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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इन्द्रियपत्ति 342 इन्द्रियपाटव इन्द्रियपत्ति स्त्री., तत्पु. स. [इन्द्रियप्रज्ञप्ति], इन्द्रियों का बाह्यरूप में या वचनों द्वारा प्रकाशन, इन्द्रियों की संकल्पना या प्रज्ञप्ति, पु. प. में परिगणित छ प्रकार की प्रज्ञप्तियों में से एक - त्ति प्र. वि, ए. व. - छ पत्तियो-खन्धपत्ति, आयतनपत्ति, धातुपञत्ति, सच्चपञत्ति इन्द्रियपत्ति, पुग्गलपञत्तीति, पु. प. 103; कथा. 265; कित्तावता इन्द्रियानं इन्द्रियपत्ति? यावता बावीसतिन्द्रियानि.... एत्तावता इन्द्रियानं इन्द्रियपत्ति, पु. प. 104. इन्द्रियपरिपाक पु., [इन्द्रियपरिपाक], शा. अ.. इन्द्रियों की परिपक्वता, ला. अ. 1. इन्द्रियों की पूर्णता, इन्द्रियों की तीक्ष्णता, ला. अ. 2. जरा अवस्था के कारण इन्द्रियों का अपक्षय या इन्द्रियों का विषयों के ग्रहण में शिथिल हो जाना - को प्र. वि., ए. व. - आयुनो संहानि इन्द्रियानं परिपाकोति इमेहि पन पदेहि कालातिक्कमेयेव अभिब्यत्तताय आयुक्खयचक्खादिइन्द्रियपरिपाकसञ्जिताय पकतिया दीपिता, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).224; ... इन्द्रियानं परिपाकोति इमेहि पन पदेहि ... आयुक्खयचक्खादिइन्द्रियपरिपाकसञ्जिताय पकतिया दीपिता, ध. स. अट्ठ. 360; - कं द्वि. वि., ए. व. - भगवा पनस्स इन्द्रियपरिपाक आगमयमानो न ब्याकासि, सु. नि. अट्ठ. 2.294; इन्द्रियपरिपाकञ्च जत्वा ... आसयानुसयचरितानि ओलोकेन्ति, पटि. म. अट्ठ. 1.48. इन्द्रियपरोपरिय नपुं., [इन्द्रियपरोवर्य], इन्द्रियों की उच्च तथा निम्न अवस्था - आण नपुं., तत्पु. स. [इन्द्रियपरोवर्यज्ञान], (दूसरों की) इन्द्रियों के तीक्ष्ण या मृदु होने का ज्ञान, चक्षु आदि इन्द्रियों की विषयों को ग्रहण करने वाली क्षमता की तीक्ष्णता एवं मन्दता का ज्ञान - णं प्र. वि., ए. व. - पुरिसपुग्गलपरोपरियाणं वुच्चति पुरिसपुग्गलानं तिक्खमुदुवसेन इन्द्रियपरोपरियाणं, अ. नि. अट्ठ. 3.116. इन्द्रियपरोपरियत्त नपुं.. इन्द्रियपरोपरिय का भाव., तत्पु. स. [इन्द्रियपरोवर्यत्व]. इन्द्रियों की उच्च या निम्न अवस्था, इन्द्रियों की तीक्ष्णता अथवा मृदुता, दूसरे प्राणियों के आशयों, अनुशयों, अधिमुक्तियों की प्रकृति तथा इन्द्रियों की तीक्ष्णता एवं मृदुता - त्तं द्वि. वि., ए. व. - तथागतो परसत्तानं परपुग्गलानं इन्द्रियपरोपरियत्तं यथाभूतं पजानाति, म. नि. 1.102; पटि. म. 350; इन्द्रियपरोपरियत्तं यथाभूतं आणं तथागतबलं सावकसाधारणन्ति?, कथा. 193; तत्थ कतमं तथागतस्स परसत्तानं परपुग्गलानं इन्द्रियपरोपरियत्तं यथाभूतं जाणं? विभ. 389; - ते सप्त. वि., ए. व. - इन्द्रियपरोपरियत्ते आणं, पटि. म. 4; - प्राण नपुं.. [ज्ञान], इन्द्रियों के तीक्ष्ण होने एवं मृदु होने का ज्ञान, इन्द्रियों की तीक्ष्णता या मृदुता का ज्ञान - णं प्र. वि., ए. व. - इन्द्रियपरोपरियत्तस्स आणं इन्द्रियपरोपरित्तत्राणं, इन्द्रियानं उत्तमानुत्तमभावञआणन्ति अत्थो, .... वरानि च अवरियानि च वरोवरियानि, वरोवरियानं भावो वरोवरियत्तन्ति योजेतब्बं, अवरियानीति च न उत्तमानीति अत्थो..., पटि. म. अट्ठ. 1.48; चूळनि. अट्ठ. 46; - स्स ष. वि., ए. व. - "अहं एसो विय असाधारणस्स इन्द्रियपरोपरियत्तत्राणस्स पटिवेधाय उपनिस्सयभूता दस पारमियो न पूरेसिं, जा. अट्ठ. 1.87; - ञाणनिद्देस पु., तत्पु. स., इन्द्रियों की तीक्ष्णता एवं मन्दता के ज्ञान का व्याख्यान - से सप्त. वि., ए. व. - इन्द्रियपरोपरियत्तत्राणनिद्देसे तथागतस्साति वचने .... पटि. म. अट्ट, 2.1; - जाणनिद्देसवण्णना स्त्री., पटि. म. अट्ठ. के एक खण्ड का शीर्षक, पटि. म. अट्ठ. 2.1-4; -- वेमत्तताजाण नपुं., इन्द्रियों की तीक्ष्णता एवं मन्दता की विविधता का ज्ञान, तथागत का एक बल - णं प्र. वि., ए. व. - इदं वुच्चति परसत्तानं परपुग्गलानं इन्द्रियपरोपरियत्तवेमत्तताञाणं सत्तमं तथागतबलं, नेत्ति. 82; इन्द्रियपरोपरियत्तवेमत्तताञआणन्ति परभावो च अपरभावो च परोपरियत्तं... तस्स वेमत्तता परोपरियत्तवेमत्तता, सद्धादीनं इन्द्रियानं परोपरियवेमत्ततायजाणं इन्द्रियपरोपरियत्तवेमत्तताञआणन्ति पदविभागो वेदितब्बो, नेत्ति. अट्ठ. 292. इन्द्रियपरोपरियत्तसुत्त नपुं, स. नि. के एक सुत्त का शीर्षक, स. नि. 3(1).376. इन्द्रियपरोपरियत्ति स्त्री., तत्पु. स., इन्द्रियों की (विषयग्रहण में) तीक्ष्णता अथवा मन्दता, इन्द्रियों की विविध प्रकार की क्षमताएं - त्ति प्र. वि., ए. व. - अत्थि सावकस्स फलपरोपरियत्ति इन्द्रियपरोपरियत्ति पुग्गलपरोपरियत्तीति, कथा. 264; - ञाण नपुं., शा. अ., इन्द्रियों की तीक्ष्णता एवं मन्दता का ज्ञान, ला. अ.. बुद्ध-चक्षु, बुद्ध का विशेष ज्ञान, जिससे वे प्राणियों की इन्द्रियों की तीक्ष्णता आदि को जान लेते हैं - णं प्र. वि., ए. व. - बुद्धचक्खु नाम आसयानुसयाणञ्चेव इन्द्रियपरोपरियत्तञाणञ्च, बु. वं. अट्ठ. 42. इन्द्रियपाटव नपुं.. तत्पु. स., इन्द्रियों की पटुता या सामर्थ्य - वेन तृ. वि., ए. व. - तिक्खपञस्स For Private and Personal Use Only
SR No.020529
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2009
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size10 MB
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