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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अरूप रहित चार प्रकार के आलम्बनों वाला वह ध्यान, जो रूपध्यान के उपरान्त किया जाता है तथा जिस में मन को स्थूल से सूक्ष्म की ओर ले जाने वाले चार अङ्ग रहते हैं - स्सष. वि. ए. व. चित्तमरूपज्यानस्स आलम्बा चतुरो मता, सद्धम्मो 464 द्वायी त्रि. [ अरूपस्थायिन् ] अरूपी ब्रह्मलोकों में निवास करने वाला यिनो पु. प्र. वि. ब. व. ये च रूपूपगा सत्ता ये च अरूपट्टायिनो इतिवु 46: स. नि. 1 ( 1 ) 155; तण्हा स्त्री, तत्पु. स. [ अरूपतृष्णा ]. अरूप भूमि में निवास करने की तृष्णा अपरापि तिस्सो तण्हा रूपतण्हा, अरूपतण्हा, निरोधतण्हा, दी. नि. 3.172; अरूपभवे छन्दरागो अरूपतण्हा, दी. नि. अ. 3.155; कामतण्हा, भवतण्हा, विभवतण्डा, रूपतण्हा, अरूपतण्हा निरोधतन्हा महानि. 6 धम्म पु. तत्पु. स. [ अरूपधर्म] रूपलोक से ऊपर वाले लोक का धर्म म्मा प्र. वि. ब. व. इमे व अरूपधम्मा छसद्वि च रूपधम्माति सब्बेपि समोधानेत्वा ..., अ. नि. अट्ठ. 2. 157; ताव किञ्चापि अरूपधम्मा विय रूपधम्मापि कम्मसमुद्वाना अस्थि, छ. स. अ. 377 धातु स्त्री. कर्म. स. [ अरुपधातु] रूप से रहित प्राणियों वाला लोक या क्षेत्र तुं द्वि. वि. ए. व. - इमं लोकं नासीसति कामधातुं परं लोकं नासीसति रूपधातुं अरूपधातुं महानि, 43: तु प्र. वि. ए. व. रूपधातु एवं मम... अरूपधातु एतं मम पटि. म. 125: - या सप्त. वि., ए. व. अरूपधातुया चत्तारो खन्धा, द्वे आयतनानि विभ. 475, धातुकथा स्त्री, कथा की एक कथा का शीर्षक - अरूपधातुकथा अरूपिनो धम्मा अरूपधातृति अरूपधातुकथा निद्विता, कथा 3.08-309 धातुपटिसंयुत्त त्रि.. तत्पु. स. [ अरुपधातुप्रतिसंयुक्त ] अरूपधातु के साथ जुड़ा हुआ तो पु. प्र. वि. ए. व. रूपधातुअरूपधातुपटिसंयुतो रागो सारागो चित्तस्स सारागो अयं वुच्चति भवतण्हा, विभ. 423: अभिधम्मे पनेता कामधातुपटिसंयुत्तो - - www.kobatirth.org - 579 अरूपधातुपटिसंयुक्तोति एवं वित्थारिता दी. नि. अड. 3.154 - धातुवेपक्क त्रि. तत्पु, स. [ अरूपधातुवैपाक्य ]. अरूपधातु में विपाक प्राप्त करने वाला क्कं नपुं. द्वि. वि. ए. व. अरूपधातुवेपक्कञ्च, आनन्द, कम्मं नाभविस्स अपि न खो अरूपभवो पञ्चायेथाति, अ. नि. 1 (1).254: परिग्गह पु. तत्पु. स. [ अरूपपरिग्रह] अरूपधातु या अरूपलोक का कर्मस्थान के रूप में दृढ़ता से ग्रहण, कर्मस्थान हो प्र. वि. ए. व. रूपपरिग्गहो अरूपपरिग्गहोतिपि एतदेव वुच्चति म. नि. अट्ठ. ( मू.प.) अरूप 1 (1) 286 अहारससु धातूसु अडेकादसधातुयो रूपपरिग्गहो अड्ढट्ठमकधातुयो अरूपपरिग्गहोति रूपारूपपरिग्गहोव कथितो, म. नि. अट्ट. (उप.प.) 3.74 हं द्वि. वि. ए. व. - अरूपकम्मट्टानन्ति अरूपपरिग्गह म. नि. टी. (म.प.) 1 ( 1 ) 329 पुञ्ञ नपुं तत्पु, स. [ अरूपपुण्य ] अरूप लोक में किया गया पुण्य जानि प्र. वि. द. क वतारारूपपुज्ञानि सब्बे पाका अनुत्तरा, अभि. अब 47 यानि चारूपपुज्ञानि, सरूपेनीरितानि तु, अभि. अव० 128; प्पटिसंयुत्त त्रि तत्पु, स. [ अरूपप्रतिसंयुक्त ] अरूपलोक के साथ जुड़ा हुआ तो पु. प्र. वि. ए. व. - अरूपप्पटिसतो विमोक्खो अयं निरामिसो विमोक्खो पटि॰ म॰ 227; - भव पुढे, कर्म. स. [ अरूपभव], तीन प्रकार के भवों या अस्तित्वों में से एक, अरूपलोक में प्राप्त होने वाला भव वो प्र. वि. ए. व. अपि न खो अरूपभवो पञ्ञायेत्था ति अ. नि. 1 (1) 254 सेय्यधिदं कामभवो वा रूपभवो वा अरूपभवो वा दी. नि. 2.45; वे सप्त वि.. ए. व. - बुद्धसतेनपि बुद्धसहस्सेनपि गन्त्वा बोधेतुं असक्कुणेय्ये अरूपभवे निब्बतिस्सामीति जा. अड. 1.64 वा प्र. कि.. ब. व. - द्वे अरूपभवाति अपरेनयि परियायेन सङ्ग्रहतो छ भवा?, विभ. अड. 177 - मग्गसमीत्रि अरूपलोक में उत्पत्ति प्राप्त कराने वाले मार्ग से युक्त ङ्गी पु.. प्र. वि.. ए. व. - चित्तं अभिनीहरति अभिनिन्नामेति आरूप्पमग्गसमङ्गीति, महानि, 204 आरूपमग्गसमङ्गीति अरूपसमापत्तिया गमनमग्न अपरिहीनो महानि, अट्ठ 288 राग पु.. तत्पु. स. [ अरूपराग] अरूपलोक में उत्पत्ति के प्रति मानसिक लगाव, अर्हत्व मार्ग पर चल रहे साधक द्वारा नष्ट किये जाने योग्य पांच ऊर्ध्वभागीय संयोजनों में से एक गो प्र. वि. ए. व. पज्य उद्धम्भागियानी सञ्ञोजनानि रूपरागो अरूपरागो, मानो, उद्धव्यं, अविज्जा दी. नि. 3.187; अरहत्तमग्गेन रूपरागो, अरूपरागो, मानो, उद्धच्चं अविज्जा- इमानि पञ्च सञ्ञोजनानि पहीयन्ति, पटि. म. लोक पु०, तत्पु० स० [ अरूपलोक], रूप और आकार से रहित ब्रह्माओं का लोक- के सप्त. वि., ए. व. 275; रूपगरुभारमुज्झिय अरूपलोके पि सङ्गमपहाय, सद्धम्मो, 494: विपाक त्रि. ब. स. [ अरूपविपाक ] अरूप-भव से प्राप्त विपाक कानि नपुं. प्र. वि. व. क. चत्तारि ब० अरूपविपाकानीति एवं चतुब्बिधं विञ्ञाणं होतीति, विभ. अ. 144 विभाग पु. रूपा. वि. के एक भाग का शीर्षक, रूपा. वि. 151-159; सङ्गात त्रि. ब. स. [ अरूपसंख्यात]. - For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir --
SR No.020528
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2007
Total Pages761
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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