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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आसवक्खयजानन 260 आसवनुद नपुं., स. नि. के एक सुत्त का शीर्षक, - स. नि. 3. आसवढानीय त्रि., आस्रवों को उत्पन्न करने वाले क्लेश 310. धर्म, आस्रवों के उदय में कारणभूत, ईर्ष्या, द्वेष आदि को आसवक्खयजानन नपुं. तत्पू. स., आसवों के क्षय के उत्पन्न करने में सहायक - या पु.. प्र. वि., ब. व. - विषय में ज्ञान - नं प्र. वि., ए. व. - आसवक्खयजाननं इधेकच्चे आसवहानीया धम्मा सङ्के पातुभवन्ति, पारा. 10; एकन्ति , स. नि. अट्ठ. 2.40. सासने एकच्चे आसवढानीया धम्मा न उप्पज्जन्ति, पारा. आसवक्खयत्राण नपुं., तत्पु. स. [बौ. सं., आस्रवक्षयज्ञान], अट्ठ. 1.148; ... यस्मा सेनासनानि पहोन्ति, तस्मा आस्रवों के क्षय को प्राप्त कराने वाला ज्ञान अथवा प्रज्ञा, आवासमच्छरियादिहेतुका सासने एकच्चे आसवहानीया आस्रवों के क्षय के विषय में ज्ञान, अर्हत्व-फल की अवस्था धम्मा न उप्पज्जन्ति, सारत्थ. टी. 1.394; - येहि तृ. वि., - णं प्र. वि., ए. व. - आसवक्खयञाणपदट्ठानम्हि ... ब. व. - सब्बसो आसवठ्ठानियेहि धम्मेहि ..., अ. नि. 3(1). आसवक्खयञाणं 'महाबोधी ति वुच्चति, चरिया. अट्ठ. 17; 59; पटि. म. 348; आसबट्ठानियेहीति सम्पयोगवसेन आसवानं - णेन तृ. वि., ए. व. - चतुसच्चपटिच्छादकं तमं कारणभूतेहि ... अत्थो, अ. नि. अट्ठ. 3.222-23. विनोदेत्वा आसवक्खयाणेन ततियं जायति, म. नि. अट्ठ. आसवता स्त्री॰, भाव., आस्रवत्व, आस्रव की स्थिति में होना, (म.प.) 2.24; - निद्देस पु., तत्पु. स., आस्रवों के क्षय से मलिनता, क्लिष्टता, कालुष्य - य तृ. वि., ए. व. - यथा सम्बन्धित ज्ञान अथवा प्रज्ञा का विवेचन या व्याख्यान करने चत्तारो आसवा सभावआसवताय आसवा... चित्तसासवताय वाले, पटि. म. के एक खण्ड का शीर्षक, पटि. म. 106- ..... सभावताय आसवा, पक्खे आसवताय आसवा, पेटको. 108; - निद्देसवण्णना स्त्री॰, पटि. म. अट्ठ, के एक 271. व्याख्याखण्ड का शीर्षक, पटि. म. अट्ठ. 1.307-309. आसवति आ + vसु का वर्त०, प्र. पु., ए. व. [आस्रवति], आसवक्खयपत्त त्रि., आस्रवों के क्षय को प्राप्त कर चुका, रिसता है, भीतर में से बहता है, प्रकट होता है, विद्यमान आस्रवों से मुक्त - त्तो पु., प्र. वि., ए. व. - यथानिसिन्नोव रहता है --- न्ति प्र. पु., ब. व. - तत्थ आसवन्तीति आसवक्खयप्पत्तो, उदा. अट्ठ. 295. आसवा, ... अन्तोकरणत्थो हि अयं आकारो, म. नि. अट्ठ. आसवक्खयपरियोसान त्रि., ब. स., आस्रवों के क्षय में (मू.प.) 1(1).66; आसवन्तीति आसवा... मनतोपि सन्दन्ति अन्त होने वाला - नं पु., द्वि. वि., ए. व. - पवत्तन्तीति वुत्तं होति, अ. नि. अट्ठ 2.83; सवन्ति आसवन्ति आसवक्खयपरियोसानं आनिसंसं सत्वा, अ. नि. अट्ठ. सन्दन्ति पवत्तन्तीति, स. नि. अट्ठ. 2.57; तस्स गन्थिता 3.318. किलेसा आसवन्ति, पेटको. 325; नेत्ति.95. आसवक्खयलाभ पु., तत्पु. स., आस्रवों के क्षय का लाभ आसवनिद्देस पु., आस्रवों का विवेचन, आस्रवों का निर्वचन - भेन तृ. वि., ए. व. - आसवक्खयलाभेन होति - से सप्त. वि., ए. व. - आसवनिद्देसे पञ्चकामगुणिको सासनसम्पदा, सद्द. 1.1. रागो कामासवो नाम, ध. स. अट्ठ. 395. आसवखीण त्रि., ब. स. [क्षीणास्रव, आस्रवों को क्षीण कर आसवनिरोध पु., तत्पु. स. [आस्रवनिरोध], आस्रवों की चुका (अर्हत्) - णो पु., प्र. वि., ए. व. - आसवखीणो रुकावट, आस्रवों की समाप्ति या नाश -धो प्र. वि., ए. पहीनमानो, सु. नि. 372; एकादसमगाथाय आसवखीणोति व. - अयं आसवनिरोधोति यथाभूतं पजानाति, दी. नि. खीणचतुरासवो, सु. नि. अट्ठ. 2.88. 1.74; - गामी त्रि., आस्रवों के निरोध की ओर ले जाने आसवगोच्छक नपुं.. तत्पु. स. [आस्रवगुच्छक], 1. आम्रवों वाला/वाली - मिनी स्त्री०, प्र. वि., ए. व. - अयं का गुच्छा, आस्रवों का समुच्चय या झुण्ड - के सप्त. वि., आसवनिरोधगामिनी पटिपदाति यथाभूतं पजानाति, दी. नि. ए. व. - आसवगोच्छके आसवन्तीति आसवा, ध. स. 1.74. अट्ठ. 95; 2. ध. स. के एक खण्ड का शीर्षक, ध. स. आसवनुद त्रि., आस्रवों को मिटाने वाला-दं पु., वि. वि., ए. व. - धम्म सदासवनुदं चरथप्पमत्ता, तेल. 27; - आसवचार पु., आस्रवों की प्रकृति, आस्रवों का स्वभाव-रो देकहित त्रि., आस्रवों का विनाशक एवं केवल हित ही प्र. वि., ए. व. - आसवचारो नाम एकन्तओळारिको, विभ. करने वाला - तं पु., द्वि. वि., ए. व. - ञत्वान अट्ठ. 13. आसवनुदेकहितञ्च धम्म, तेल. 98. 6-7. For Private and Personal Use Only
SR No.020529
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2009
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size10 MB
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