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आरभति
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आरभापेति
आरभन्तस्सेव सतो, अ. नि. अट्ठ. 2.221; - मि अद्य.. प्र. पु., ए. व. - मिगो अम्बत्थलमग्गं गहेत्वा पलायितुं आरभि, पारा. अट्ठ. 1.52; थेरो तीणि सरणानि दत्वा पञ्च सीलानि दातुं आरभि, अ. नि. अट्ठ. 2.108; - भिंसु अद्य., प्र. पु., ब. व. - अथस्स मत्थकतो धातुं ओरोपेतुं आरभिंसु, पारा. अट्ठ. 1.61; - भिस्सति भवि., प्र. पु., ए. व. - यस्मि पन ठाने निसीदित्वा में खादितुं आरभिस्सति, ध. प. अट्ठ... 1.96; - भिस्सामि उ. पु., ए. व. - तस्मा सासनं निम्मलं कातुं आरभिस्सामी ति, सा. वं. 41 - भिस्साम उ. पु., ब. व. - आरभिस्साम कारेतुं उपसम्पदमङ्गलं. चू. वं. 89.54; - मित्वान पू. का. कृ. - युज्झितुं आरभित्वान घातेसु ते पुनप्पुनं, चू. वं. 99.132; - भितब्बं नपुं.. सं. कृ., प्र. वि., ए. व. - तस्स वत्तं कातुं आरभितब्बं, चूळव. अट्ठ, 116; 2. ला. अ., हाथ में ले लेता है, निष्पादित करता है, सक्रिय हो जाता है, उद्योगशील हो जाता है, उत्पन्न करता है, उत्तेजित कर देता है, प्रेरित करता है, प्रयास करता है, व्यायाम करता है - ति वर्त, प्र. पु., ए. व. - एकच्चो पुग्गलो आरभति, न विप्पटिसारी होति, अ. नि. 2(1).156; आपत्तिवीतिक्कमनवसेन आरभति चेव, अ. नि. अट्ठ. 3.52; - भामि उ. पु., ए. व. - वीरियं आरभामि अप्पत्तस्स पत्तिया, अ. नि. 2(1).95; आरभामीति दुविधम्पि वीरियं करोमि, अ. नि. अट्ठ. 3.36; - न्ति प्र. पु., ब. व. - न वीरियं आरभन्ति, अ. नि. 1(1).87; आरभन्तीति दुविधम्पि वीरियं न करोन्ति, अ. नि. अट्ठ. 2.44; - थम. पु., ब. व. - तस्मातिह, भिक्खवे, भिय्योसोमत्ताय वीरियं आरभथ, म. नि. 3.124; - भाम उ. पु.. ब. व. - न नं आरभाम, विसुद्धि. 2.193; - न्तो पु., वर्त. कृ., प्र. वि., ए. व. - पन्हं आरभन्तो, अ. नि. अट्ठ. 2.177; - न्तेन तृ. वि., ए. व. - पुन आरभन्तेनापि आपुच्छितब्ब, महाव. अट्ठ. 321; -- तो ष. वि., ए.व. - वीरियमारभतो दळ्हं ध. प. 112; वीरियमारभतो दळ्हन्ति दुविधज्झाननिब्बत्तनसमत्थं थिरं वीरियं आरभन्तरस,ध. प. अट्ठ. 1.390; - भेय्य विधि०, प्र. पु., ए. व. - करुणाभावनायोगमारभेय्य ततो परं, ना. रू. प. 1350; - म्भथ अनु. म. पु., ब. क. - आरम्भथ निक्कमथ, युञ्जथ बुद्धसासने, स. नि. 1(1).183; आरम्भथाति आरम्भवीरियं करोथ, स. नि. अट्ठ. 1.195; - ते वर्त, प्र. पु., ए. व.. आत्मने. - अस्मिमानस्स पहानं आरभते, पेटको. 192; - मानो वर्त. कृ., आत्मने, प्र. वि., ए. व. - आरभमानो च
सङ्घपतो ताव आरभति, विसुद्धि. 2.264; - म्भव्हो अनु., म. पृ. ब. व. - आरम्भव्हो दळहा होथ, खन्तिबलसमाहिता, दी. नि. 2.180; आरम्भव्हो दळ्हा होथाति एवं सन्ते वीरियं आरभथ, दी. नि. अट्ठ. 2.235; - भि अद्य., प्र. पु., ए. व. -- विपस्सनं आरभि, पाचि. अट्ठ. 61; - भिं उ. पु., ए. व. - युझिं, इदानि एको व मच्चुना युद्धमारभिं, म. वं. 32.17; - भिंसु प्र. पु.. ब. व. - तेसं दुवे वीरियमारभिंसु, दी. नि. 2.201; - मिस्सति भवि., प्र. पु., ए. व. - न वीरियं आरभिस्सति तस्सङ्गणस्स. म. नि. 1.32; - मिस्सामि उ. पु., ए. व. - तस्स आदितो पभुति अत्थसंवण्णनं आरभिस्सामि, खु. पा. अट्ठ.3; - मिस्सन्ति प्र. पु., ब. व. - न वीरियं आरभिस्सन्ति, अ. नि. 2(1).100; - भितुं/टुं निमि. कृ. - अलमेव सद्धापब्बजितेन कुलपुत्तेन वीरियं आरभितु, स. नि. 1(2).27; आरभितुन्ति चतुरङ्गसमन्नागतं वीरियं कातुं, स. नि. अट्ठ. 2.44; - भित्वा पू. का. कृ. - ... विपस्सनं आरभित्वा नचिरस्सेव छळभिज्ञो अहोसि, थेरगा. अट्ठ. 1.77; विरियारम्भो, आरभितुं आरभित्वा आरब्भ, सद्द. 2.409; - मितब्बा स्त्री., सं. कृ., प्र. वि., ए. व. - मेत्ताभावना आरभितब्बा, विसुद्धि. 1.284; - भितब्बं नपुं., सं. कृ., प्र. वि., ए. व. - वीरियं
आरभितब्ब, चूळव. अट्ठ. 72; - भितब्बे पु.. सं. कृ., सप्त. वि., ए. व. - निद्देसे आरभितब्बे, पारा. अट्ट, 2.167. आरभति आ + रिभ (हिंसार्थक) का वर्त., प्र. पु., ए. व. [आलभते], शा. अ., दृढ़ता के साथ पकड़ लेता है, काबू में कर लेता है, ला. अ., आक्रमण करता है, मारने के लिए टूट पड़ता है, हिंसा करता है - रभति आरभति समारभति, सद्द. 2.409; - न्ति ब. व. - समणं गोतम उद्दिस्स पाणं आरभन्ति, म. नि. 2.35; आरभन्तीति घातेन्ति, म. नि. अट्ठ. (म.प.) 2.33; - थ अनु०, म. पु., ब. व. - इमं पाणं आरभथा ति, म. नि. 2.37. आरभन नपुं., आ + रिंभ से व्यु., क्रि. ना., प्रारम्भ कर देना, आरम्भ कर देने की क्रिया-नं प्र. वि., ए. व. - आरभनं आदिकरणं आरम्भो, अभि. प. सूची 41; आरम्भधातूति आरभनवसेन पवत्तवीरियं, अ. नि. अट्ठ. 3.111; - काल पु., तत्पु. स., प्रारम्भ करने का काल - लो प्र. वि... ए. व. - ... विपस्सनाय कम्म आरभनकालो, अ.नि. अट्ट, 3.256. आरमापेति आ + Vरभ' का प्रेर., वर्त.. प्र. पु., ए. व., प्रारम्भ क राता है, प्रारम्भ करने हेतु प्रेरित करता है - पयि अद्य.,
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