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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दशशाखाय र अण्णाणपमाददोसओ नेयं । जं दीहा कायठिई भणिया एगिदियाइणं ॥ १६॥ अस्संखोसप्पिणिसप्पिणीउ एगिदियाण उ चउण्हें । मनुष्यभव उपदेश पदे ता चेव ऊ अर्णता वणस्सईए उ बोध्धव्वा ॥ १७॥ एसा य असइ दोसासेवणओ धम्मबज्झचित्ताणं । ता धम्मे जइयव्वं सम्म सइ विनयागमो धीरपुरिसेहिं ॥१८॥ सम्मत्तं पुण इत्थं सुत्तणुसारण जा पवित्ती उ । सुत्तगहणमि तम्हा पवत्तियव्वं इहं पढमं ॥१९॥ देवी दाहल ॥१४६|| एगत्थेभप्पासाय अभय वणगमणं । रुक्खुवलद्धहिवासण बंतरतोसे सुपासाओ।। २० ॥ उउ समवाए अंबग अकाल दोहलग पाण पत्तीए । विज्जाहरणं रण्णा दिट्ठो कोवोऽभयाणत्ती ॥ २१ ॥ चोरनिरूवण इंदमह लोग नियरंमि अप्पणा ठिअओ । चोरस्स कए नट्टिय बहकमारिं परिकहिंसु ॥२२॥ काइ कुमारी पइदेवयत्थमारामकसमगह मोक्खो । नवपरिणीयम्भुवगमपइकहण विसज्जणा | | गमणं ॥२३।। तेणगरक्खसदसण कहण मुयणमेव मालगारेणं । अक्खय पञ्चागय दुकरंमि पुच्छाइ नियभावो ॥२४॥ इसालुगाइणाणं लाचारग्गह पुच्छ विज कहणाओ। दंडो तदाणाऽऽसण भूमी पाणस्सऽपरिणामो।। २५ ॥ रण्णो कोबो एयं वितहं अभय विणउत्तम | पाणस्स । आसण भूमी राया परिणामो एवमण्णत्थ ॥२६॥ विहिणा गुरुविगएणं एवं चिय मुत्तपरिणती होइ । इहरा उ मुत्तगहण विवज्जयफलं मुणेयव्वं ॥ २७ ॥ समणीयपि जरुदये दोसफलं चव हंत सिद्धमिण । एवं चिय मुत्तपिहु मिच्छत्तजरोदए णेयं ॥२८॥ | गुरुणावि मुत्तदाणं विहिणा जोग्गाण चेव कायचं । सुत्ताणुसारओ खलु सिद्धायरिया इहाहरणं ॥ २९ ॥ चंपा धण सुंदरि तामलित्ति बसुणंद सङ्घसंबंधो। सुंदरिणंदे पीती समए परतीरमागमणे ॥ ३० ॥ जाणविपत्ती फलग तीरे उदगत्थि सीह वाणरए। सिरिउररण्णो सुंदरि गह रागे निच्छ कह धरणा ॥३|| चित्तविणोए वाणरणटुंमी जाइसरण संवरणं । देवपरिच्छा निय रूव कहण | मा॥१४६॥ ₹रण्णो उ संबोही ।। ३२ ।। सावत्थी सिद्धगुरु विउब दिक्खा परिच्छ सामइए। आलावगा णिमित्ते अदाण कोवेतरा देवे ॥३शा। For Private and Personal Use Only
SR No.020535
Book TitlePanchashak Mulam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1928
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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