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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पांडुलिपि-प्राप्ति और तत्सम्बन्धित प्रयत्न : क्षेत्रीय अनुसन्धान 81 गाँव 'मुकाम' के श्री बदरीराम थापन को प्रति होने से इसका नाम ब० प्रति रखा गया है । इसमें ये रचनाएं हैं(क) अौतार पात का बाण, बोल्होजी कृत । छन्द संख्या 140। (ख) गूगलीय की कथा, बील्होजी कृत । छन्द संख्या 86 । (प्रथम रचना का अन्तिम और दूसरी के प्रारम्भ का एक पन्ना भूल से शायद जिल्द बांधते समय, 'कथा जैसलमेर की' के बीच में लग गया है ।) (ग) सच अषरी विगतावली, बील्होजी कृत । छन्द संख्या-48 । (घ) कथा दूरणपुर की, बील्होजी कृत । छन्द संख्या-60 । (क) व.था जैसलमेर की, बील्होजी कृत । छन्द संख्या-89 (च) कथा झोरड़ा की, बील्होजी कृत । छन्द संख्या-33 । (छ) कथा ऊदा अतली की, केसौजी कृत । छन्द संख्या-77 । (ज) कथा सँसे जोषागी की, कैसौदासजी कृत । छंद संख्या-106 । (झ) कथा चीतोड़ की, कैसौदासजी कृत । छंद संख्या-130 । (न) कथा पुल्हेजी की, बील्होजी कृत । छंद संख्या-25 । (ट) कथा असकंदर पातिसाह की, केसौदासजी कृत । छंद संख्या-191 । (8) कथा बाल-लीला, कैसीदासजी कृत । छंद संख्या-61 । (ड) कथा ध्रमचारी तथा कथा-चेतन, सूरजनदास जी कृत । छंद संख्या-115 । (ढ) ग्यांन महातम, सुरजनदासजी कृत । छंद संख्या-199 । सभत् 1832 मिती जेठ बद 13 लिषते वरिणबाल हरजी लिषावतं अतित रासाजी लालाजी का चेला पोथी गाँव जाषांणीया मझे लिषी छै सुभ मसतु कल्याण ।। कथा चतुरदस में लिषी अरज करू कर धारि । घट्य बधि अक्षर जो हुवै । सन्तो ल्यौह सुधारि ।।1।। (ण) पहलाद चिरत, कसौदासजी कृत । छन्द संख्या-595। (त) श्री वायक झांभजी का (सबदवारणी) पद्य प्रसंग समेत । सबद संख्या-1171 आदि का अंश-श्री परमात्मनेनमः श्री गणेसायनमः । लिषते श्री वायक झांभजी का ॥ कार्य करवं जल रष्या। सबद जगाया दीप । वांभण कूपरचा दिया । असा असा अचरज कीप ||1|| जो बूझ्या सोई कह्या । अलष लषाया मेव ।। घोषा सवै गमाईया। जदि सबद कहया अभदेव ।।2।। शबद ।। गुर चीन्हो गुर चिन्ह पिरोहित ।। गुर मुष धरम वषाणीं ।। अन्त का अंश : भलीयाँ होइ त मल बुधि आवे । बुरिया बुरि कमावे ।।117।। संवत 1833 ॥ तिथ तीज भादवो सुदि । सहर गोर मध्ये लिषते। वषत सागर तटे । लिषावतू रासा प्रतीत झांभापंथी। शबद झांभजी का सपूरण ।। लिषतेतू तुलीछीदास ।। झांभार्पथी केसोदास जी का चेला । केसोदास जी कालीपोस । बाबाजी नूर जी का सिष । नूरजी राजजी का सिष । पैराज जी जसाणी । आगे बाबा झांभाजी ताई पीढ़ी में सु हम जांणत भी नांही । जिसी मुसाहिब जी की लिपति थी तिसी लिषी छ यथार्थ प्रिति For Private and Personal Use Only
SR No.020536
Book TitlePandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyendra
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1989
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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