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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अप्पटिक्खिप्प 414 अप्पटिजग्गन्त/अपटिजग्गन्त अप्पटिक्खिप्प त्रि., पटि + खिप के सं. कृ. का निषे. अप्पटिघत्ता अछम्भी च होतीति एवं पटिपत्तिगणं दिस्वा, सु० [अप्रतिक्षेप्य], अस्वीकृत या निषिद्ध नहीं होने योग्य, नि. अट्ठ. 1.70. स्वीकरणीय - खिप्पा पु., प्र. वि., ब. व. - सब्बे ते अप्पटिच्च अ०, पटि+के पू. का. कृ., पटिच्च का निषे. अप्पटिक्खिप्पा, पुब्बाचरियवचो इदं, ... तथा उद्दिस्स [अप्रतीत्य], अपेक्षा न करके, निर्भर न होकर, हेतुओं एवं गच्छन्ता सचेपि बहू होन्ति, तथापि तेन पुरिसेन सब्बे ते प्रत्ययों के बिना - सा च खो पटिच्च, नो अपटिच्च, म. नि. अप्पटिक्खिप्पा, जा. अट्ट. 2.306-307. 1.2463; 249. अप्पटिगन्धिक/अप्पटिगन्धिय त्रि., पटिगन्धिक का निषे.. अप्पटिच्छन्न त्रि., पटि + vछद के भू. क. कृ. का निषे. ब. स. [अप्रतिगन्धिक], दुर्गन्ध से रहित, सुगन्ध से युक्त, -- [अप्रतिच्छन्न], नहीं ढका हुआ, खुला हुआ, अनाच्छादित, न्धिका स्त्री., प्र. वि., ए. व. - अकक्कसा अपब्भारा, उन्मुक्त, सुस्पष्ट, रहस्यमय, अगूढ़ - नच्चन्तो अप्पटिच्छिन्नो साधु अप्पटिगन्धिका, जा. अट्ठ. 5.401; अप्पटिगन्धिकाति अहोसि, जा. अट्ठ. 1.205; एक आपत्तिं आपन्नो होति अप्पटिक्कूलगन्धेन उदकेन समन्नागता, जा. अट्ठ. 5.402; सञ्चेतनिक सुक्कविस्सट्टि अप्पटिच्छन्नं चूळव. 98; - - धियं द्वि. वि., ए. व. - समञ्च चतुरंसञ्च, सादु कम्मन्त त्रि., ब. स. [अप्रतिच्छन्नकर्मान्त], छिपाकर कर्म अप्पटिगन्धियं, जा. अट्ठ. 7.279; -न्धिया स्त्री, प्र. वि., न करने वाला, पारदर्शितायुक्त क्रियाकलाप करने वाला, - ब. व. - सेतोदका सुप्पतित्था, सीता अप्पटिगन्धिया, पे. व. स्स ष. वि., ए. व. - अप्पटिच्छन्नकम्मन्तरस, भिक्खवे. 114; अप्पटिगन्धियाति पटिकलगन्धरहिता सरभिगन्धा, पे. द्विन्नं गतीनं अञ्जतरागति पाटिकवा, अ. नि. 1(1).77; छडे व. अट्ठ. 66. पटिच्छन्नकम्मन्तरसाति पापकम्मरस, अ. नि. अट्ठ. 2.26%3; अप्पटिग्गहित त्रि., पटिग्गहित का निषे. [अप्रतिगृहीत], - किलोमक नपुं.. ब. स. [अप्रतिच्छन्नक्लोमन्], खुला किसी के द्वारा औपचारिक रूप से ग्रहण नहीं किया गया हुआ फुप्फुसावरण या दाहिना फेफड़ा - अप्पटिच्छन्नकिलोमक - अनतिरित्तं नाम अकप्पियकतं होति, अप्पटिग्गहितकतं सकलसरीरे चम्मस्स हेह्रतो मंसं परियोनन्धित्वा ठितन्ति, होति अनुचारिकतं होति, पाचि. 113; भिक्खना अप्पटिगहितयेव खु. पा. अट्ठ. 41; विभ. अट्ट, 57; - परिवास पु., कर्म. स. पुरिमनयेनेव अतिरित्तं कतं, पाचि. अट्ठ. 85. [बौ. सं. अप्रतिच्छन्नपरिवास], परिवास (बौद्ध भिक्षुसङ्घ में अप्पटिगहितकसञी त्रि., ब. स. [अप्रतिगृहीतसंज्ञिन], प्रवेश के लिये निर्धारित परीक्ष्यमाण अवधि) के अनेक प्रभेदों इस बात का ज्ञान या समझ रखने वाला कि कोई वस्तु में से एक, अन्य धर्मावलम्बियों को दिया जाने वाला परिवास विधिपूर्वक न दान दी गयी है और न ही स्वीकार की गयी - पटिच्छन्नपरिवासो, अप्पटिच्छन्नपरिवासो सुद्धन्तपरिवासो है - अप्पटिग्गहितके अप्पटिग्गहितकसञी अदिन्नं मुखद्वारं समोधानपरिवासो, परि. 249; महाखन्धकेवुत्तो तित्थियपरिवासो आहारं आहारेति, पाचि. 124. अप्पटिच्छिन्नपरिवासो नाम परि. अट्ठ.6; द्रष्ट. परिवास के अप्पटिघ त्रि., ब. स. [अप्रतिघ], क. चित्त की विशुद्धि में अन्त. (आगे), - मन्त त्रि., ब. स. [अप्रतिच्छन्नमन्त्र], बाधक नीवरणों या बाधाओं से मुक्त, भयों से मुक्त - अपने रहस्यों को छिपाकर न रखने वाला - अनिगुव्हमन्तन्ति चातुद्दिसो अप्पटिघो च होति, सन्तुस्समानो इतरीतरेन, सु. अप्पटिच्छन्नमन्तं जा. अट्ठ. 5.73; - मानत्त नपुं.. कर्म. स. नि. 42; अप. 1.9; तासु दिसासु कत्थचि सत्ते वा सङ्घारे वा [बौ. सं. अप्रतिच्छन्नमानाप्य]. छिपाकर कर किया गया भयेन न पटिहअतीति अप्पटिघो, सु. नि. अट्ठ. 1.69; ख. मानत्त-नामक तप या प्रायश्चित्त, चार प्रकार के मानत्तों में प्रतिरोध से रहित, रुकावट से रहित - कतमे धम्मा अप्पटिघा, से एक - चत्तारो मानत्ता - पटिच्छन्नमानत्तं, ध. स. 1460; सनिदस्सनसप्पटिघं रूपं, अनिदरसनसप्पटिघं अपटिच्छन्नमानत्तं, पक्खमानत्तं समोधानमानत्तं, परि. 249; रूपं, अनिदरसन अप्पटिघरूपं, दी. नि. 3.174; नास्स तत्थ अप्पटिच्छन्नमानत्तं नाम- यं अप्पटिच्छन्नाय आपत्तिया पटिघोति अप्पटिघं, दी. नि. अट्ठ. 3.163; अघेति अप्पटिचे परिवासं अदत्वा केवलं आपत्तिं आपन्नभावेनेव मानत्तारहस्स ठाने, जा. अट्ठ. 4.287; - ता स्त्री., भाव. [अप्रतिघता], मानत्तं दिय्यति, परि. अट्ठ. 16; द्रष्ट. मानत्त के अन्त, आगे. बाधा-रहित होना, घात-प्रतिघात की स्थिति से रहित होना अप्पटिजग्गन्त/अपटिजग्गन्त त्रि, पटि + (जाग के - तरसेव सप्पटिघअप्पटिघताय दसके नयो दिन्नो, ध, स. वर्त. कृ. का निषे., किसी के प्रति जागरुक न रहने वाला, अट्ठ. 369; - त्त नपुं॰, भाव. [अप्रतिघत्व], उपरिवत् - उचित ध्यान या देखरेख न रखने वाला, - न्तानं ष. वि., For Private and Personal Use Only
SR No.020528
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2007
Total Pages761
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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