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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अन्वड्डमासे/अन्वद्धमासे 350 अन्वागत अन्वड्डमासे/अन्वद्धमासे अ.. सप्त. वि., प्रतिरू. निपा., तस्सन्वयो सावको भावितत्तो. इतिवु. 58; गाथास तस्सन्वयोति क्रि. वि., उपरिवत् - .... अन्वद्धमासे पण्णरसे पुण्णमाये । तस्सेव सत्थु पटिपत्तिया धम्मदेसनाय च अनुगमनेन तस्सन्वयो उपोसथे पच्चयं नागं आरुय्ह दानं दातुं उपागमिन्ति ..., अनुजातो. इतिवु. अट्ठ. 233; ग. त्रि., केवल स. उ. प. सद्द. 1.243; अन्वद्धमासे पन्नरसे, .... चरिया. 391; तत्थ । के रूप में, अनुगामी., अनुपालक, परिचर., काया., चित्त०, अन्वद्धमासेति अनुअद्धमासे, चरिया. अट्ठ. 77. तद, साक्यकुल०, स्नेह. के अन्त. द्रष्ट.; घ. पु., तर्क या अन्वत्थ/अन्वट्ठ त्रि., अनु + अत्थ से व्यु. [अन्वर्थ], अर्थ हेतुविद्या के सन्दर्भ में, तार्किक या युक्तियुक्त सम्बन्ध, के अनुरूप, आशय या अभिप्राय के अनुरूप, उपयुक्त, तर्कसङ्गत नैरन्तर्य, हेतु और साध्य की सतत सहवर्तिता, विध सटीक - अन्वट्ठ यत्थ नाम पितं लङ्कातिलक इति, चू. वं. नात्मक प्रतिज्ञा - चत्तारि आणानि-धम्मे आणं, अन्वये आणं, 78.53; - नामधेय्य त्रि., ब. स., लक्षण या प्रकृति के .... दी. नि. 3.181; अन्वये आणन्ति चत्तारि सच्चानि अनुरूप नाम वाला - अन्वत्थनामधेय्यत्ता लक्खुय्यानं ति पच्चक्खतो दिस्वा यथा इदानि, .... दी. नि. अट्ठ. 3.184; संमतं, चू. वं. 79.4; - पटिपत्ति स्त्री., कर्मस. के पनायस्मतो आकारा, के अन्वया, येनायस्मा एवं वदेसि, [अन्वर्थप्रतिपत्ति], उपयुक्त, आचारण या अनुकूल व्यवहार म. नि. 1.400; अन्वयाति अनुबुद्धियो, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) - तत्थ अन्वत्थपटिपत्तियाति सयं पच्चासीसितलद्धपटिपत्तिया 1(2).280; के ... आकारा के अन्वया ति. म. नि. टी. (मू.प.) निब्बानलद्धभावेनाति, अत्थो, चूळनि. अट्ठ.8; - पटिपदा 1(2).280; नामन्वयेन आगच्छु, ये चञ सदिसा सह, दी. स्त्री., कर्म. स. [अन्वर्थप्रतिपत्]. उपयुक्त मार्ग, उपयुक्त । नि. 2.192; ङ. पु., व्यतिरेक के साथ प्रयुक्त, साधन या उपाय - सम्मापटिपदाय ... अन्वत्थपटिपदाय अनुमानवाक्य में विधायक-प्रतिज्ञा, स्वीकारात्मक प्रतिज्ञा या ..., सीलेसु परिपूरिकारिताय इन्द्रियेसु गुत्तद्वारताय भोजने सहमति, अंगीकारसूचक सामान्यपद - ... च गाथाद्वयेन मत्तञ्जताय, महानि. 10; अन्वत्थपटिपदायाति अत्थअनुगताय ब्यतिरेकतो अन्वयतो च विभावेति, पे. व. अट्ठ. 197; - पटिपदाय, उपरूपरि वडिताय पटिपदाय, महानि. अट्ठ. 50%; संसग्ग पु., तत्पु. स. [अन्वयसंसर्ग], विधानात्मक तार्किक - सज्ञा स्त्री., कर्म. स. [अन्वर्थसंज्ञा], अर्थ या स्वभाव के सम्बन्ध की स्थापना - इति चेति चे सद्दो अन्वयसंसग्गेन अनुरूप नामकरण - थेरिकेति इदं ..., पचुरेन परिकप्पेतीति आह ..., लीन. (दी.नि.टी.) 2.237; - यागत अन्वत्थसआभावतो पन थिरे सासने थिरभावप्पत्ते, थिरोहि त्रि०, तत्पु. स. [अन्वयागत], वंशपरम्परा से प्राप्त, पूर्वजों से .... समन्नागतेति अत्थो, थेरीगा. अट्ट. 6. प्राप्त - तेन अन्वयागतम्पि भोगसम्पत्तिं दीपेति, सु. नि. अट्ठ. अन्वदेव अ., निपा. [अन्वगेव], बाद में, पीछे से, अनुकूल 2.103. रूप में - एत्थ अनुअन्दति अनुबन्धतीति अन्वदि, अन्वदि एव अन्ववेक्खन नपुं., अनु + अव + Vइक्ख से व्यु., केवल स. अन्वदेवा ति कितविग्गहो सन्धिविग्गहो च वेदितब्बो, सद्द. उ. प. के रूप में प्राप्त [अन्ववेक्षण], जांच-पड़ताल, परीक्षण 2.377; पुब्बङ्गमा अकुसलानं धम्मानं समापत्तिया अन्वदेव - पातिमोक्खसंवरो इन्द्रियानरक्खणं, पच्चयान्ववेक्खन अहिरिकं अनोत्तप्पं, इतिवु. 26; अन्वदेव राजा महासुदस्सनो जीवसुद्धि एव च, सद्धम्मो, 449. सद्धि चतुरङ्गिनिया सेनाय, दी. नि. 2.129; अनुदेवाति अनु अन्वहं अ., क्रि. वि. [अन्वह, प्रतिदिन - अन्वहं पूजयी एव, द-कारो पदसन्धिवसेन आगतो, सारत्थ. टी. 1.341; बोधिं, पटिमायो च कारयिं चू. वं. 41.29; 73.24; अवसि पाठा. अनुदेव. सुगतधातुं अन्वहं वन्दमानो, दा. वं. 4.8. अन्वय पु., अनु + Vइ से व्यु. [अन्वय], क. पु., शा. अ. अन्वगच्छि अनु + आ + गम का अद्य., प्र. पु., ए. व., पीछे जाना, अनुगमन, साहचर्य, मेलजोल, ला. अ. पीछे-पीछे गया - पुरिसो च ते पिहितो अन्वगच्छि, पे. व. वंशपरम्परा, वंशावली, बाद में सतत रूप से चल रही 742(गा.). शृंखला - कुलं वंसो च सन्तानाभिजना गोत्तमन्वयो, अभि. अन्वागन्त्वान अनु + आ + Vगम का पू. का. कृ., बाद में प. 332; 1090; यस्स पन आदिकालतो पति अन्वयवसेन पुनः वापस आकर - अन्वागन्वान दूसेय्य, भुञ्ज भोगे सो एव जनपदो निवासो, सु. नि. अट्ट. 103; ख. पु./त्रि., कटाहकाति, ध. प. अट्ठ. 2.207. अनुगामी, अनुसरण करने वाला, आगे चलकर या बाद में अन्वागत त्रि., अनु + आ गिम का भू. क. कृ. [अन्वागत], अनुसरण करने वाला - सत्था हि लोके पठमो महेसि, क. कर्म. वा. में, किसी के द्वारा अनुगत या रक्षित, For Private and Personal Use Only
SR No.020528
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2007
Total Pages761
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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