SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 250
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ASAE जीमसमासे 8 सजोगीणं ॥ १४८ ॥ पढमाए असंखेज्जा सेढीओ सेसियासु पुढवीसु । सेढी असंखभागो हवंति मिच्छा उ नेरइया ॥ १४९ ॥ जीव-गुण३ कालद्वारा | तिरिया हुंति अणंता पयरं पंचिंदिया अवहरंति । देवावहारकाला असंखगुणहीण कालणं ॥ १५० ॥ पढमंगुलमूलस्सासंखतमो है समासानां | सूइसेढिआयामो । उत्तरविउब्बियाणं पज्जत्तयसनितिरियाणं ।। १५१ ॥ संखेज्जहीणकालेण होइ पज्जत्ततिरियअवहारो । संखेज्ज॥२४६॥ मानं गुणेण तओ कालेण तिरिक्खअवहारो ॥ १५२ ।। संखेज्जा पज्जत्ता मणुयाऽपज्जत्तया सिया नत्थि । उकोसेणं जइ भवे सेढीए असंखभागो उ ।।१५३।। उक्कोसेणं मणुया सेटिं च हरति रूवपक्खित्ता। अंगुलपढमयतियवग्गमूलसंवग्गपलिभागा ॥१५४|| सेढीओ असंखेज्जा भवणे वणजोइसाण पयरस्स । संखेज्जजोयणंगुलदोसयछप्पन्नपलिभागो ।। १५५ ।। सकीसाणे सेढीअसंख उवरिं असं-12 खभागो उ । आणयपाणयमाई पल्लस्स असंखभागो उ ॥१५६॥ सेढीसूइपमाणं भवणे घम्मे तहेव सोहम्मे । अंगुलपढम बियतियस| मणंतरवग्गमूलगुणं ॥१५७।। बारस दस अट्ठव य मूलाई छत्ति दुन्नि नरएसुं । एक्कारस नव सत्त य पणग चउक्कं च देवेसु ।।१५८॥ | वायरपुढवी आऊ पत्तेयवणस्सई य पज्जत्ता । ते पयरमवहरिजंसु अंगुलासंखभागेणं ॥ १५९ ॥ पज्जत्तबायराणल असंखया हुँति आवलियवग्गा । पज्जत्तवायुकाया भागो लोगस्स संखेज्जो ॥ १६० ॥ आवलिबग्गाऽसंखा घणस्स अंतो उ बायरा तेऊ। | पज्जत्तबायराणिल हवन्ति पयरा असंखेज्जा ।। १६१ ॥ सेसा तिण्णिवि रासी वीसु लोया भवे असंखेज्जा । साहारणा उ चउसुवि हावीस लोया भवेष्णता ।। १६२॥ वायरवाउ समग्गा भणिया अणुसमयमुत्तरसरीरा । पल्लासंखियभागेणध्वहीरंतित्ति सम्बयिका 3॥ १६३ ।। बेईदियाइया पुण पयरं पज्जत्तया अपज्जत्ता । संखेज्जा संखेज्जेणगुलभागेणध्वहरेज्जा ॥१६४।। मणुय अपज्जत्ताऽऽ ॥२४६॥ शहार मिस्सवेउवि छेय परिहारा । सुहुमसरागोवसमा सासण मिस्सा य भयणिज्जा ॥ १६५ ।। एवं जे जे भावा जहिं जहिं हुंति E For Private and Personal Use Only
SR No.020535
Book TitlePanchashak Mulam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1928
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy