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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SCORE श्रीदशशा-४ ॥१३४॥ होइ य पाएणेसा किलिहसत्ताण मंदबुद्धीण। पाएण दुग्गइफला विसेसओ दुस्समाए उ ॥ १३५।। अण्णे उ लोगिगच्चिय एसा 3 ३वन्दनस्त्रीय मूल | णामेण वंदणा जइणी । जं तीइ फलं तं चिय इमीऍण उ अहिगयं किंचि ॥१३६।। एयंपि जुज्जइ चिय तदणारंभाउ तष्फलं व जओ। पञ्चाशकम् सूत्रम् । तप्पञ्चवायभावोऽवि हंदि तत्तोण जुत्तत्ति ॥१३७।। जमुभयजगणसभावा एसा विहिणेयरहिं ण उ अण्णा । ता एयस्साभावे इमीएँ एवं पाक बीयं ।। १३८ ॥ तम्हा उ तदाभासा अण्णा एसत्ति णायओ णेया । मोसाभासाणुगया तदत्थभावाणिआगणं ।। १६९ ।। सुहफ॥९॥ लजणणसभावा चिंतामणिमाइएउवि णाभव्या । पावति किं पुणेयं परमं परमपयवीयंति ॥ १४० ॥ भव्वावि एत्थ णेया जे आसन्ना ण जाइमेत्तणं । जमणाइ सुए भणियं एयं ण उ इट्टफलजणगं ॥ १४१ । विहिअपओसो जेसिं आसण्णा तेऽवि सुद्धिपत्तत्ति । खुद्दमिगाणं पुण सुद्धदेसणा सीहणायसमा ॥१४२॥ आलोचिऊण एवं तंतं पुव्वावरेण सूरीहिं । विहिजत्तो कायव्यो मुद्धाण हियट्टया सम्मं ॥१४३॥ तिव्वगिलाणादीण भेसजदाणाइयाई णाया। ददृच्वाइँ इहं खलु कुग्गहविरहेण धीरेहिं ॥१४४।। इति वन्दनपश्चाशकम ३ ।। नमिऊण महावीरं जिणपूजाए विहिं पवक्खामि। संखवओ महत्थं गुरूवएसाणुसारेण ॥ १४५ ।। विहिणा उ कीरमाणा सव्व च्चिय फलवती भवति चेढा । इहलोइयाचि किं पुण जिणपूया उभयलोगहिया ।। १४३ ॥ काले सुइभूएणं विसिट्टपुष्फाइएहिं विहिणा | उ । सारथुइथोत्तगरुई जिणपूजा होइ कायव्वा ।। १४७ ॥ कालम्मि कीरमाणं किसिकम बहुफलं जहा होइ । इय सव्व च्चिय कि|रिया णियणियकालीम्म विष्णेया ॥१४८।। सो पुण इह विण्णेओ संझाओ तिण्णि ताव ओहेण । वित्तिकिरियाविरुद्धो अहवा जो जस्स जावइओ ॥१४९॥पुरिसेणं घुद्धिमया सुहवुड्ढि भावओ गणंतेणं । जत्तेणं होयव्वं सुहाणुबंधप्पहाणेण ॥ १५० ॥ विवोच्छेयम्मि य ॥९॥ गिहिणो सीयंति सव्वकिरियाओ। णिरवेक्खस्स उ जुत्तो संपुष्णो संजमो चेव ।। १५१।। तासिं अविरोहेणं आभिग्गहिओ इहं मओ For Private and Personal Use Only
SR No.020535
Book TitlePanchashak Mulam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1928
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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