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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आलोकसञआसय 214 आलोकूपनिस्सय आलोकसआमनसिकारो अब्भोकासवासो कल्याणमित्तता के भाग - गा प्र. वि., ब. व. - आलोकसन्धिकण्णभागा सप्पायकथाति, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).294. पमज्जितब्बा, महाव. 53; आलोकसन्धिकण्णभागाति आलोकसज्ञासय त्रि., ब. स., आलोक संज्ञा के प्रति आलोक सन्धिाभागा च कण्णभागा च मानसिक अभिरुचि अथवा मन के रुझान से युक्त – यो अन्तरबाहिरवातपानकवाटकानि च गभस्स च चत्तारो कोणा पु., प्र. वि., ए. व. - अयं पुग्गलो आलोकसागरुको पमज्जितब्बाति अत्थो, महाव. अट्ठ. 249; - करणमत्त आलोकसञआसयो आलोकसञआधिमत्तो ति, पटि. म. 113. नपुं., केवल खिड़की बनाना - त्तेन तृ. वि., ए. व. - आलोकसञी त्रि., [आलोकसंज्ञिन], 1. रात में भी दिन में आलोकसन्धिकरणमत्तेनपि नवकम्म देन्ति, चूळव. 303; - देखे गए सूर्य के आलोक को पर्णरूप से जानने में समर्थ, परिकम्म नपं.. तत्पू. स. [आलोकसन्धिपरिकर्म]. खिडकी नीवरणों से रहित विशुद्ध संज्ञा (चेतना) से, युक्त 2. की मरम्मत, खिड़की की रगांई, पुताई अथवा साजआवरणरहित, परिशुद्ध तथा आलोकमयी संज्ञा से युक्त - सजावट - म्माय च. वि., ए. व. - महल्लकं ... जी पु.. प्र. वि., ए. व. - ... विगतथिनमिद्धो विहरति आलोकसन्धिपरिकम्माय द्वत्तिच्छदनस्स परियाय अप्पहरिते आलोकसञ्जी, दी. नि. 1.63; आलोकसञ्जीति रत्तिम्पि ठितेन अधिट्ठातब्ब, पाचि. 69; आलोकसन्धिपरिकम्मायाति दिवादिद्वालोकसञ्जाननसमत्थाय विगतनीवरणाय, परिसद्धाय एत्थ आलोकसन्धीति वातपानकवाटका वुच्चन्ति ... तस्मा सआय समन्नागतो, दी. नि. अट्ठ 1.172; विभ. अट्ठ सब्बदिस्सासु कवाटवित्थारप्पमाणो ओकासो आलोकसन्धि 348; अयं स आलोका होति विवटा परिसद्धा परियोदाता, परिकम्मत्थायलिम्पितब्बो वा लेपापेतब्बो वाति अयमेत्थ तेन वुच्चति 'आलोकसञ्जी ति, विभ. 284; विभ. अट्ठ. अधिप्पायो, पाचि. अट्ठ. 44. 348. आलोकित नपुं., आ + Vलुक का भू. क. कृ. [आलोकित], आलोकसञकत्त नपुं, भाव., तत्पु. स. [आलोकसंज्ञैकत्व], अपने सामने देखना, अपने आगे की ओर देखना - तं' (थीन-मिद्ध के नानात्व के विपरीत) आलोकमयी संज्ञा प्र. वि., ए. व. - आलोकितं नाम पुरतो पेक्खन, म. नि. अथवा आलोक-विषयिणी संज्ञा का एकत्व (एक होने की अट्ठ. (मू.प.) 1(1).271; प्रायः विलोकित (चारों ओर ताकना) अवस्था) - तं प्र. वि., ए. व. - आलोकस कत्तं के साथ प्रयुक्त, - आलोकितं विलोकितं समिजितं ..., चेतयतो थिनमिद्धतो चित्तं विवट्टतीति, पटि. म. 100; अ. नि. 1(2).120; - त? वि. वि., ए. व. - आलोकसओकत्तं चेतयतो थिनमिद्धेन सुझं पटि. म. आलोकितविलोकितं... मय्ह रुच्चति, स. नि. अट्ठ. 1.1063; 357. - तेन तृ. वि., ए. व. - पासादिकेन ... आलोकितेन आलोकसजेसना स्त्री., तत्पु. स., प्र. वि., ए. व. विलोकितेन ..., महाव. 45; - ते सप्त. वि., ए. व. - [आलोकसंज्ञैषणा], आलोकमयी अथवा आलोक-विषयिणी आलोकिते विलोकिते सम्पजानकारी होति, दी. नि. 1.62. संज्ञा की तलाश --- आलोकसजेसना थिनमिद्धेन सा. आलो कितविलोकित नपु, समा. द्व. स. पटि. म. 357. [आलोकितविलोकित], आगे की ओर देखना तथा चारो आलोकसन्धि पु., तत्पु. स. [आलोकसन्धि]खिड़की, ओर अथवा इधर उधर देखना - तं प्र. वि., ए. व. - झरोखा, गवाक्ष, प्रकाश एवं धूप आदि का खुला प्रवेशस्थान, आलोकितविलोकितं न पासादिकं होति, सा. सं. 24(सिंहली); खिड़की की किवाड़ी - वातपानं गवक्खो च जालं च स.प. के अन्त., - आलोकितविलोकितसीहपञ्जरं आलोकसन्धि, अभि. प. 216; आलोकानं आतपानं कथितहसितगमनवानादीहि विसेसो होतियेव, अ. नि. अट्ठ. पविसनट्ठानं सन्धि छिद्दन्ति आलोक सन्धि, अभि. प. 216 3.165. पर सूची; अञ्जतरो भिक्खु ... सङ्घस्स आलोकसन्धिं, पारा. आलोकूपनिस्सय पु., तत्पु. स., आलोक, प्रज्ञा या ज्ञान के 78; आलोकसन्धीति वातपानकवाटका वुच्चन्ति, पाचि. अट्ठ.. प्रकाश का आश्रय अथवा सहारा - यं द्वि. वि., ए. व. - 44; -न्धिं द्वि. वि., ए. व. - आलोकसन्धिं दिवसं करोतु, चक्खायतनं निस्साय इद्वसम्मत रुपायत आलम्बित्वा जा. अट्ठ. 4.276; आलोकसन्धिं दिवसन्ति एकदिवसेनेव आलोकूपनिस्सयं लभित्वा मनोधातावज्जनानन्तरं एव वातपानं करोतु, जा. अट्ट. 4.277; - कण्णभाग पु., द्व. उप्पज्जति कुसलविपाकं उपेक्खासहगतं चक्षविज्ञआणं, स., खिड़कियों के किवाड़ों के भाग एवं प्रकोष्ठ के कोनों रूपा. वि. 153(रो.). For Private and Personal Use Only
SR No.020529
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2009
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size10 MB
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