SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 166
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आमायदासी 139 आमिसगत तत्थ आमायदासाति दासिया कुच्छिम्हि जातदासा, जा. अट्ठ. 7.178. आमायदासी स्त्री., घरेलू दासी, घर की दासी से उत्पन्न लड़की या पुत्री - सी प्र. वि., ए. व. - यदि ते सुता बीरणी जीवलोके, आमायदासी अहुब्राह्मणस्स, जा. अट्ठ. 6.140; आमायदासीति गेहदासिया कुच्छिम्हि जातदासी, जा. अट्ठ. 7.140. आमावसेस नपुं, तत्पु. स. [आमावशेष], उदर में नहीं पचाए हुए भोजन का शेष भाग - सं द्वि. वि., ए. व. - आमावसेसं पाचेति, महाव. 297; आमावसेसं पाचेतीति सचे आमावसेसक होति, तं पाचेति, अ. नि. अट्ठ. 3.79. आमावासी स्त्री., [अमावासी, अमावस्या, अमावसी], महीने के कृष्णपक्ष की पन्द्रहवीं तिथि, अमावस्या की तिथि, द्रष्ट., अड्डमासी के अन्त.. आमास पु., आ + मस से व्यु., क्रि. ना. [आमर्श], विचारविमर्श, भोजन-ग्रहण - सं द्वि. वि.. ए. व. - सेनासनपरिभोगे पन आमासम्पि अनामासम्पि सब्बं वट्टति, कवा. अट्ठ. 249. आमासय पु., तत्पु. स. [आमाशय], पेट में वह स्थान, जहां पर अनपचा भोजन सञ्चित रहता है, पेट, उदर का ऊपरी भाग- यं द्वि. वि., ए. व. - यथा... पक्कासयं अज्झोत्थरित्वा आमासयं उक्खिपित्वा, म. नि. अट्ठ. (उप.प.) 3.132-33. आमिस नपुं.. [आमिष, वै., आमिस्], शा. अ., मांस, ला. अ. 1. आहार, विषय, शिकार के लिए चारा, शिकार, खाने योग्य भोजन, प्रतिज्ञात पुरस्कार, 2. सांसारिक सम्पत्ति, सुखद एवं प्रिय वस्तु, लाभ, लालच, भौतिक आवश्यकताएं, तृष्णा, पांच काम भोगों के विषय में तृष्णा - संप्र. वि., ए. व. - थो मंसं आमिसं पिसितं भवे, अभि. प. 280; 11043; मच्चुनो आमिसं दुरतिवत्तन्ति ते अरियपुग्गला अघस्स वट्टदुक्खस्स मूलभूतं, उदा. अट्ठ. 96; - सं. द्वि. वि., ए. व. - अमित्तमज्झे वसतो, तेस आमिसमेसतो, जा. अट्ठ. 3.274; आमिसन्ति खादनीयभोजनीयं, जा. अट्ठ. 4.52; भिक्खुनिया हत्थतो आमिसं पटिग्गहसीति, पाचि. 232; यथा च रसलोलो अन्धो भत्ते उपनीते यं किञ्चि समक्खिकम्पि निम्मक्खिकम्पि आमिसं आदियति, जा. अट्ठ. 5.362; मच्छोव घसमामिसं, थेरगा. 749; मच्छोव घसमामिसन्ति आमिसं घसन्तो खादन्तो मच्छो विय, थेरगा. अट्ट, 2.241; आमिसं बन्धनञ्चेतन्ति एते पञ्च कामगुणा नाम एवं इमस्स मच्छभूतस्स लोकस्स मारबालिसिकेन पक्खित्तं आमिसञ्चेव, जा. अट्ठ. 3.174; ते वे खणन्ति अघमूलं, मच्चुनो आमिसं दुरतिवत्त'न्ति, उदा. 85; आमिसं दुरतिवत्तन्ति ते अरियपुग्गला अघस्स वट्टदुक्खस्स मूलभूतं, मच्चुना मरणेन आमसितब्बतो आमिसं. उदा. अट्ठ. 95; आमिसम्पि दुविध -निप्परियायामिसं. परियायामिसन्ति, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).96; - से सप्त. वि., ए. व. - आमिसे पन, भन्ते, कथं पटिपज्जितब्बन्ति ? आमिसं खो सारिपुत्त, सब्बेसं समक भाजेतब्बन्ति, महाव. 479; स. उ. प. के रूप में कामा.. निप्परियाया, निरा., पच्चया., परियाया., मारा., लोका.. वन्तलोका., वट्टा., सा. के अन्त. द्रष्ट.. आमिसइद्धि स्त्री., तत्पु. स., उपभोग करने योग्य भौतिक सुखसाधनों की समृद्धि, पांच प्रकार के कामगुणों की प्रचुरता - द्धि प्र. वि., ए. व. - द्वेमा, ... इद्धियो, ... आमिसिद्धि च धम्मिद्धि च, अ. नि. 1(1).113. आमिसकथा स्त्री., तत्पु. स., 1. भोजन अथवा भोजनसामग्री के विषयों में बातचीत - यं सप्त. वि., ए. व. - आमिसकथायमेव आभिरमति, जा. अट्ठ. 4.62; 2. चीवर, पिण्डपात आदि चार प्रत्ययों से सम्बद्ध विन. वि. के एक खण्ड का शीर्षक, विन. वि. 1160-1162. आमिसकिञ्चिक्खनिमित्तं अ., क्रि. वि., थोड़े से आहार अथवा भोगसामग्री प्राप्त करने के लिए - आमिसकिञ्चिक्खहेतूति आमिसस्स किञ्चिक्खनिमित्तं, किञ्चि आमिसं पत्थेन्तोति अत्थो, पे. व. अट्ट, 95. आमिसकिञ्चिक्खहेतु अ०, उपरिवत् - अत्तहेतु वा परहेतु वा आमिसकिञ्चिक्खहेतु वा सम्पजानमुसा भासिता होति. म. नि. 1.360. आमिसकोट्ठास पु., कर्म. स., अपने द्वारा प्राप्य भाग के रूप में भौतिक सुख सामग्री, भोगसाधनों में अपना भाग - स्स ष. वि., ए. व. - धम्मकोट्ठासस्सेव सामिनो भवथ, मा आमिसकोट्ठासस्स, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).98. आमिसखार नपुं., तत्पु. स., कोष्ठबद्धता या कब्ज के उपचार के लिए प्रयुक्त मादक पेय, सूखे भात से तैयार किया गया एक पेय - रं द्वि. वि., ए. व. - अनुजानामि, भिक्खवे, आमिसखारं पायेतन्ति, महाव. 282; आमिसखारन्ति सुक्खोदनं झापेत्वा ताय छारिकाय पग्धरितं खारोदक, खण्ड आमिसगत त्रि., शिकार को पकड़ने के लिए चारा के रूप में प्रयुक्त (कांटा या बंसी)- तं पु., द्वि. वि., ए. व. - सेय्यथापि, भिक्खवे, बाळिसिको आमिसगतं बळिसंगम्भीरे उदकरहदे पक्खिपेय्य, स. नि. 1(2).205. For Private and Personal Use Only
SR No.020529
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2009
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy