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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org असन्थत 7.176: असन्तुलेप्यो... सत्तविधेन रतनेन सद्धिं न तुलेतब्बोति, तदे.. असन्थत त्रि., सन्धत का निषे [असंस्तृत], शा. अ. नहीं ढका हुआ, नहीं बिछाया या फैलाया हुआ नहीं लपेटा हुआ ताय पु. च. कि. ए. व. मुख अभिनिसीदेन्ति सन्धतस्स असन्थताय, पारा 37; ला. अ. वस्त्र या गलीचे द्वारा नहीं ढका हुआ, खुला हुआ ते पु, सप्त, वि. ए. व. अतीता नवुति कप्पा.. नाभिजानामि निविखत्ते पादे भूम्या असन्धते, अप. 1.327. असन्थम्मनभाव पु.. [असंस्तम्भभाव] शरीर को सख्त या कड़ा नहीं बनाना, शरीर में ऐंठन या जड़ता उत्पन्न न करना, अनम्यता, कड़ापन का अभाव वो प्र. वि., ए. व. अब्भोकासवासो विय कार्य न सन्धम्भेतीति कायस्स असन्थम्भनभावो पञ्चमो, जा. अट्ठ. 1.13. असन्धव पु.. सन्धव का निषे [असंस्तव], जान-पहचान या घनिष्टता का अभाव, अपरिचय, घनिष्टता या मेल-जोल का न होना वा पु. प्र. वि. ब. व. अपिहा नून 'मयिपि तव पुत्तकेपि अपिहा असन्धवा मज्जे, थेरगा. अड. 2.45: वं नपुं. प्र. वि., ए. व. - अनिकेतमसन्थवं, एवं वे मुनिदस्सनं, सु. नि. 209; सन्धवपटिक्खेपेन च असन्धवं वेदितब्ब, सु. नि. अड. 1.215; सत्तसङ्कारवत्थुकस्स तण्हासन्थवस्स अभावा असन्धवो नाम, तं अनिकेत असन्धर्व को हनिस्सतीति अधिप्पायो, जा. अट्ठ 6.74. असन्धुत संथ के पू. का. कृ. का निषे, [असंस्तुत ]. अपरिचित, अनजान, संसर्ग में नहीं आया हुआ - तं द्वि. वि. ए. व. - असन्धुतं मं चिरसन्धुतेन, निमीनि सामा अधुवं धुवेन जा. अड. 3.53: तत्थ असधुतन्ति अकतसंसग्गं तदे विस्सासी त्रि. [असंस्तुतविश्वासिन्] अपरिचित जनों पर विश्वास करने वाला, अनजान लोगों पर भरोसा रखने वाला असन्धवविस्सासीति अत्तना सद्धि सन्धर्व अकरोन्तेषु विस्सास अनापज्जन्तेसुयेव विस्सासं करोति, 31. f. 31. 3.45. असन्दिद्विपरामासी त्रि, सन्दिद्विपरामासी का निषे. [अस्वदृष्टिपरामर्शिन् ] केवल अपने ही मत को पकड़कर न रहने वाला, मिथ्या-दृष्टि से रहित मयमेत्थ असन्दिद्विपरामासी अनाधानग्गाही सुप्पटिनिस्सग्गी भविस्सामा ति सल्लेखो करणीयो, म. नि. 1.54. असन्दिद्ध त्रि [असंदिग्ध] सन्देहरहित सुस्पष्ट इं नपुं द्वि. वि. ए. व.. क्रि. वि., सुस्पष्ट रूप से, बिना किसी - 676 असन्निधिकारपरिभोगी संदेह के असंदिग्रञ्च भणति, अ. नि. 3 (1).38: असन्दिद्धन्ति निस्सन्देहं विगतसंसयं, अ. नि. अट्ठ. 3.216; असन्दिट्ठ वियाकासि, उपतिस्सेन पुच्छितो, अप. 2.129. असन्देह पु. सन्देह का निषे, तत्पु, स. [असन्देह ] निश्वय, सन्देह का अभाव हेन तृ. वि. ए. व. क्रि. वि., बिना सन्देह के तत्थ निस्संसयन्ति असन्देहेन एकन्तेनाति अत्थो, उदा. अट्ठ. 129. असन्दोसधम्म त्रि., ब० स० [अद्वेषधर्मन् ], द्वेष से रहित चित्तवृत्ति से युक्त, द्वेषमुक्त जीवनवृत्ति वालाम्मं नपुं. प्र. वि. ए. व. असन्दोसधम्मं मे चित्तन्ति पञाय चित्तं सुपरिचित होति. अ. नि. 3 ( 1 ) 212. असन्धिता स्त्री असन्धि का भाव [असन्धित्व] सन्धि, जोड़ या मेल-जोल का अभाव ता प्र. वि., ए. व. नाहं असन्धिता पक्खो, न बधिरो असोतता, जा. अट्ठ. 6.19; तत्थ असन्धिताति सन्धीनं अभावेन जा. अड. 6.20. असन्धिमित्ता स्त्री. व्य. सं. सम्राट अशोक की पटरानी " " यच. वि., ए. व. - द्वे घटे अग्गमहेसिया असन्धिमित्ताय, पारा. अट्ठ. 1.31. असन्धेय्य त्रि. सं + √धा के सं० कृ० का निषे. [असन्धेय]. पुनः एक साथ न जोड़ने योग्य पुनः न जोड़ सकने योग्य •य्यो पु. प्र. वि. ए. व. असन्धेय्योव सो जेथ्यो, देवा भिन्नसिला विय, विन. वि. 242. 1 For Private and Personal Use Only - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - असन्नत त्रि, सं. + √नम के भू. क. कृ. का निषे. [ असन्नत], शा. अ. नहीं झुका हुआ, ला. अ. सम्मान व्यक्त न करने वाला, उद्दण्ड ता पु०, प्र. वि., ब.व. मानिनो ब्राह्मणा वापि गुरूसूपि असन्नता, सद्धम्मो 417. असन्निद्वानचरण नपुं. कर्म. स. अनियमित भिक्षाटनणं द्वि. वि. ए. व. अनवद्वितचारिकन्ति असन्निद्वानचरणं महानि, अड. 316. असन्निधिकत त्रि. निषे तत्पु, स. [असन्निधिकृत ] सञ्चय न किया हुआ, जुटाकर या बटोर कर न रखा गया - तेन नपुं०, तृ. वि., ए. व., क्रि. वि., सञ्चित न किए जाने से असन्निधिकतेन अत्थतं होति कथिनं, महाव. 332. असन्निधिकारक त्रि. निषे, तत्पु० स० [असन्निधिकारक], जोड़-बटोर कर या संग्रह करके न रखने वाला प्र. वि., ब. व. ये हि निक्खित्तजातरूपरजता असन्निधिकारकाव हुत्वा केवले... अहेसु सु. नि. अड्ड. 2.45. असन्निधिकारपरिभोगी त्रि. चीजों का संग्रह करके भोग न करने वाला सञ्चित भोगसाधनों का उपभोग न करने का पु०,
SR No.020528
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2007
Total Pages761
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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