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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit सप्ततिकायां संवेध: पञ्चसंग्रहे कर्मप्रकृती श्रीचन्द्र-R॥९६८ ॥ तिरिउदए नव भंगा जे ते सव्वे असण्णिपज्जते । नारयसुरचउ भंगा रहिया इगविगलदुविहाणं ॥ ९६९ ।। अस्सण्णि हैं। र्षिकृते | अप्पज्जत्ते तिरिउदए पंच जह य तह मणुए। मणपज्जत्ते सव्वे इयरे पुण दस उ पुच्चुत्ता ॥९७० ॥ बन्धोदयसंताई पुण्णाई सनिणो उ मोहस्स । वायरविगलासण्णिसु पज्जेसु दु आइमा बंधा ।। ९७१ ॥ अट्ठसु बावीसोच्चिय बन्धो अट्ठाइ उदय तिन्नव । सत्तगजुया उ पंचसु अडसत्तछचीससंतम्मि ॥ ९७२ ॥ सण्णिामि अट्ठ असण्णिम्मि छाइमा तेऽट्ठबीस परिहीणा । पज्जत्तविगल॥३४॥ बायर सुहुमेसु तहा अपज्जाणं ।। ९७३ ।। इगवीसाई दो चउ पणउदयाऽपज्जसुहुमबाऽराणं । सण्णिस्स अचउवीसा इगछडवीसाइसेसाण ॥ ९७४ ॥ तेरससु पंच संता तिण्णि धुवा अडसीइ बापउई । सण्णिस्स होति बारस गुणठाणकमेण नामस्स ॥ ९७५ ॥ बझंति सत्त अट्ठ य नारयतिरिसुरगईसु कम्माई । उद्दीरणावि एवं संतोइण्णाई अट्ठ तिसु ॥ ९७६ ॥ गुणभिहिय मणुएसु सग| लतसाणं च तिरिय पडिवक्खा । मणजोगी छउमा इव कायवइ जहा सजोगीणं ॥ ९७७ ॥ वेई नवगुणतुल्ला तिकसाइवि लोभे | दसगुणसमाणो । सेसाणिवि ठाणाई एएण कमेण नेयाणि ।। ९७८ ॥ सत्तरसुत्तरमेगुत्तर तु चोहत्तरी उ सगसयरी । सत्तट्ठी तिग| सट्ठी गुणसट्ठी अट्ठवण्णा य ॥९७९ ॥ निदादुगे छवण्णा छव्वीसा तीस बंधविरमम्मि । हासरईभयकुच्छा विरमे बावीसऽपूब्वम्मि | ॥ ९८० ॥ पुंवेयकोहमाइसु अबज्झमाणेसु पंच ठाणाणि । बारे सुहुमे सत्तरस पगतीओ सायमियरेसु ॥ ९८१॥ मिच्छो नरएसु | सयं छमवई सासणो सयरि मीसो । बावतरं तु सम्मो चउराइसु बंधति अतित्था ॥ ९८२ ।। मणुयदुगुच्चागोयं भवपञ्चयओ न होइ चरिमाए । गुणपच्चयं तु बज्झइ मणुआउन सब्वहा तत्थ ।। ९८३ ॥ सामण्णसुरा जोग्गा आजोइसिया न बंधहि सतित्था । इगिथावरायवजुया सणकुमारा न बंधति ९८४ ॥ तिरितिगउज्जोवजुआ आणयदेवा अणुत्तरसुरा उ । अणमिच्छणीयभग थीण-14 AHARHAAL ॥३४॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020535
Book TitlePanchashak Mulam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1928
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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