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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org xvii शब्दकोश देखने के लिए आवश्यक निर्देश Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1. शब्दों का क्रम - विन्यसन पालि-व्याकरणों में उल्लिखित देवनागरी वर्णमाला के अकारादि वर्णों के क्रम के अनुरूप किया गया है। 2. ह्रस्व-स्वर - परवर्ती अनुस्वार (निग्गहीत) युक्त शब्द का विन्यसन हस्व स्वर से प्रारम्भ होने वाले शब्दों के तुरन्त बाद में किया गया है, जैसे कि अकारादि शब्दों का प्रारम्भ 'अ' शब्द के साथ किया गया है तथा इनके उपरान्त परवर्ती अनुस्वारयुक्त 'अंस' आदि का विन्यसन हुआ है। 3. संज्ञा शब्दों का प्रातिपदिक रूप रख कर उसके आगे पु. या स्त्री या नपुं. लिखकर उसके विशिष्ट लिंग को दर्शाया गया है, जैसे कि अंस के तुरन्त बाद पु. लिखकर आगे उसके अंस, अंसेन एवं अंसे आदि रूप उल्लिखित किये गये हैं। 4. विशेषण - शब्दों का प्रातिपदिक-रूप रखकर उसके आगे त्रि. लिख दिया गया है, जैसे कि अंसव, अकक्कस, अक्खात, त्रि. आदि । 5. क्रियाविशेषण के रूप में व्यवहृत निपातों के आगे क्रि. वि. लिखा गया है तथा संज्ञा अथवा विशेषणों से व्युत्पन्न क्रियाविशेषणों को उस संज्ञा अथवा विशेषण के ही अन्तर्गत दर्शाया गया है जैसे, 'पर' के अन्तर्गत परं या परेन अथवा 'समीप' के अन्तर्गत समीपं या समीपे को रखकर क्रि. वि. लिख दिया गया है। 6. किसी भी एक शब्द के अलग-अलग अर्थों को अरबिक क्रमांक देकर दर्शाया गया है तथा उद्धरणों के उल्लेख में भी अरबिक अंकों का ही प्रयोग किया गया है। जैसे 'अधिवत्थ' में (पृ. 231) 1.क., 1. ख. इत्यादि और दी. नि. 2.76 म. नि. 2.251 इत्यादि । 7. उद्धरणों के लिए विपश्यना - विशोधन- विन्यास, इगतपुरी के वर्ष 1993 से 1998 तक मुद्रित संस्करण को ही प्रमुख आधार बनाया गया है क्योंकि इसी संस्करण में पालि- तिपिटक, अट्ठकथाएँ तथा अधिकतर मूलटीकाएँ एवं अनुटीकाएँ उपलब्ध हैं। इसी संस्करण के सन्दर्भ का अंकन सम्बद्ध उद्धरण के तुरन्त बाद किया गया है जैसे 'अधिवृत्थं खो मे ... अम्बपालिया गणिकाय भत्तं, दी. नि. 2.76 | 8. वि. वि. वि. इगतपुरी के संस्करण में सन्दर्भ उपलब्ध न रहने की स्थिति में केवल रोमन, नालन्दा अथवा अन्य उपलब्ध संस्करण के सन्दर्भ का ही अंकन उद्धरण के उपरान्त कर दिया गया है। उदाहरणार्थ महावंस, दीपवंस, चूळवंस, दाठावंस, गन्धवंस, सासनवंस, सद्धम्मोपायन, मोग्गल्लान-व्याकरण, कच्चायन-व्याकरण, सद्दनीति, अभिधानप्पदीपिका आदि ग्रन्थों के उद्धरण अन्य उपलब्ध संस्करणों से दिये गये हैं । 9. वि. वि. वि. एवं रोमन संस्करणों के बीच उपलब्ध पाठान्तर को संकेताक्षर पाठा. लिखकर सूचित किया गया है, जैसे कि 'अञ्जन' के अन्तर्गत 'अञ्जनारहो' का पाठा. अच्चनारहो। 10. गद्यभाग से गृहीत उद्धरणों के सन्दर्भाङ्कों में सम्बद्ध संस्करणों की पृष्ठ संख्या दी गयी है परन्तु थेरगाथा, थेरीगाथा, धम्मपद सुत्तनिपात दीपवंस, महावंस, खुदकपाठ, उदान धूळवंस, सद्धम्मोपायन, अभिधानप्पदीपिका, सद्धम्मसंगहो, अभिधम्मावतार, नामरूपपरिच्छेद, परमत्थ-विनिच्छय, सच्चसङ्क्षेप, खुद- सिक्खा, विनयविनिच्छय उत्तरविनिच्छय, गंधवंस, जिनचरित, जिनालंकार, अनागतवंस, तेलकटाहगाथा, थूपवंस, दाठावंस, वुत्तोदय, सुबोधालंकार, सच्चसंगहो जैसे गाथा-संग्रहों के उद्धरणों के सन्दर्भाङ्कों में गाथा - For Private and Personal Use Only
SR No.020529
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2009
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size10 MB
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