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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इद्धि 325 इद्धिक इद्धि स्त्री., [ऋद्धि]. शा. अ., समृद्धि, प्रभावमयता, महिमा, फलं आहरित्वा ..., बु. वं. अट्ठ. 258; घ. बुद्ध, अर्हतों, उच्च स्थिति, ऊंची सफलता, विशेष अर्थ, चमत्कारपूर्ण शैक्ष्य भिक्षुओं एवं भिक्षुणियों को प्राप्त दिव्य शक्तियां -द्धि दिव्य शक्तियां, अलौकिक शक्तियां, क. परम्परागत विशिष्ट प्र. वि., ए. व. - इद्धीपि मे सच्छिकता, पत्तो मे आसवक्खयो, अर्थ - बुद्धों की उपायसम्पत्ति के रूप में प्रयुक्त दिव्य थेरीगा. 71; -- द्धिं द्वि. वि., ए. व. – “कथं त्वं, आवुसो, शक्तियां, प्राणियों का उत्थान कराने वाली दिव्य शक्तियां इद्धिं वळजेसी ति पुट्ठो तमत्थं आचिक्खन्तो.... थेरगा. - द्धि प्र. वि., ए. व. - इज्झनटेन इद्धि, पटि. म. 376%; अट्ठ. 1.228; -- या' ष. वि., ए. व. - अहं विकुब्बनासु इज्झनद्वेन इद्धि निष्फत्तिअत्थेन पटिलाभद्वेन चाति... अपरो । कुसलो, वसीभूतोम्हि इद्धिया, थेरगा. 1192; - या सप्त. नयो इज्झनटेन इद्धि उपायसम्पदायेतमधिवचनं... अपरो वि., ए. व. -यादिसो महामोग्गलानत्थेरो इद्धिया, अहम्पि नयो, एताय सत्ता इज्झन्तीति इद्धि, इज्झन्तीति इद्धा बुद्धा तादिसो होमि, अ. नि. अट्ठ. 2.59; -द्धीसु सप्त. वि., ब. उक्कंसगता होन्तीति वुत्तं होति, विसुद्धि. 2.6-7; इद्धीति, व. - इद्धीसु च वसी होमि, दिब्बाय सोतधातुया, अप. या तेसं धम्मानं इद्धि समिद्धि इज्झना समिज्झना लाभो 2.228; - नं ष. वि., ब. व. - इद्धिलाभायाति अत्तनो पटिलाभो पत्ति सम्पत्ति फुसना सच्छिकिरिया उपसम्पदा, सन्ताने पातुभाववसेन इद्धीनं लाभाय, पटि. म. अट्ट, विभ. 244; ख. राजा आदि उच्चपदस्थ मनुष्यों की विशिष्ट 2.245; ङ. पांच अथवा छ प्रकार के अभिज्ञा-बलों में प्रथम, शक्तियां, प्रभाव या सामर्थ्य, उच्च स्थिति या दैवी संपदा, तीन प्रकार के ऋद्धिप्रातिहार्यों में प्रथम, आकाश में उड़ने, ---द्धी प्र. वि., ब. व. - त्वं नोसिस्सरियं दाता, मनुस्सेसु जल पर चलने, स्थल पर डूबने उतराने जैसी आठ महन्ततं, तयामा लभिता इद्धी एत्थ मे नत्थि संसयो, दिव्यशक्तियां अथवा इद्धिविधाएं, दस ऋद्धियों की जा. अट्ठ. 4.37; - या तृ. वि., ए. व. - "तायिद्धिया उत्तरकालीन सूची में प्रथम प्रभेद के उपभेदों के रूप में दक्खसि मं पुनापी ति ... ताय इद्धिया में पुनपि त्वं । अन्तर्भूत, चार इद्धिभूमियों (चरणों), आठ इद्धिपदों एवं पस्सिस्ससीति, जा. अट्ठ.6.202-203; -द्धि द्वि. वि., ए. सोलह इद्धिमूलों के विवरणों के साथ भी निर्दिष्ट, प्र. वि., व. - तं तादिसं पच्चनुभोस्सतिद्धि, पे. व. 459; इद्धिन्ति । ए. व. - अधिट्ठाना इद्धि, विकुब्बना इद्धि, मनोमया इद्धि, देविद्धिं, दिब्बसम्पत्तिन्ति वुत्तं होति, पे. व. अट्ठ. 172; - आणविप्फारा इद्धि, समाधिविप्फारा इद्धि, अरिया इद्धि, द्धीहि तृ. वि., ब. व. - राजा, आनन्द, महासुदस्सनो कम्मविपाकजा इद्धि, पुञ्जवतो इद्धि, विज्जामया इद्धि तत्थ चतुहि इद्धीहि समन्नागतो अहोसि, दी. नि. 2.132; चतहि तत्थ सम्मा पयोगपच्चया इज्झनटेन इद्धि, पटि. म. 376; राजिद्धीहि समन्नागतो अहोसि, उपरिचरो आकासगामी, स. उ. प. के रूप में, अतिरेकि०, अधिट्ठानि., अभिञापादकि., चत्तारो नं देवपुत्ता चतूसु दिसासु खग्गहत्था रक्खन्ति, अरियि., आमिसि., उप्पत्तिः, कम्मविपाकजि., चेतोपरियायि., कायतो चन्दनगन्धो वायति, मुखतो उप्पलगन्धो, जा. अट्ठ. दिब्बि., देवि., धम्मि., नागि., पादकि., पुञमयि., पुञि०, 3.401; - द्धियो प्र. वि., ब. व. - अभिसेकानुभावेन चस्स भावनामयि., मनोमयि., यक्खि., राजि., विकुब्बनि., विपाकि., इमा राजिद्धियो आगता, पारा. अट्ट, 1.31; ग. नागों, यक्षों समाधि., सुपण्णि के अन्त. द्रष्ट... एवं देवों जैसे दैवी प्राणियों की दिव्य शक्तियां, देवों आदि इद्धिआदेसनानुसासनी स्त्री., द्व. स., श्रोताओं की मनोदशा की दिव्य विभूति-द्धी प्र. वि.. ब. व. - इद्धी हि त्यायं को जानकर तदनुरूप उन्हें उपदेश देने की बुद्धों की विपुला, सक्कस्सेव जुतीमतो ति, जा. अट्ठ. 7.16; असस्सतं दिव्य शक्ति, बुद्ध के तीन प्रातिहार्यों में से एक - नी प्र. सस्सतं नु तवयिदं, इद्धी जुती बलवीरियूपपत्ति, जा. अट्ठ. वि., ए. व. - इद्धिआदेसानुसासनीसमुदाये भवं एकेक 7.213; - द्धिं द्वि. वि., ए. व. - इद्धि पस्स यसञ्च मे, पाटिहारियन्ति वुच्चति, उदा. अट्ठ. 9; - हि त. वि., ब. वि. व. 859; इद्धिन्ति समिद्धि, दिब्बविभूतिन्ति अत्थो, वि. व. - ... इद्धिआदेसनानुसासनीहि हरिता अपनीता होन्ति, व. अट्ठ. 185; - या तृ. वि., ए. व. - इद्धिया यससा उदा. अट्ठ. 9; - नियो प्र. वि., ब. व. - जल, स. नि. 1(1),142; दिब्बसंपत्तिसमिद्धिया च इद्धिआदेसनानुसासनियो विगतूपक्किलेसेन कतकिच्चेन परिवारसवातेन यससा च अ. नि. अट्ठ. 2.254; हंसादिच्चपथे। सत्तहितत्थं पुन पवत्तेतब्बा ... भवन्ति, उदा. अट्ठ. 9. यन्ति, आकासे यन्ति इद्धिया, ध, प. 175; याय जम्बुया अयं इद्धिक त्रि., केवल स. उ. प. के रूप में प्राप्त, ऋद्धियों जम्बुदीपो पञआयति, इद्धिया तं जम्बु उपसङ्कमित्वा ततो अथवा दिव्य शक्तियों से युक्त अनि., तेजि., महि. के For Private and Personal Use Only
SR No.020529
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2009
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size10 MB
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