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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमनक 30 आगमि -दिवस पु., तत्पु. स. [आगमनदिवस], आने का दिन - सं द्वि. वि., ए. व. - महाजनो तुम्हाकं दस्सनकामो, आगमनदिवसं वो जानितं इच्छतीति, अ. नि. अट्ठ. 1.1023; - नन्दन त्रि., [आगतनन्दन]. वह, जिसका आगमन मन में आनन्द उत्पन्न कर दे - नो पु., प्र. वि., ए. व. - एकस्मि आगते नन्दन्ति, गते सोचन्ति तादिसो त्वं आगमननन्दनो गमनसोचनो, दी. नि. अट्ठ. 2.191; - पटिपदा स्त्री., तत्पु. स. [आगमनप्रतिपत्], फल की प्राप्ति का मार्ग, उपाय या तरीका - दा प्र. वि., ए. व. - आगमनपटिपदा नाम खन्धादिवसेन बहूहि मुखेहि सक्का कथेतु जा. अट्ठ. 4.238; - पथ पु., तत्पु. स. [आगमनपथ]. (राग आदि मलों के आने का मार्ग - थो प्र. वि., ए. व. - रजोपथोति रागरजादीनं उडानहानन्ति महाअट्ठकथायं वुत्तं, आगमनपथोतिपि वदन्ति, दी. नि. अट्ट, 1.148; - मग्ग पु., तत्पु. स. [आगमनमार्ग], आने का मार्ग - ग्गे सप्त. वि., ए. व, - तस्स किर गामस्स बहि भगवतो आगमनमग्गे ब्राह्मणानं परिभोगभूतो एको उदपानो अहोसि, उदा. अट्ठ. 307; - वस पु., तत्पु. स., आ जाने के कारण - सेन तृ. वि., ए. व. - तस्मा अन्तोअप्पनायमेव आगमनवसेन पटिपदाविसुद्धि, विसुद्धि 1.143; - विपत्ति स्त्री. प्र. वि., ए. व. - चण्डालकले वा ति आदीहि आगमनविपत्ति चेव पुब्बुप्पन्नपच्चयविपत्ति च दस्सिता, स. नि. अट्ठ. 1.143; - सद्धा स्त्री., तत्पु. स., अभिनीहार (बुद्धत्व-प्राप्ति हेतु लिए गए दृढ़ संकल्प) के समय से ही चली आ रही बोधिसत्त्वों की श्रद्धा - तत्थ सब्ब बोधिसत्तानं सद्धा अभिनीहारतो पट्ठाय आगतत्ता आगमसद्धा नाम, अ. नि. अट्ठ. 3.27; - सील त्रि., ब. स. [आगमनशील], आने वाला - लो पु., प्र. वि., ए. व. - सकदागामीति सकिदेव इमं लोकं पटिसन्धिग्गहणवसेन आगमनसीलो दुतियफलट्ठो, उदा. अट्ठ. 249; .... ठितोपि पटिसन्धिग्गहणवसेन इमं मनुस्सलोकं आगमनसीलो, इतिवु. अट्ठ. 264; - नाकार पु., तत्पु. स. [आगमनाकार], वापस लौटने का स्वरूप या तौर-तरीका -रं द्वि. वि., ए. व. - राजा अत्तनो आगमनाकारं सब्बं वित्थारतो कथेसि, जा. अट्ठ. 1.257. आगमनक त्रि., आगे आने वाला, भविष्य - ... तस्स तस्स पहिस्स उपरि आगमनवादपथं, म. नि. अठ्ठ, (म.प.) । 2.171. आगमनीय/आगमनिय त्रि., आ + गम का सं. कृ. [आगमनीय], वह स्थान जहां आ पहुंचना चाहिए, प्राप्त किए जाने योग्य, सम्बद्ध, प्रापक - येन तृ. वि., ए. व. - आगमनियेन कथिते पन सुञतो वा फस्सो.... म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(2).261; स. नि. अट्ठ. 3.135; स. उ. प. के रूप में अना., ओरगा., तीणिसरणा., सरणा. आदि के अन्त. द्रष्ट; - कथा स्त्री., तत्पु. स. [आगमनिककथा]. आगमन फल-प्राप्ति की ओर ले जाने वाला कथन - अपरा आगमनियकथा नाम होति, स. नि. अट्ठ. 3.135; - गुण पु., तत्पु. स. [आगमनिकगुण], श्रमण-जीवन के फल की प्राप्ति का गुण - णं द्वि. वि., ए. व. - कतकिच्चभावं पारं पत्तो परिजानामीति महाबोधिपल्लङ्के अत्तनो आगमनीयगुणं दस्सेति, अ. नि. अट्ठ. 3.4: - ठान नपुं, कर्म. स. [आगमनिकस्थान], मार्ग की उत्पत्ति का स्थान, वह स्थान, जहां मार्ग की उत्पत्ति होती है - ने सप्त. वि., ए. व. -- इति अयं सङ्घारुपेक्खा आगमनीयद्वाने ठत्वा अत्तनो अत्तनो मग्गस्स नाम देति, विसुद्धि. 2.304; यतो मग्गो आगच्छति, तं आगमनीयद्वान, तस्मि आगमनीयट्ठाने, विसुद्धि. महाटी. 2.447; - पटिपदा स्त्री., कर्म स. [आगमनिकप्रतिपत्], फल की प्राप्ति की ओर ले जाने वाला मार्ग - दा प्र. वि., ए. व. - आगमनीयपटिपदा पन न कथिता, म. नि. अट्ठ. (उप.प.) 3.9; - दं द्वि. वि., ए. व. - पापुणन्तस्स आगमनियपटिपदं सन्धायेतं वृत्तं, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(2).79; -- पुब्बभागपटिपदा स्त्री., तत्पु. स. [आगमनिकपूर्वभागप्रतिपत], (अर्हत्) फलप्राप्ति के पूर्वभाग में अनुसरणीय मार्ग - दा प्र. वि., ए. व. - कित्तकेन नु खो तण्हासङ्घयविमुत्तस्स खीणासवरस सोपतो आगमनियपुब्बभागपटिपदा होती ति, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(2).193; - दं वि. वि., ए. व. - सखित्तेन खीणासवस्स पुब्बभागप्पटिपदं पुच्छितो सल्लहुकं कत्वा ..., म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(2).195; – सद्धा स्त्री., कर्म. स. [आगमनिकश्रद्धा]. अभिनीहार के समय से ही चली आ रही बोधिसत्त्वों की श्रद्धा - ... तत्थ आगमनीयसद्धा सब्ब बोधिसत्तानं होति, दी. नि. अट्ठ. 2.107. आगमयति/आगमयमान द्रष्ट. आगमति के अन्त.. आगमा द्रष्ट. आगच्छति के अन्त.. आगमि द्रष्ट. आगच्छति के अन्त.. For Private and Personal Use Only
SR No.020529
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2009
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size10 MB
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