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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचारियमत्त के 00. पमाणं कत्तब्ब, स. नि. अट्ठ. 2.236; - यं सप्त. वि., ए. व. - आचरियमतिकोति आचरियमतियं नियुत्तो तरमा अनतिवत्तनतो, विसुद्धि, महाटी. 1.112; -- क, त्रि. ब. स., आचार्य के विचार का अनुसरण करने वाला, आचार्य द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्त का अनुयायी, - को पु., प्र. वि., ए. व. - एवरूपो हि तन्तिधरो वंसानुरक्खको पवेणीपालको आचरियो आचरियमतिकोव होति, न अत्तनोमतिको होति, विसुद्धि. 1.97; आचरियमतिकोति आचरियमतियं नियुत्तो ...., विसुद्धि. महाटी. 1.112. आचरियमत्त त्रि., ब. स., वह, जो शील आदि में आचार्य जैसा हो चुका है, पांच वर्षों से अधिक समय से उपसम्पदा प्राप्त भिक्षु, आचार्य-पद पाने योग्य व्यक्ति - त्तो पु.. प्र. वि., ए. व. -- अवस्सिकस्स छब्बस्सो आचरियमत्तो, महाव. अट्ठ. 346; आचरियमत्तोति सीलादिना आचरियप्पमाणो, विसुद्धि. महाटी. 1.333; - त्तेसु पु., सप्त. वि., ब. व. - आचरियेसु आचरियमत्तेसु उपज्झायेसु उपज्झायमत्तेसु अनुपाहनेसु चङ्कममानेसु सउपाहनेन चङ्कमितब्बं, महाव. 260; उपज्झाये उपज्झायमत्तेसु आचरिये आचरियमत्तेसु सब्बत्थ अनधिकरणेन भवितब्बं अनवसेसकारिना, मि. प. 351. आचरियमहयुग पु., [आचार्यमहायुग], आचार्यों की बहुत पुरानी पीढ़ी - गा प्र. वि., ब. व. - अत्थि कोचि तेविज्जानं ब्राह्मणानं याव सत्तमा आचरियामहयुगा येन ब्रह्मा सक्खिदिट्ठोति? दी. नि. 1.216; एकाचरियपाचरियोपि, याव सत्तमा आचरियमहयुगापि, म. नि. 2.388. आचरियमुट्ठि स्त्री, तत्पु. स. [आचार्यमुष्टि], शा. अ., आचार्य की बन्द मुट्ठी, ला. अ., विद्यादान या ज्ञान देने में शिक्षक की अनुदार प्रवृत्ति, अपने ज्ञान को अपने तक सीमित रखने की आदत, अपने पास रहस्य छिपाकर शिष्यों को विद्या न देने की प्रवृत्ति - ट्ठि प्र. वि., ए. व. - नत्थानन्द, तथागतस्स धम्मेसु आचरियमुष्टि, दी. नि. 2.78; आचरियमुट्ठी ति ... दहरकाले कस्सचि अकथेत्वा पच्छिमकाले मरणमञ्चे निपन्ना पियमनापस्स अन्तेवासिकस्स कथेन्ति .... दी. नि. अट्ट. 2.123; नत्थानन्द तथागतस्स धम्भेसु आचरियमुट्ठी ति, मि. प. 145; ... न ते अस्थि आचरियमुट्ठीति वुत्तं होति, सु. नि. अट्ठ. 2.90; - डिं द्वि. वि., ए. व. - बोधिसत्ता नाम सिप्पं वाचेन्ता आचरियमुढिं न करोन्ति, जा. अट्ठ. 2.186; -- ता स्त्री॰, भाव., पक्षपातयुक्त होकर शिक्षक द्वारा सभी को विद्या का रहस्य न बतलाना - य तृ. वि., ए. व. - अम्हाक, महाराज ..., आगतं आचरियवाद पोराणमन्तपदं अस्थि तं मयं आचरियमद्विताय न कस्सचि भणिम्हा, सु. नि. अट्ठ. 2.50. आचरियलेस पु.. [आचार्यलेश], आचार्य का बहाना, आचार्य के रखने का दिखावा ढोंग या पाखण्ड - सो प्र. वि., ए. व. - आचरियलेसो नाम इत्थन्नामस्स अन्तेवासिको दिट्ठो होति, पारा. 266, आचरियवंस पु., तत्पु. स. [आचार्यवंश, आचार्यों की परम्परा, आचार्यों का वंश या पीढ़ियां, आचार्यों के वाद, धार्मिक शाखा - सेन तृ. वि., ए. व. - आचरियवंसेन अधिप्पाया कारणुत्तरियताय.... आचरियवंसोति आचरियवादो, मि. प. 148; पारा. अट्ठ. 1.179. आचरियवच नपुं.. तत्पु. स. [आचार्यवचस्]. आचार्य का वचन, आचार्य की शिक्षा – चो प्र/वि. वि., ए. व. - इदं तदाचरियवचो, पारासरियो यदबवि, जा. अट्ठ. 2.169; जा. अट्ठ. 3.138; इदं तं आचरियस्स वचनं, तदे.; स. उ. प. के रूप में - पुब्बाचरिय.- नपुं, तत्पु. स. [पूर्वाचार्यवचस्], पूर्व-काल के आचार्यों का वचन – चो प्र. वि., ए. व. - सब्बे ते अप्पटिक्खिप्पा, पुब्बाचरियवचो इद, जा. अट्ठ. 2.306; पुब्बाचरियवचो इदन्ति पुब्बाचरिया वुच्चन्ति मातापितरो, इदं तेसं वचन, जा. अट्ट. 2.307. आचरियक्त्त नपुं., तत्पु. स. [आचार्यव्रत], अपने आचार्य के प्रति अन्तेवासी का उचित व्यवहार, आचार्य के प्रति शिष्य का कर्त्तव्य - त्तं प्र. वि., ए. व. - निस्सयन्तेवासिकेन हि याव आचरियं निस्साय वसति, ताव सब्बं आचरियवत्तं कातब्बं, महाव. अट्ट, 254; एवं आचरियवत्तं कत्वा .... ध. प. अट्ठ. 1.54. आचरियवाद पु.. तत्पु. स. [आचार्यवाद], शा. अ.. आचार्यों का सिद्धान्त, आचार्यों की शिक्षा, ला. अ. 1. अट्ठकथा, - दो प्र. वि., ए. व. - आचरियवादो नाम धम्मसङ्गाहकेहि पञ्चहि अरहन्तसतेहि ठपिता पालिविनिमत्ता ओक्कन्तविनिच्छयप्पवत्ता अट्ठकथातन्ति, पारा. अट्ट. 1.180; - दं द्वि. वि., ए. व. - सुत्तं, सुत्तानुलोम, आचरियवादं अत्तनोमतिन्ति, पारा. अट्ठ. 1.179; ला. अ. 2. मतवाद, धार्मिक निकाय, शिल्पस्थानों अथवा विद्यास्थानों की शाखा, आचार्यों द्वारा स्थापित सिद्धान्त - दं द्वि. वि., ए. व. - सकं आचरियकन्ति अत्तनो आचरियवाद, स. नि. अट्ठ. 3.282; ला. अ. 3. थेरवाद सहित बौद्धधर्म की विभिन्न शाखाएं अथवा निकाय, थेरवाद, महासांघिक, गोकुलिक, एकव्यावहारिक, प्रज्ञप्तिवादी, बाहुलिक, चैत्यवाद, For Private and Personal Use Only
SR No.020529
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2009
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size10 MB
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