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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अन्तरामरण 334 अन्तरायिक अन्तरामरण नपुं., निर्धारित समय के पहले ही बीच में हो। तेसं होति अहितानुकम्पी वाति? अहितानुकम्पी, दी. नि. जाने वाली मृत्यु, असामयिक मृत्यु - अन्तरामरणं नत्थि, 1.207; अन्तरायकरोति लाभन्तरायकरो, दी. नि. अट्ठ. तेसं निस्सन्दतो मम, अप. 1.341; ते तस्स कम्मरस निस्सन्देन 1.297; मा मे माता तरन्तरस, अन्तरायकरा, अहूति, जा. तत्थ तत्थ अन्तरामरणं पापुणिंसु, उदा. अट्ठ. 236. अट्ठ. 4.111; अम्हाकं एवरूपस्स मन्तस्स अन्तरायकर अन्तरामल पु., चित्तसन्तति में विद्यमान लोभ, द्वेष एवं मोह पच्चामित्तं गहिस्साम, जा. अट्ठ. 6.224. जैसी अकुशल मनोवृत्तियां - तयोमे, भिक्खवे, अन्तरामला अन्तरायकरण नपुं.. [अन्तरायकरण], विघ्न या बाधा उत्पन्न अन्तराअमिता अन्तरासपत्ता अन्तरावधका अन्तरापच्चत्थिका, करना, बाधक बनना - ... अनुपगन्त्वा एतस्स अन्तरायं इतिवु. 60; महानि. 11; यथा चेते लोभादयो सत्तानं चित्ते कातुन्ति अन्तरायकरणत्थं नानाकारणेहि संसग्गमाविकत्वा उप्पज्जित्वा मलिनभावकरा नानप्पकारसंकिलेसविधायकाति दळ्हं करित्वा पच्छा अन्तरायं करोति, जा. अट्ठ. 4.52. अन्तरामला, इतिवु. अट्ठ. 241; - सुत्त इतिवु. के चौथे वर्ग अन्तरायाभाव पु., तत्पु. स. [अन्तरायाभाव], किसी प्रकार के नौवें सुत्त का शीर्षक, इतिवु. 60-62. के विघ्न या बाधा का अभाव - राजकुमारस्स नामगहणदिवसे अन्तरामुत्तक त्रि., बीती हुई प्रवारणा तथा अगले वर्षावास लक्खणपाठके ब्राह्मणे पक्कोसापेत्वा ... कुमारस्स के बीच में खाली पड़ा हुआ या छोड़ा हुआ (निवास) - तयो अन्तरायाभावं पुच्छि, जा. अट्ट. 6.3. मे, भिक्खवे, सेनासनग्गाहा - पुरिमको, पच्छिमको, अन्तरायविमोचन नपुं., तत्पु. स. [अन्तरायविमोचन]. अन्तरामुत्तको, चूळव. 207; अपरज्जुगताय पवारणाय आयतिं विघ्नबाधाओं से छुटकारा - अत्थीति सङ्घो आचिक्खि वस्सावासत्थाय अन्तरामुत्तको गाहापेतब्बोति आह, चूळव, अट्ट अन्तरायविमोचनं, म. वं. 35.73; अन्तराय विमोचनं ति 65; पुरिमिको पच्छिमिको, तथेवन्तरामुत्तको, विन. वि. 2842. आयुस्ससन्तराय पटिमोचनं अस्थि महाराजाति सङ्घो आचिक्खि, अन्तराय पु.. [अन्तराय], शा. अ. विघ्न, बाधा, दुर्भाग्य, ...., म. वं. टी. 607(ना.). मृत्यु, विध्वंस, विनाश, ला. अ. विनय के विशेष सन्दर्भ अन्तरायिक त्रि., अन्तराय से व्यु. [बौ. सं. अन्तरायिक, में - उपोसथ एवं पवारणा जैसे सङ्घकर्मों के निष्पादन में आन्तरायिक], विघ्न-बाधा लाने वाला, अमङ्गल-कारक, उत्पन्न विघ्न या बाधाएं, निम्नलिखित बाधाएं अन्तराय के बाधक, रुकावट खड़ी करने वाला - दारुणो, भिक्खवे, अन्तर्गत परिगणितः, राजन्तराय, चोरन्तराय, उदकन्तराय, लाभसक्कारसिलोको कटुको फरुसो अन्तरायिको अनुत्तरस्स अग्यन्तराय, मनुस्सन्तराय, अमनुस्सन्तराय, वाळन्तराय, योगक्खेमस्स अधिगमाय, स. नि. 1(2).205; अन्तरायिकोति सरीसपन्तराय, जीवितन्तराय, ब्रह्मचरियन्तराय - अन्तरायो अन्तरायकरो, स. नि. अट्ठ. 2.181; अन्तरायिका आपत्ति च पच्चूहो, विकारो च विकत्यपि, अभि. प. 765; इति बालो जानितब्बा, परि. 236; सग्गमोक्खानं अन्तरायं करोन्तीति विचिन्तेति, अन्तरायं न बुज्झति, ध. प. 286; अन्तरायन्ति अन्तरायिका, पाचि. अट्ठ. 125; उपसम्पादेन्तेन तेरस असुकस्मिं नाम काले वा ... मरिस्सामी ति अत्तनो अन्तरायिके धम्मे पुच्छितुं महाव. 118; - धम्म पु., कर्म. स. जीवितन्तरायं न बुज्झतीति, ध, प. अट्ठ. 2.246; बोधिसत्तो [आन्तरायिकधर्म], निर्वाण एवं सुखद गतियों की प्राप्ति में तस्मिम्पि चिरायन्ते अन्तरायेन भवितब्बन्ति सयं गन्चा ... बाधक 5 प्रकार के धर्म तथा भिक्षु-उपसम्पदा की प्राप्ति में अयं सरो ... धनं गहेत्वा अट्ठासि, ध. प. अट्ठ. 2.42; ..., बाधक 13 प्रकार की अयोग्यताएं - अन्तरायिकधम्मे वा अञत्र पकतत्तेन, अञत्र अन्तराया, चूळव. 79; अनुभावेन जानता, निय्यानिकधम्मे परसता, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) सोसेत्वा, अन्तराये असेसतो, ध. स. अट्ठ. 2; स. उ. 1(1).320; अनुजानामि, भिक्खवे, उपसम्पादेन्तेन तेरस प. के रूप में - अग्य., अदिट्ठ., अमनुस्स., उदक., अन्तरायिके धम्मे पुच्छितुं, महाव. 118; - टि. स्वर्ग-प्राप्ति उद्दिस्सकट., उपक्खट., उपोसथ., उप्पत्त., कम्मट्ठान., या निर्वाण के साक्षात्कार के मार्ग में 5 प्रकार के अन्तरायिक खीर., गमन., चोर., जीवित., परिभोग., बाधक, ब्रह्मचरिय., या बाधक तत्त्व हैं, कम्मन्तरायिक, किलेसन्तरायिक, भत्त., भोग., मङ्गल., मनुस्स., रज्ज., राज. आदि के अन्त. विपाकन्तरायिक, उपवादन्तरायिक एवं द्रष्ट.. आणावीतिक्कमन्तरायिक के अन्त. द्रष्ट., भिक्षु उपसम्पदा अन्तरायकर त्रि., विघ्नकारक, बाधा खड़ी करने वाला, में 13 तथा भिक्षुणी की उपसम्पदा में 24 प्रकार के अन्तरायिक बाधक, अहितकर - अन्तरायकरो समानो हितानुकम्पी वा भी उल्लिखित हैं. For Private and Personal Use Only
SR No.020528
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2007
Total Pages761
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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