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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्त्रीय मूल श्रादशशानाला पयट्टमाणस्स ।।८२।। णाऊण य तब्भावं जह होइ इमस्स भाववुड्डित्ति । दाणाबदेसाओ अणेण तह एत्थ जइयव्वं ।।८३।। णाणाइगुणजओ द्वितीयपश्चा खलु णिरभिस्संगो पयत्थरसिगो य। इय जयइ न उण अण्णो गुरूवि एयारिमो चेव ।।८४॥ धण्णाणमेयजोगो धण्णा चेहँति एयणी-2 शकम् । सूत्रम् । ईए । धण्णा बहु मण्णन्ते धग्णा जे ण प्पदुसन्ति ।।८५|| दाणमह जहासत्ती सद्धासंवेगकमजुयं णियमा । विहवाणुमारओ तह जणो॥६॥ वयारो य उचिओत्ति ।। ८६ ।। अहिगयगुणसाहम्मियपीइबोहगुरुभत्तिवुड्डी य। लिंगं अव्यभिचारी पइदियहं सम्मदिक्खाए ।।८७|| परिसुद्धभावओ तह कम्मखओवसमजोगओ होइ । अहिगयगुणवुड्डी खलु कारणओ कजभावेण।।८८॥ धम्मम्मि य बहुमाणा पहाणभावेण तदगुरागाओ । साहम्मियपीतीए उ हंदि वुड्डी धुवा होइ ।।८९ । विहियाणुढाणाओ पाएण सब्बकम्मखओवसमा । णाणावरणावगमा णियमेणं बोहबुड्डित्ति ।।९०॥ कल्लाणसंपयाए इमीऍ हेऊ जओ गुरू परमो। इय बोहभावओ चिय जायइ गुरुभत्तिबुड्डीबि ।।९१॥ इय कल्लाणी एमो कमेण दिक्खागुणे महासत्तो । सम्मं समायरन्तो पावइ तह परमदिक्खंपि ।।९२।। गरहियमिच्छायारो भावणं जीवमुत्तिमणहविडं। णीसेसकम्ममुक्को उवेइ तह परममुनिपि।।९३॥ दिक्खाविहाणमेयं भाविजतं तु तन्तणीतीए। सइअपुणबंधगाणं कुग्गहविरह लहुं कुणइ ॥९४|| इति दीक्षापश्चाशकम् ।। नमिऊण वद्धमाणं सम्मं चोच्छामि वंदणविहाणं । उकोसाइतिभेयं मुद्दाविष्णासपरिसुद्धं ॥ ९५ ॥ णवकारेण जहण्णा दंडगथुइजुयल मज्झिमा णेया। संपुष्णा उक्कोसा विहिणा खलु वंदणा तिविह। ।। ९६ ॥ अहवावि भावभेया ओघेण अपुणबंधगाईणं। सब्यावि तिहा णेया सेसाणमिमी ण समए ।। ९७ ॥ पारण तिब्वभावा कुणइ ण बहु मणई भवं घोरं । 3 उच्चियहिई च सेवइ सव्वत्थवि अपुणबंधोति ।। ९८ ॥ सुस्मस धम्मराओ गुरुदेवाणं जहासमाहीए। वेयावच्चे णियमो सम्मद्दिहिस्स ॥६॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020535
Book TitlePanchashak Mulam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1928
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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