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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनेकानिसंस 315 अनेलगल/अनेळगल/अनेळगळ अनेकानिसंस त्रि., ब. स., अनेक प्रकार के लाभों या अनेजका पु., प्र. वि., ब. व., देवताओं के एक वर्ग का नाम हितकारक धर्मों से परिपूर्ण - सो पन पिण्डपातो बहुगुणो - वरुणा सहधम्मा च, अच्चुता च अनेजका, दी. नि. 2.191; अनेकानिसंसो, मि. प. 171. अच्चुता च अनेजकाति अच्चुतदेवता च अनेजकदेवता च, अनेकानुसन्धिक त्रि., ब. स. [अनेकानुसन्धिक], अनेक दी. नि. अट्ठ. 2.254. प्रकार की अनुसन्धियों से युक्त, अनेक प्रकार के तार्किक अनेध त्रि., एध का निषे., ब. स. [अनिन्धन], शा. अ. सम्बन्धों या प्रायोगिक अभिप्रायों से युक्त - यं ईंधन से रहित, ला. अ. अकुशल-मूलों से रहित, क्रोध अनेकानुसन्धिकं तत्थ अनुसन्धिवसेन धम्मक्खन्धगणना, ध. आदि से मुक्त - अनेधो धूमकेतूव, कोधो यस्सूपसम्मति, स. अट्ठ. 29; अनेकानुसन्धिकस्स सुत्तस्स पठमानुसन्धि जा. अट्ठ. 4.25; अनेधो धूमकेतूवाति अनिन्धनो अग्गि विय, आदि, अन्ते अनुसन्धि परियोसानं, ..., म. नि. अट्ठ. (मू.प.) तदे.. 1(2).103; अनेकानुसन्धिकस्स पठमो अनुसन्धि आदि, ..., अनेरित त्रि., ईरित का निषे. [अनीरित], अप्रकम्पित, अ. नि. अट्ट, 2.98. अगतिशील, अप्रेरित - अनेरितो अघट्टितो अचलितो अलुळितो अनेकिमिन्द पु., व्य. सं., सिरिखेत्तनगर के एक बौद्ध-स्तूप अभन्तो वूपसन्तो तत्र ऊमि नो जायति, ठितो होति समुद्दोति, का नाम - तञ्च चेतियं रतनचेतियं ति पञआपेसि, महानि. 260. हत्थिरूपबाहुल्लताय पन अनेकिभिन्दो ति पाकट अहोसि. अनेळ/अनेल त्रि., अट्ठ में अनेळक, अनेळगल एवं अनेळमूग सा. वं. 87(ना.). के व्याख्यान के क्रम में ही स्वतन्त्र शब्द के रूप में प्रयुक्त, अनेज' त्रि., एजा का निषे. अथवा ।एज के निषे. के रूप एळ अथवा एल का निषे. [बौ. सं. अनेला], निर्दोष, चित्त में व्यु., ब. स., तृष्णा से मुक्त, इच्छारहित, आसक्तियों या की अकुशल चित्तवृत्तियों से मुक्त - इलति, एल एला, एत्थ सांसारिक लगावों से मुक्त, अप्रकम्पित, अप्रभावित, स्थिर, एलं वुच्चति दोसो, केन अत्थेन .... सद्द. 2:4383; दृढ़ - तं कवछिदं मुनिं अनेजं, दुतियं भिक्खुनमाहु मग्गदेसिं. अनेलगलायाति अनेलाय अगलाय निहोसाय चेव सु. नि. 87; स वे अनेजो अखिलो अकसो, तथागतो अरहति अक्खलितपदब्यञ्जनाय च, स. नि. अट्ठ. 1.242; पूरळासं सु. नि. 481; ओकञ्जहं तण्हच्छिदं अनेजं. सु. नि. अनेळमूगोति अलालामुखो, अथ वा अनेळो च अमूगो च, 1107; अनेजन्ति लोकधम्मेसु निकम्पं, सु. नि. अट्ठ. 2.291; पण्डितो व्यत्तोति वुत्तं होति, सु. नि. अट्ठ. 1.98; द्रष्ट. सुखहि वड्ड मुनयो, अनेजा छिन्नसंसया, थेरीगा. 205; अनेळक, अनेळमूग, अनेलगल आगे. एजासङ्घाताय तण्हाय अभावेन अनेजा, थेरीगा. अट्ठ. 193; ते अने ळ क/अने लक/अनीळक/अनीलक त्रि., तुसिता जेत्वा मारं सवाहिनि ते अनेजा, अ. नि. 1(2).18; ते । अनेळ /अनेल से व्यु. [बौ. सं. अनेळक, सं. अनीडक], अनेजाति ते खीणासवा तण्हासङ्घाताय एजाय अनेजा निच्चला शुद्ध, निर्दोष, स्वच्छ, अविशुद्धियों से रहित, मधुमक्खियों के नाम, अ. नि. अट्ठ. 2.252. अण्डों एवं उनकी लार से रहित स्वच्छ मधु - सेय्यथापि अनेज' नपुं., तृष्णा से विमुक्ति, आसक्तियों से छुटकारा, खुद्दमधुं अनीलकं एवमस्साद, पारा. 7; सेय्यथापि खुद्दमधु अर्हत्-अवस्था का फल अर्हत्व - अनेज उपसम्पज्ज, अनीळकन्ति इदं पनस्स मधुरताय ओपम्मनिदस्सनत्थं वुत्तं, रुक्खमूलम्हि झायति, थेरीगा. 364; अनेजन्ति पटिप्पस्सद्ध पारा. अट्ठ. 1.138; इसिमुग्गानि पिसित्वा, मधुखुद्दे अनीळके, एजताय अनेजन्ति लद्धनाम अग्गफलं, थेरीगा. अट्ठ. 269; अप. 1.199. अनेजस्स वसिप्पत्तस्स, भगवतो तस्स सावको हमस्मि, म. अनेळकसप्प पु., कर्म. स., एक जहरीला सर्प, अत्यधिक नि. 2.55; ननु चत्तारो अरूपा अनेजा वुत्ता भगवताति? विषैले सर्प का एक वर्ग- अनेळकसप्पो नाम महासीविसो, आमन्ता, कथा. 272; अनेजं ते अनुप्पत्ता, चितं तेसं अनाविलं. स. नि. टी. 3.41. स. नि. 2(1).77; अनेजन्ति एजासङ्घाताय तण्हाय पहानभूतं अनेलगल/अनेळगल/अनेळगळ त्रि., एलगल का निषे., अरहत्तं, स. नि. अट्ठ. 2.250; - त्त नपुं., भाव., तृष्णा या ब. स., शा. अ. लार के बहाव या टपकाव से रहित, ला. आसक्तियों से रहित होना - अनेजत्तायेव सब्बकिलेसेहि अ. पूर्णतया परिशुद्ध, सुस्पष्ट अथवा दोषरहित (विशेष रूप परवादवातेहि च अकम्पनीयत्ता ठितो एकग्घनपब्बतसदिसो. से वाणी के विशे. के रूप में प्रयुक्त)- ..., अनेलगलाय, उदा. अट्ठ. 151. अत्थस्स विज्ञापनिया, महाव. 270; भवम्हि सोणदण्डो ... For Private and Personal Use Only
SR No.020528
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2007
Total Pages761
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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