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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अच्छुपियन्ति 59 अज अच्छपियन्ति अच्छुपेति का कर्म. वा., वर्त. प्र. पु., ब. व., सन्निविष्ट किये जाते हैं, किसी में रख दिये जाते हैं - बहलानि मण्डलानि न अच्छुपियन्ति, चूळव. 230; - पेसि अद्य., प्र. पु., ए. व. - अथ खो सो भिक्खु अग्गळं अच्छुपेसि, महाव. 380; - पेय्यं विधि., उ. पु., ए. व. - यंनूनाहं अग्गळं अच्छुपेय्यं महाव. 380. अच्छेदसत्री त्रि., लूटे जाने की शंका से आक्रान्त - विनो पु., प्र. वि., ब. व. - अच्छेदसंकिनोपि फन्दन्ति, महानि. 363; अच्छेदसंकिनोपि फन्दन्तीति अच्छिन्दित्वा पसरह बलक्कारेन गहिस्सन्तीति उप्पन्नसकिनोपि चलन्ति, महानि. अट्ठ. 127. अच्छेर त्रि., अद्भुत आश्चर्यकर - रो पु., प्र. वि., ए. व. - नायं अज्जतनो धम्मो, नच्छेरो नपि अभुतो, थेरगा. 552; - रं नपुं.. प्र. वि., ए. व. - अच्छेरं वत बुद्धानं, गम्भीरो गोचरो सको, थेरगा. 1088; अच्छेरं वत लोकस्मि, अब्भुतं लोमहसनं, जा. अट्ठ. 7.272; पाठा. अच्छरिय, तुल. आचेर, मच्छेर; - क त्रि., अच्छेर से व्य., आश्चर्यजनक-कं नपुं.. प्र. वि., ए. व. - अच्छेरकं मं पटिभाति, एककम्पि रहोगतं. जा. अट्ठ. 6.30; - कं द्वि. वि., ए. व. - इदं अच्छेरकं दिस्वा, अब्भुतं लोमहसनं, जा. अट्ट. 7.272; - तर त्रि., अच्छेर का तुल. वि., दूसरों की तुलना में अधिक आश्चर्यजनक - इतोपि अच्छेरतरं वि. व. 966(रो.); - रूप त्रि., ब. स., आश्चर्यजनक, चमत्कारपूर्ण, अत्यद्भुत - पं नपुं॰, प्र. वि., ए. व. - अच्छेररूपं पटिभाति मं इदं, स. नि. 1(1).210; अच्छेररूपं सुगतस्स आणं, पे. व. 453; तत्थ अच्छेररूपन्ति अच्छरियसभावं, पे. व. अट्ठ. 170. अच्छोदक त्रि., अच्छ + उदक [अच्छोदक], स्वच्छ जल वाला, निर्मल जल से युक्त - का स्त्री.. प्र. वि., ए. व. - पोक्खरणी अच्छोदका सातोदका सीतोदका सेतका सुपतित्था रमणीया, म. नि. 1.110; स. नि. 1(1).108; अच्छोदकाति तनुपसन्नसलिला, उदा. अट्ठ. 326. अच्छोदिक त्रि., अच्छोदक का ही अप. [अच्छोदक], उपरिवत् - का स्त्री॰, प्र. वि., ए. व. - अच्छोदिका पुथुसिला, गोनङ्गुलमिगायुता, थेरगा. 601; अच्छोदका ति वत्तब्बे लिङ्गविपल्लासेन अच्छोदिका ति वृत्तं, थेरगा. अट्ठ. 1.243. अज पु.. [अज], बकरा - जा प्र. वि., ब. व. - इमे ... अजा पसू मनुस्सा, मि. प. 111; - क पु., अज से व्यु., [अजक]. छोटा बकरा - का प्र. वि., ब. व. - अजकापि पसुकापि उपरोपे विहेठेन्ति, चूळव. 281; - करणी स्त्री., एक नदी । का नाम - तदा नदी अजकरणी रमेति मं, थेरगा. 307; - कलापक पु.. 1. झुंड में बकरों की बलि स्वीकार करने वाले एक यक्ष का नाम - सो किर यक्खो अजे कलापे कत्वा, बन्धनेन अजकोट्ठासेन सद्धिं बलिं पटिच्छति, न अजथा, तस्मा अजकलापको ति पञआयित्थ, उदा. अट्ठ. 52; 2. एक चैत्य का नाम - एक समयं भगवा पावायं विहरति अजकलापके चेतिये, उदा. 74; - कोट्ठास पु.. बलि के अंश के रूप में बकरे - सेन त. वि., ए. व. - अजकोट्ठासेन सद्धिं बलिं पटिच्छति, उदा. अट्ठ. 52; - चम्म नपुं.. [अजचर्म], बकरे का चमड़ा - एळकचम्म अजचम्म मिगचम्म, महाव. 270; - पथ पु., बकरों के जाने योग्य मार्ग-थं द्वि. वि., ए. व. - अजपथन्ति अजेहि गन्तब्बमग्ग, महानि. अट्ट, 222; अजपथं सङ्कपथं वेत्तपथं गच्छति, मि. प. 260; - पद त्रि., ब. स. [अजपद], अजपादसदृश, बकरे के पैरों के समान - देन पु.. प्र. वि., ए. व. - अजपदेन दण्डेन सुनिग्गहितं निग्गण्हेय्य, म. नि. 1.187; अजपदेन दण्डेन उप्पीळेन्तो दुब्बलं कत्वा सीसं दळ्हं गहेत्वा निप्पीलि, जा. अट्ठ. 4.413; - पददण्ड पु., बकरे के खुर के समान फटी छड़ी, बकरे के फटे खुर के समान फटी आकृतिवाली छड़ी - ण्डं द्वि. वि., ए. व. - यथा हि पुरिसस्स सायं गेहं पविट्ठ सप्पं अजपददण्डं गहेत्वा परियेसमानस्स, ध. स. अट्ठ. 218; - पदसण्ठान त्रि., ब. स., बकरे के खुर के समान आकृतिवाला - ने पु., सप्त. वि., ए. व. - तं ससम्भारघानबिलस्स अन्तो अजपदसण्ठाने पदे से यथावुत्तप्पकारा हुत्वा तिट्ठति, अभि. अव. 84; - पाल पु.. एक पुरोहित के पुत्र का नाम - चतुत्थस्स जातकाले अजपालो ति नाम करिंसु, जा. अट्ठ. 4.432; - पालक' पु.. [अजपालक], गड़रिया, अजों का पालन करने वाला - अथेको अजपालको अनेकसहस्सा अजा गोचरं नेन्तो सुसानपस्सेन गच्छति, ध. प. अट्ठ. 1.102; - पालक नपुं.. एक प्रकार के पादप-विशेष का नाम - कुटुंतु अजपालक अभि. प. 303; कुटुं रोगेअजपालके, अभि. प. 1120; - पालकथा स्त्री., महाव. के अन्तर्गत आयी हुई एक कथा का शीर्षक, महाव. 3; - पालतरु पु.. [अजपालतरु], अजपाल नामक वटवृक्ष, बरगद का पेड़, निरञ्जना नदी के तट पर उरुवेला के समीप का वह वटवृक्ष जहां भगवान् बुद्ध ने बोधिलाभ के पश्चात्, पंचम सप्ताह तथा अष्टम सप्ताह व्यतीत किया था - पञ्चमे सत्ताहे ... अजपालनिग्रोधो तेनुपसङ्कमि .... जा. अट्ठ. 1.87; 89; अट्ठमे सत्ताहे अजपालनिग्रोधमूले निसिन्नो, ध, प. अट्ठ. 1.51; - For Private and Personal Use Only
SR No.020528
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2007
Total Pages761
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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