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उपदेश |
मालायां
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निरुज्जमो अ तो संजमो कत्तो ? ॥ ३४५ ॥ मा कुणउ जइ तिगिच्छं, अहियासेऊण जइ तरह सम्मं । अहियासितस्स पुणो, जह
| गुप्तयः, +से जोगा न हायं.ते ॥ ३४६ ॥ निच्चं पवयणसोहाकराण चरणुज्जुआण साहणं । संविग्गविहारीणं, सव्वपयत्तेण कायब्ध ॥३४॥ स्वाध्यायः,
हीणस्सऽवि सुद्धपरूवगस्स नाणाहियस्स कायब्वं । जणचित्तग्गहणत्थं, करिति लिंगावससेवि ॥ ३४८ ॥ दगपाणं पुप्फकलं, विनयः अणे सणिज्जं गिहत्थकिच्चाई । अजया पडिसेवंती, जइवेसविडबगा नवरं ॥ ३४९ ॥ ओसनया अबाही, पवयणउम्भावणा य यतना, बाहिफलं । ओसनोऽपि वरपिह पवयणउब्भावणापरमो ॥३५॥ गणहीणो गुणरयणायरेम जो कुणइ तल्लमप्पाणं। सुतवास्सिणो मायावृत्य, अहीलइ, सम्मत्तं कोमलं तस्स ॥ ३५१ ॥ ओसबस्स गिहिस्सव, जिणपवयणतिब्बभावियमइस्स । कोरइ जे अणवज्ज, दढसम्म- |
पाश्वेस्थत्वं तस्सऽवस्थासु ।। ३५२ ॥ पासत्थोसन्नकुसीलनीयसंसत्तजणमहाच्छंदं । नाऊग तं मुविहिया, सवपयसेण वज्जति ।। ३५३ ॥ | बायालमेसणाओ, न रक्खइ धाइसिज्जापेंडं च । आहारेइ अभिक्ख, विगईओ सन्निहि खाई ।। ३५४ ।। सरप्पमाणभोजी, आहारई | अभिनखमाहारं । न य मंडलीइ भुंजइ, न य भिक्खं हिंडई अलसो ॥ ३५५ ।। कीवो न कुणइ लोअं, लज्जई पडिमाइ जल्लमवणेइ । सोवाहणो अ हिंडइ, बंधइ कडिपट्टयमकज्जे ॥ ३५६ ॥ गाम देसं च कुलं, ममायए पीठफलगपडिबद्धो । घरसरणेसु पसज्जइ, विहरइ य सकिंचणो रिको ॥ ३५७ ॥ नहदंतकेसरोमे, जमइ उच्छोलधोअणो अजओ । वाहेइ य पलियंकं, अइरेगपमाणमत्थुरइ
॥ ३५८ ॥ सोवई य सब्बराई, नीसट्टमचेयणी न वा झरइ । न पमज्जतो पविसइ, निसिहीयावस्सियं न करे ॥ ३५९ ॥ पाय पहे. Vान पमज्जइ, जुगमायाए न सोहए इरियं । पुढवादगअगाणिमारुअवणस्सइतससु निरविक्खा ।। ३६० ॥ सव्वं थो उबहि, न पेहए
न य करेइ सज्झायं । सद्दकरो झंझकगे, लहुओ गण प्रयतत्तिल्लो ॥ ३६१ ॥ खिताइयं भुंजइ, कालाइयं तहेब अविदिनं । गिण्हइ
का॥२२७॥
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