SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 48
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अक्खोब्म अक्खिगूथ प्र. वि., ब. व. - आळारपम्हाति विसालक्खिगण्डा, जा. अट्ठ. 7.260. अक्खिगूथ पु./न.. [अक्षिगूथः], आंख का कीचड़ या मल - अक्खिमलन्ति अक्खिगूथं, पे. व. अट्ठ. 171; -- क पु.. उपरिवत् - अक्खिम्हा अक्खिगूथको, सु. नि. 199; पीळकोळिकाति अक्खिगूथको, थेरीगा. अट्ठ. 281. अक्खिछिद्द नपुं॰ [अक्षिछिद्र], आंख का छिद्र - द्वीहि अक्खिच्छिद्देहि अपनीततचमंससदिसो अक्खिगूथको, सु. नि. अट्ठ. 1.209. अक्खिज त्रि., [अक्षिज], आंख पर विद्यमान बरौनी -- पम्हं पखुममक्खिज, अभि. प. 259. अक्खितारका स्त्री., तत्पु. स. [अक्षितारका], आंख की पुतली - तेनस्स एवरूपा अक्खितारका अहेसुं. म. नि. अट्ट (मू.प.) 1(1).362; ... केसे वा पित्ते वा अक्खितारकाय वा करोति, ध, स. अट्ठ. 235. अक्खित्त' त्रि., खित्त का निषे. [अक्षिप्त], अनुपेक्षित, अनिन्दित, अतिरस्कृत - ... याव सत्तमा पितामहयुगा अक्खित्तो । अनुपक्कुट्ठो जातिवादेन .... सु. नि. (पृ.) 173 = दी. नि. 1.99. अक्खित्त त्रि., [आक्षिप्त], दूर तक खींचकर ले जाया गया, दूर ले जाकर फेंक दिया गया - अक्खित्ता वातवेगेन, जा. अट्ठ. 3.223. अक्खिदल नपुं., तत्पु. स. [अक्षिदल], आंख की पलक, नेत्रच्छद - हेविमं अक्खिदलं अधो सीदति, उपरिमं उद्धं लड्डेति, दी. नि. अट्ठ. 1.158. अक्खिपटल नपुं.. तत्पु. स. [अक्षिपटल], आंख की झिल्ली या झिल्लिका - सत्तक्खिपटलानि व्यापेत्वा, ध. स. अट्ठ. 342. अक्खिपात पु., तत्पु. स. [अक्षिपात], दृष्टिपात, नज़र का गिरना, स. उ. प. में ही प्रयुक्त, द्रष्ट. मन्द, के अन्त... अक्खिपूजा त्रि., तत्पु. स. [अक्षिपूजा], एक महोत्सव का नाम; सम्राट अशोक द्वारा प्रार्थित होकर चार बुद्धों के दर्शनकारी ऋद्धिसम्पन्न महाकालरूप नागराज ने सम्राट को सम्यक-सम्बुद्ध का निर्मित रूप प्रदर्शित करवाया. बुद्ध के मनमोहक रूप को देखकर सम्राट अतिविस्मित हो उठे. इस रूपदर्शन से प्रभावित होकर महान् सम्राट ने सप्ताहपर्यन्त निरन्तर अक्षिपूजा नामक महोत्सव करवाये थे - अक्खिपूजं ति सञआतं तं सत्ताहं निरन्तरं महामहं महाराजा कारापेसि महिद्धिको, म. वं. 5.94. अक्खिपूर त्रि., आंखों में पूरी तरह से भरा हुआ, आंखों को पूर्णरूप से भर देने वाला - सो अक्खिपूरानि अस्सूनि गहेत्वा, जा. अट्ठ. 7.36. अक्खिमण्डल नपुं, तत्पु. स. [अक्षिमण्डल], आंख का गोल घेरा - एतस्मिं अक्खिमण्डले उभोसु कोटीसु विसगन्धं वायन्तो निब्बत्तति, थेरीगा. अट्ठ. 281; अक्खिमल नपुं, तत्पु. स. [अक्षिमल], आंख से निकलने वाला कीचड़ या मैल - अक्खिमलन्ति अक्खिगूथं, पे. व. अट्ठ. 171.. अक्खिरोग पु., तत्पु. स. [अक्षिरोग], आंख का रोग - मज्झिममासे सम्पत्ते अक्खिरोगो उप्पज्जि, ध. प. अट्ठ. 1.6. अक्खिलोम नपुं, तत्पु. स. [अक्षिलोमन्], आंख का रोयां, बरौनी - अक्खिलोमानि च भगवतो ... उमापुप्फसमान, महानि. 261. अक्खुद्दावकास त्रि., ब. स., पर्याप्त आकार-प्रकार से सम्पन्न, दिखने में सुस्पष्ट - अखुद्दावकासोति एत्थ भगवतो अपरिमाणोयेव दरसनाय ओकासोति वेदितब्बो, दी. नि. अट्ठ. 1.229. अक्खेतुं आ + Vखी का निमि. कृ. [आक्षेतु?], विनाश करने के लिए, अन्त करने के लिए - अक्खेतुं खेपेतु विनासेतुं उलति पवत्तेतीति अक्खुलो, उदा. अट्ठ. 54. अक्खेम/अखेम त्रि., खेम का निषे०, ब. स. [अक्षेम], असुरक्षित, अमंगलमय - अकुसलन्ति सावज्जं अक्खेमञ्च, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).121; - ता स्त्री॰, भाव., असुरक्षित स्थिति, अमंगलमय अवस्था - तन्निस्सितस्स च अखेमतं चिन्तेत्वा .... ध. स. अट्ट. 255; -- भाव पु.. तत्पु. स., अमंगल का भाव - तेसं द्विन्नम्पि अखेमभावं चिन्तेत्वा ...., ध. स. अट्ठ. 255. अक्खेय्य त्रि., अक्खाति का सं. कृ. [आख्येय], अच्छी तरह कहे जाने योग्य, शब्दों द्वारा बतलाये जाने योग्य - नामयेवावसिस्सति, अक्खेय्यं पेतस्स जन्तुनो, सु. नि. 814; अक्खेय्यञ्च अपरिञाय, अक्खातारं न मञति, स. नि. 1(1).13; - सञी त्रि., धर्मों के विषय में केवल लौकिक संज्ञा अथवा व्यावहारिक ज्ञान रखने वाला व्यक्ति- जिनो पु., ष. वि., ए. व. - अक्खेय्यसचिनो सत्ता, अक्खेय्यस्मि पतिद्विता, स. नि. 1(1).13; - सम्पन्न त्रि., लौकिक ज्ञान द्वारा जानने योग्य विषयों की समझ रखने वाला - स वे अक्खेय्यसम्पन्नो, सन्तो सन्तिपदे रतो. इतिवु. 40. अक्खोख्म त्रि., खोब्भ का निषे. [अक्षोभ्य], स्थिर, धीर, क्षोभरहित - सागरो विय अक्खोमो, मि. प. 18. For Private and Personal Use Only
SR No.020528
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2007
Total Pages761
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy