अर्थात् काश्मीर, दिल्ली, बिहारना पटणा शाहाबाद आदि जिल्लौं , कानपुर, घोसुडा (मेवाड़), अहमदाबाद, खंभात, कागजपुरी (दौलताबाद पासे) प्रादि इनके स्थली माँ पोत पीतानी खपत अने जरूरी आतना प्रमाणमां काश्मीरी, मुगलीया, अरवाल, साहेवखानी, अहमदाबादी, खंभाती, शणीया, दौलताबादी आदि जात जातनों कॉगलो बटता हत। अने हनु पण घणे ठेकाणे बने छ, ते मांथी जेजे जे सारा, टकाऊ For Private and Personal Use Only
SR No.020536
Book TitlePandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyendra
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1989
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy