SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 382
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अपक्कट्ठ 355 अपगत 2.247; अपक्कं न परिपाचेन्तीति अपरिणतं अखीणं आयुं अपक्ख' त्रि., पक्ख का निषे०, ब. स. [अपक्ष], वह, जो अन्तराव न उपच्छिन्दन्ति, दी. नि. अठ्ठ. 2.360; न च किसी एक का पक्ष नहीं ले रहा हो, पक्षपातरहित; - ता अरहन्तो अपक्कं पातेन्ति, मि. प.44; - भाव पु., कर्म. स. स्त्री., अपक्ख का भाव., पक्षपात से रहित होने की दशा[अपक्वभाव], न पके हुए होने की अवस्था, कच्चा रहने की स्थिति दुब्बल्याति अपक्खता, पाचि. 327. अपक्कट्ठ त्रि., द्रष्ट. अपकट्ट के अन्त. ऊपर. अपक्ख त्रि., पक्ख का निषे., ब. स., विकलाङ्गता से रहित, अपक्कन्त त्रि., अप + vकम का भू. क. कृ. [अपक्रान्त], वह, जिसके अङ्गों में कोई व्याधि न हो - अमूगो मूगवण्णेन, दूर ले जाया गया, विमुक्त कर दिया गया, पृथक् या अलग अपक्खो पक्खसम्मतो, जा. अट्ठ. 6.20... कर दिया गया, हट चुका, भागा हुआ - अरियधम्मा अपक्कन्तो, अपक्खिक त्रि., अपक्ख' से व्यु. [अपक्षिक], बिना प्रतिपक्ष यथा पेतो तथैवह जा. अट्ट. 3.413; अञआय ... सक्यपुत्तिकानं वाला, ऐसा वाद, जिसमें कोई प्रतिपक्ष न रहे - ... अपक्खिको ... धम्मविनया अपकन्तोति, अ. नि. 1(1).213; मोघपरिसा वादो न सोभती ति ..., थेरीगा. अट्ठ. 113. अपक्कन्ता इमम्हा धम्मविनया, म. नि. 2.155; 205. अपगच्छति अप + गम का वर्त.. प्र. पु.. ए. व. [अपगच्छति], अपक्कम पु., अप + Vकम का क्रि. ना. [अपक्रम], दूर चला दूर चला जाता है, नष्ट हो जाता है, एक ओर को हो जाता जाना, भाग जाना, हट जाना, पलायन करना - पराजयो है - न्ति वर्त, प्र. पु., ब. व. [अपगच्छन्ति], दूर चली रणे भङ्गो, पलायनमपक्कमो, अभि. प. 402. जाती हैं। चले जाते हैं - सब्बा ईतियो अपगच्छन्तीति, मि. अपक्कमति अप + Vकम का वर्त, प्र. पु., ए. व.. प. 152; - तु अनु०, प्र. पु., ए. व. [अपगच्छतु], दूर चला [अपक्राम्यति], दूर भाग जाता है, पलायन कर जाता है, जाए, हट जाए - पुन थोकं निदायित्वा वहितो वातवुद्धि विय चला जाता है, हट जाता है, छोड़ जाता है, वियुक्त हो जाता तालवण्टवातं असहन्तो को एस? अपगच्छतुति आह, ध. है; - न्ति वर्त, प्र. पु., ब. व. [अपक्राम्यन्ति], दूर भाग स. अट्ठ. 225; - च्छामि अनु., उ. पु., ए. व. [अपगच्छामि]. जाते हैं - अलिक भासमानस्स, अपक्कमन्ति देवता, जा. पलायन कर जाऊं - तत्थ अपायामीति अपगच्छामि, अट्ठ. 3.402; अपक्कमन्ति ..., सचे अलिकं भणिस्सति पलायामीति अत्थो, जा. अट्ठ. 28; - च्छ अनु., म. पु., ए. चत्तारो देवपुत्ता ... अन्तरधायिस्सन्तीति .... तदे; - मे व. [अपगच्छ], पलायन कर जाओ, भाग जाओ- अपगच्छाति विधि, प्र. पु., ए. व. - अनुसूयमनक्कोसं, सणिक तम्हा तज्जेसि, ध. स. अट्ट. 225; - च्छथ अनु., म. पु., ब. व. अपक्कमेन्ति, जा. अट्ठ. 3.23; - मेय्य उपरिवत् - यथा तं [अपगच्छत], पलायन कर जाओ, भाग जाओ- अपगच्छथाति आपायिकोति यथा अपाये निब्बत्तनारहो सत्तो अपक्कमेय्य, अच्छर पहरि ध. प. अट्ठ. 1.238; - च्छाम अनु., उ. पु., एवमेव अपक्कमीति अत्थो, दी. नि. अट्ठ. 3.3; - क्कमि ब. व. [अपगच्छाम], भाग जाएं - हन्द मयं अपगच्छाम, मि. अद्य., प्र. पु., ए. व. - अलद्धा तत्थ अस्साद, वायसेत्तो प. 199; - गमि अद्य., प्र. पु., ए. व. [अपागमत्], दूर भाग अपक्कमि, सु. नि. 450; स. नि. 1(1).145; अथ खो तत्थ गया - ... वसितुं असक्कोन्तो अपगमि, जा. अट्ठ. 6.85; -- अस्सादं अलभित्वाव वायसो एत्तो अपक्कमेय्य, स. नि. अट्ठ. च्छंसु अद्य, प्र. पु., ब. व. [अपागमन्]. दूर भाग गए - 1.164; - क्कमि अद्य., उ. पु., ए. व. - तं धम्म अनलङ्करित्वा ते एक वचनेनेव अपगच्छिंसु, ध. स. अट्ठ. 225; - न्तुं तस्मा धम्मा निबिज्ज अपक्कमि, म. नि. 1.224; अपक्कमिन्ति निमि. कृ., दूर भागने के लिए - गन्तुं न हि तीरमपत्थीति अगमासिं, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(2).76; - क्कमु अद्य.. प्र. अपगन्तुं न हि तीरं अत्थि, सु. नि. अट्ठ. 2.182; - न्त्वा पू. पु., ब. व. - सुत्वा नेलपतिं वाचं, वाळा पन्था अपक्कमुन्ति, का. कृ., पलायन कर, दूर जा कर - ..., एवं अपगन्त्वा जा. अट्ठ. 7.332; - क्कमितुं निमि. कृ. - ... बुद्धानं ___ अट्ठासि, ध. प. अट्ठ 1.224. सन्तिका अपक्कमितुकामो हुत्वा ..., अ. नि. अट्ट, 1.119; अपगत त्रि., अप. + गम का भू. क. कृ. [अपगत], दूर -- क्कम्म पू. का. कृ. - ततो च सो अपक्कम्म, वेदेहस्स गया हुआ, हटाया हुआ, वियुक्त कर दिया गया, से रहित - उपन्तिका, जा. अट्ठ. 6.244. निद्देसे वज्जने पूजापगतेवारणे पि च, अभि. प. 1184%3; अपक्कोसित त्रि., पक्कोसित का निषे. [अप्रक्रुष्ट], वह, अपगता इमे सामा , अपगता इमे ब्रह्मा , उदा. 119; जिसे पुकारा नहीं गया हैं या बुलाया नहीं गया है - एहि अपगताति अपेता परिभट्टा, उदा. अट्ठ. 210; तेनाहं लिङ्गेन मय्ह पुत्तभावं उपगच्छाति एवं अपक्कोसितो, पे. व. अट्ठ. 54. दूरमपगतो ति अरहति उपासको सोतापन्नो भिक्खं पृथुज्जन For Private and Personal Use Only
SR No.020528
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2007
Total Pages761
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy