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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मरागद्वेषों ८ अक्खरकोउआएमभूइकम्मेहिं । करणाणुमोअणाहि अ, साहुस्स तवक्खओ होइ ॥११५ ॥ जह जह कीरइ संगो, तह तह पसरो साधुत्वं खणे खणे होइ । थोवोवि होइ बहुओ, न य लहइ धिई निरंभंतो ॥११६॥ जो चयइ उत्तरगुणे, मूलगुणेऽवि अचिरण सो चयइ । उपदेश जह जह कुणइ पमायं, पिल्लिज्जइ तह कसाएहि ॥११७॥ जो निच्छएण गिण्हइ, देहच्चाएविनय धिई मुअइ । सो साहेइ सकज्ज, मालायां वजह चंदवडिंसओ राया ॥ ११८ ॥ सीउण्हखुप्पिवासं, दुस्सिज्जपरीसहं किलेसं च । जो सहइ तस्स धम्मो, जो धिइमं सो तवं | चरइ ।। ११९ ॥ धम्ममिणं जाणंता, गिहिणोवि दढबया किमुअ साहू । कमलामेलाहरणे, सागरचंदेण इत्थुवमा ॥ १२० ॥ देवेहि कामदेवो, गिहीवि नवि चालिओ (चाइओ) तवगुणेहिं । मत्तगयंदभुयंगमरक्खसघोरट्टहासेहिं ॥ १२१ ॥ भोगे अभुंज॥२१३।। माणावि केइ मोहा पडंति अहरगई । कुविओ आहारत्थी, जत्ताइ जणस्स दमगुग्ध ।। १२२ ।। भवसयसहस्सदुलह, जाइजरामर णसागरुत्तारे । जिणवयणम्मि गुणायर ! खणमवि मा काहिसि पमायं ॥ १२३ ।। जं न लहइ सम्मत्तं, लणवि जं न एइ संवेग ।। विसयसुहेसु य रज्जइ, सो दोसो रागदोसाणं ॥ १२४ ॥ तो बहुगुणनासाणं, सम्मत्तचरित्तगुणविणासाणं । न हु वसमागंतव्वं, रागहोसाण पावाणं ।। १२५ ॥ नवि तं कुणइ अमित्तो, सुदृवि सुविराहिओ समत्थोऽवि । जं दोऽवि अणिग्गहिया, करंति रागो अM दोसो अ ॥ १२६ ॥ इहलोए आयासं अजसं च कति गुणविणासं च । पसवंति अ परलोए, सारीरमणोगए दुक्खे ॥१२७॥ धिद्धी अहो अकज्ज, जं जाणतोऽवि रागदोसेहिं । फलमउलं कडुअरसं, तं चेत्र निसेवए जीवो ॥१२८ ॥ को दुक्खं पाविज्जा? ॥२१३।। | कस्स व सुक्खे हि विम्हओ हुज्जा को व न लभिज्ज मुक्खं ? रागद्दोसा जइ न हुज्जा ॥१२९॥माणी गुरुपडिणीओ, अणस्थभरिओ AREER15 For Private and Personal Use Only
SR No.020535
Book TitlePanchashak Mulam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1928
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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