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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 78 / पाण्डुलिपि - विज्ञान www.kobatirth.org इस विवरण में 'क' के द्वारा तो ग्रन्थ का क्रमांक दिया गया है । (ख) में आकार या साइज दी गई है --- 10 इंच चौड़ी X 11 इंच लम्बी (ग) में विशिष्ट आकार बताया गया है - इसमें पहले तो यह उल्लेख है कि यह पुस्तकाकार है । पुस्तकाकार से अभिप्राय है कि सिली हुई पुस्तक है, पत्राकार नहीं कि जिसमें पत्र अलग-अलग रहते हैं । फिर, कुछ अन्तरंग परिचय दिया है कि पुस्तक अपूर्ण है । फिर ऊपरी दशा बताई गई है। 'बहुत बुरी दशा' | दशा का यह वर्णन लेखक ने अपनी रुचि के रूप में किया है। 'बुरी दशा' की व्याख्या नहीं दी है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (घ) में आन्तरिक विवरण है-- पहले इसका स्थूल पक्ष है । इस स्थूल पक्ष में 'पन्नों की दशा' बताई गई है। इसमें जिन बातों का उल्लेख किया जाता है वे हैं : पन्ने गायब हैं क्या ? कितने और कहाँ कहाँ से गायब हैं ? क्या कुछ पन्ने को छोड़ दिये गये हैं ? कोरे छोड़े गये हैं ? अब कुल कितने पन्ने ग्रन्थ में हैं ? ग्रन्थ की वस्तु को ग्रहण करने में 'कुछ पड़ी है कितने और कहाँ पन्ने क्या पन्ने की ऐसी दशा ? यह अन्तिम प्रश्न स्थूल पक्ष से सम्बन्धित नहीं है । यह तो अन्तरंग पक्ष अर्थात् ग्रंथ की वस्तु से सम्बन्धित है । वस्तुतः यह स्थूल और अन्तरंग को जोड़ने का प्रयत्न भी करता है । इसी दृष्टि से यह प्रश्न भी यहाँ दिया गया है । (ङ) अब अन्तरंग पक्ष में निम्नलिखित बातों की जानकारी दी गई है : पहली बात तो यही बतायी गयी है कि पन्नों के गायब हो जाने या नष्ट हो जाने का क्या प्रभाव पड़ा है ? यह सूचना दी जाती है कि 'इन पृष्ठों में क्या था अब नहीं बताया जा सकता, अन्य आवश्यक सूचनाएँ भी नहीं मिल सकतीं ।' (च) अन्तरंग पक्ष में ही यह जानकारी अपेक्षित होती है कि पुस्तक में एक ही लिखावट है या कई लिखावटें हैं । (छ) क्या अध्याय - क्रम ठीक है, या प्रस्तव्यस्त और प्रक्रम (रासी में अध्याय को 'प्रस्ताव' या 'सम्यो' का नाम दिया गया है ।) उदाहरण : रुक्मिणी मंगल (ज) ग्रन्थ में लिपिकाल की सूचनाएँ या अन्य सूचनाएँ क्या-क्या हैं ? ये सभी बातें आन्तरिक विवरण के अन्तरंग पक्ष से सम्बन्धित हैं । विवरण- लेखक उपलब्ध सामग्री के आधार पर अनुमानाश्रित अपने निष्कर्ष भी दे सकता है । एक और विवरण लें : 327 - रुक्मिणी मंगल, पदम भगत कृत । (क) प्रत्येक राग-रागिनी के अन्तर्गत प्राए छन्दों की संख्या पृथक्-पृथक् है । (ख) पत्र संख्या - 83 है । (ग) अपेक्षाकृत मोटे देशी कागज पर है । (घ) श्राकार 11x5.5 इंच का है । (ङ) हाशिया - दाएँ - एक इंच, बाँए-एक इंच है । For Private and Personal Use Only
SR No.020536
Book TitlePandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyendra
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1989
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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