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धर्म |ता चरमए च्चिय खओ झाणविसेसातो तीरए काउं । चिरसंचियपि हु तण खणेण दावानलो दहति ॥ ८४९ ॥ एवं अवग्गहातो ज्ञान भेद संग्रहणीदाआरम्भ इहेगमेव नाणंति । मिच्छत्तमेव अहवा णो खलु सामन्नध्वेक्खाए ||८५०|| कमकरणे पुण भणियं पओयणं दिसमयसारेहिं ।।ला
| आभिणियोहादीण वोच्छामि तय समासेणं ॥ ८५१ ॥ जं सामिकालकारणविसयपरोक्खत्तणोहं तुल्लाई । तब्भावे सेसाणि य तेणा-1 ॥११॥
| इए मातिसुताई ॥ ८५२ ।। मतिपुव्वं जेण सुयं तेणादीए मती विसिट्ठो वा । मतिभेदो चेव सुतं तो मतिसमणंतरं भणियं ॥८५३ ॥13 कालविवज्जयसामित्तलाभसाहम्मतोऽवही तत्तो । माणसमेत्तो छउमत्थविसयभावादिसामन्ना (धम्मा) ।। ८५४ ।। अंत केवल-| मुत्तमजतिसामित्तावसाणलाभातो । एत्थं च मइसुयाई परोक्वमितरं च पच्चक्खं ।। ८५५ ॥
चारित्तं परिणामो जीवस्स सुहो उ होइ विन्नेओ । लिंगं इमस्स भणियं मूलगुणा उत्तरगुणा य ।। ८५६ ॥ पाणाइवातविरमणहै मादी णिसिमत्तचिरतिपजंता। समणाणं मूलगुणा पन्नत्ता वीयरागहिं ।। ८५७ ॥ सुहमादीजीवाणं सब्वेसिं सब्बहा सुपणिहाणं ।
पाणाइवायविरमणमिह पढमो होइ मूलगुणो ।। ८५८ ॥ कोहादिपगारेहिं एवं चिय मांसविरमणं वितिओ । एवं चिय गामादिसु अप्पबहुविवज्जणं तइओ ।। ८५९॥ दिव्वादिमेहुणस्स य विवज्जणं सबहा चउत्थो उ । पंचमगो गामादिसु अप्पबहुविवज्जणेमेव X
१८६० ॥ असणादिभेदभिन्नस्साहारस्सा चउब्धिहस्सावि । निसि सब्बहा विरमणं चरमो समणाण मूलगुणो ॥ ८६१ ।। हिंसायां केइ * ४.न वेदविहिता हिंसा दोसाय साहुसकारा । दिटुं च तबिसेसा अयपिंडादीण तरणादी ।। ८६२ ॥ बुहह जलि मुको अयपिंडो सक्काIC रिओ य तरइत्ति । मारणसत्तीवि विसं साधु पउत्तं गुणं कुणति ।। ८६३ ॥ तह दाहगोऽवि अग्गी सच्चादिपभावतो न दहइति ।
इय विहिसकारावो हिंसावि तई न दोसाय ॥ ८६४ ॥ सत्थत्यमि य एवं न होइ पुरिसस्स एत्थ किं माणं? । न य कुच्छिता तई
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॥१११॥
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