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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अमतम्बु वि. ए. व. एवमेव किलेसमलपोवने अमतमहानिब्बानतळाके विज्जन्ते... जा. अड्ड. 1.6. अमतम्बु नपुं. अमृत 1 से युक्त धर्म-कथा का जल, अमृत का जल, अमृत की वर्षा, अमृत जैसे धर्म वचनों का जलना तृ. वि. ए. व. सदेवकं तप्पयन्तो अभिवस्सि अमतम्बुना बु. व. 20.2: अमतम्बुनाति अमतसङ्घातेन धम्मकथासलिलेन तप्पयन्तो पावस्सीति अत्थो, बु. वं. अट्ठ. 267. अमतरंस त्रि, केवल स. उ. प. के रूप में प्रयुक्त, अमृत की किरणों से युक्त, अमृत का रस परिपीतामतरंसं सद्धम्मोसधभाजन, सद्धम्मो 571; पाठा. अमतरस. अगतरस पु. [अमृतरस] अमृत का रस, निर्वाण का रस सं द्वि. वि., ए. व. सराजिकानं रवासिनं अमतरसं अदासि सा. वं. 34 (ना.) अमतरसं पायेसि सा. वं. 154 (ना.); - भागी त्रि. [ भागिन् ], निर्वाण के रस का भागीदार, निर्वाण के रस का भाग पाने वाला नो पु., प्र. वि. ब. व. सुत्वा सत्ता अमतरसभागिनो भवन्तीति सद्द · www.kobatirth.org 1.161. अमतरहद पु. [अमृतहृद], अमृत का सरोवर, निर्वाण का सरोवर, निर्वाण का हृद - दं द्वि. वि., ए. व. - अमतरहदं गवेसमाना परिसति निसिन्नं अतिविसारदं नारदसम्मासम्बुद्ध अद्दसंसु, बु. वं. अट्ठ. 213. अमतवग्ग पु., स. नि. के एक वर्ग का शीर्षक, स. नि. 3(1),259-265. अमतवस्सा स्त्री. [अमृतवर्षा] अमृत जैसे धर्म-वचनों की वर्षा स्सं द्वि. वि., ए. व. - धम्मं देसेति अमतवस्सं वस्सन्तो विय, रस. 1.6 (रो० ). अमतवाद त्रि.. [अमृतवाद], निर्वाण का कथन करने वाला, निर्वाण को अमृतपद बतलाने वाला दो पु. प्र. वि. ए. अमतवादो ति निब्बानवादो एवं मुनि सन्तिवादो, महानि. 148. व. - " 525 सो पु०, प्र. वि., ए. व. स. नि. अट्ट० 1.133; सा अगताति अमतसदिसा सादुभावेन, अमतसदिसत्र [अमृतसदृश] अमृत के समान, अमृत जैसा मधुर या स्वादिष्ट अतिमधुरो अमतसदिसो स्त्री. प्र. कि. ए. व. सु. नि. अड. 2.114. अमतसभाव त्रि, ब० स० [ अमृतस्वभाव], स्वभाव से ही अविनाशी, प्रकृत्या, अविनश्वर त नपुं भाव, अविनाशी स्वभाव वाला होना ततो अमतसभावत्ता चवनाभावो, उदा. अट्ठ. 318. 3, ... अमतप्पत्तिपटिपदा अमतसम त्रि. [अमृतसम], अमृत-सदृश, अमृत के समान मं नपुं. प्र. वि. ए. क. अमतसमं महाराज, धुतगुणं विशुद्धिकामानं राब्बकिलेसविसनासनद्वेन मि. प. 320. अमता स्त्री० [ अमृता ], आमलक, आंवला, एक प्रकार की लता अमतामलकी तिसु अभि. प. 569. अमताकार त्रि. [अमृताकार] अमृत के समान मधुर आकार वाला रंनपुं द्वि. वि. ए. व. न पुनो अमताकारं परिसस्सामि मुखं तव अप. 2206 थेरीगा. अड. 172. अमताधिगत त्रि.. [अमृताधिगत] अमृतपद निर्वाण को प्राप्त, अच्युतपद को प्राप्त तो पु. प्र. वि. ए. व. अमताधिगतो कच्चि निब्बानमच्युतं पदं, अप. 1.23. अमताधिगमहेतु पु तत्पु, स० [अमृताधिगमहेतु] निर्वाण के अधिगम का कारण, निर्वाण की प्राप्ति का कारण तो प्र. वि. ए. व. अमताधिगमहेतुतो च महलन्ति वृच्चति, खु. पा. अट्ठ. 115. अमतापण नपुं. [अमृतापण]. अमृत अर्थात सुधा की मंडी या दुकान, सुधा का भण्डार णं द्वि. वि. ए. व. - ब्याधितं जनतं दिवा, अमतापणं पसारयि, मि. प. 305. अमतामिसेक पु. [ अमृताभिषेक], सुधा का छिड़काव, अमृत के छींटे देना को प्र. वि. ए. व. अमताभिसेको ति दब्बों, स. नि. अड. 2.221 सदिस त्रि.. [ सदृक]. अमृत के छिड़काव जैसा सेन पु. तृ. वि., ए. व. पण्डितजनहृदयानं अमताभिसेकसदिसेन ब्रह्मस्सरेन भासमानस्सापि म. नि. ( मू.प.) 1 ( 1 ) . 61. अमतारम्मण त्रि.. [अमृतालम्बन] अमृत के आलम्बन वाला णं प्र. वि., ए. व. - अमतारम्मणं संयोजनन्ति ? आमन्ता, कथा. 328; - कथा स्त्री, कथा के एक भाग का शीर्षक, - " " -- For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - कथा. 328-330. अमतावह त्रि [अमृतावह ]. अमृत अर्थात् निर्वाण को लाने सतसाखरे तस्मिं पसादो वाला हो पु. प्र. वि. ए. व. अमतावहो, अप. 2.109. अमतासित त्रि [अमृताधिक्त ] अमृत या सुधा से आई किया हुआ, सुधा से अच्छी तरह सिञ्चित या गीला कर दिया गया धम्मजं उग्गहदयं अमतासित्तसन्निभं अप. 2.112. " अमति अम (जाना) का वर्त. प्र. पु. ए. व. जाता है, आगे बढ़ता है अम गतियं, अमति, सह 2.412. अमतप्पत्तिपटिपदा स्त्री. [अमृतप्राप्तिप्रतिपत्] निर्वाण की प्राप्ति का मार्ग, निर्वाण के अधिगम का मार्ग या प्रतिपदा
SR No.020528
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2007
Total Pages761
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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