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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकत अकत अकतकिब्बिसो, पारा. 84; - कुसल त्रि., ब. स. [अकृतकुशल], वह, जिसने कुशल कर्मों को नहीं किया है, प्राणि-हत्या से विरति आदि कुशल कर्मों को न करने वाला - अकतकल्याणा अकतकुसला अकतभीरुत्ताणा, अ. नि. 1(1),181; - परिग्गह त्रि.. ब. स. [अकृतपरिग्रह], वह, जिसने किसी प्रकार का परिग्रह अथवा गृह-पत्नी आदि का संग्रह न किया हो, अविवाहित - अनापादा, अहि अकतपरिग्गहा, जा. अट्ठ. 4.160; - परित्त त्रि., ब. स. [अकृतपरित्त], वह, जिसने अपने लिए निर्धारित अथवा अभीप्सित परित्तपाठ को नहीं पढ़ा है - अकतपरित्तस्स तं येव दिवसं पासं उपनेसीति, मि. प. 152;-टि. स्थविरवादी बौद्ध-परम्परा में विशेष कर श्रीलङ्का एवं म्या-मां में बौद्ध गृहस्थों के बीच ‘परित्त' अत्यन्त लोकप्रिय है। उन लघु वचन-खण्डों को परित्त अथवा परित्ता कहते हैं, जिनका पाठ व्यक्तिगत अथवा सामूहिक रूप से रोग एवं प्राकृतिक विपदाओं से पूर्ण त्राण दिलाने हेतु किए जाने की परम्परा प्रचलित रही है। 'परित्त' पालि-त्रिपिटक में परित्त नाम से स्वतन्त्र रूप में संगृहीत न होकर खु. पा., अ. नि., म. नि. तथा सु. नि. में संगृहीत खण्डों के समुच्चय हैं। मि. प. में छ: प्रमुख परित्त-पाठों की सूची दी गई है। 'परित्त' का शाब्दिक अर्थ परित्राण एवं सुरक्षा है। विशेष अर्थ के लिए द्रष्ट. 'परित्त' (आगे); - पाप त्रि., ब. स. [अकृतपाप], वह, जिसने पाप कर्म नहीं किए हैं, कल्याणकर्म अथवा पुण्यकर्म करने वाला - कतकल्याणो ... अकतपापो अकतलुद्दो अकतकिब्बिसो, पारा. 84; - पुञ त्रि., ब. स. [अकृतपुण्य]. वह, जिसने अहिंसा, अस्तेय, ब्रह्मचर्य आदि पुण्यकर्म नहीं किए हैं- ये केचि निबिसेसा अकतपुआ बुद्धिपरिहीना, मि. प. 234; - बहुमान त्रि. ब. स. [अकृतबहुमान], वह, जिसे बहुत सम्मान नहीं मिला है - अबहुकतो अहोसिं । धम्मेन अबहुकतो सङ्घन, स. नि. 3(1).110; अबहुकतोति अकतबहुमानो, स. नि. अट्ठ. 3.187; - बुद्धि त्रि., ब. स. [अकृतबुद्धि]. वह, जिसके पास बुद्धि अथवा समझने की क्षमता नहीं है, जिसे बौद्धिक क्षमता प्राप्त नहीं है, अशिक्षित - अकतबुद्धिनो असिक्खितका च. जा. अट्ठ. 3.49; - भीरुत्ताण त्रि., ब. स., वह, जिसने भयों, विपत्तियों एवं संकटों से सुरक्षित रखने का कोई उपाय नहीं किया है, सुरक्षित शरणस्थल में अप्राप्त व्यक्ति- ते चम्हा अकतकल्याणा अकतकुसला अकतभीरुत्ताणा, अ. नि.1(1).181; अकतभीरुत्ताणाति अकतभयपरित्ताणा, अ. नि. अट्ठ. 2.138; - मल्लक पुं, साधारण प्रकार की चिकनाई से रहित खुरचनी अथवा त्वचा को रगड़ने वाला वह उपकरण, जिसके प्रयोग की अनुमति बुद्ध ने खुजली से पीड़ित भिक्षुओं के लिए दी थी- अनुजानामि, भिक्खवे, गिलानस्स अकतमल्लकन्ति, चूळव. 223; अकतमल्लकं नाम दन्ते अच्छिन्दित्वा कतं, चूळव. अट्ठ. 45; - योग्य त्रि., ब. स. [अकृतयोग्य], वह, जिसे कामों में नहीं लगाया गया हो, जो व्यावहारिक जीवन में कुशल न हुआ हो, अप्रशिक्षित - अथ आगच्छेय्य खत्तियकुमारो असिक्खितो अकतहत्थो अकतयोग्गो अकतूपासनो भीरु छम्भी उत्रासी पलायी, स. नि. 1(1).117; अकतयोग्गोति तिणपुञ्जमत्तिका-पुजादीसु अकतपरिचयो, स. नि. अट्ठ. 1.145; - रस्स त्रि, ब. स. [अकृतहूस्व]. केवल व्याकरण-ग्रन्थों में ही प्रयुक्त शब्द-रूप, अहस्वीकृत स्वर, वह स्वर, जिसे ह्रस्व नहीं किया गया है, इस्वता को अप्राप्त - अकतरस्सा लतो वालपनस्स वे वो, क. व्या. 116; - लुद्द त्रि., ब. स. [अकृतलुब्ध], वह, जो क्रूरता से मुक्त है, पाप न करने वाला, कल्याणकारी, दयालु - त्वं खोसि.... अकतपापो अकतलुद्दो अकतकिब्बिसो, पारा. 84; - वेदी त्रि., [अकृतवेदिन], अकृतज्ञ, कृतघ्न, उपकार न मानने वाला, असज्जन पुरुष - असप्पुरिसो, भिक्खवे, अकतञ्यू होति अकतवेदी, अ. नि. 1(1).78; - वेदिता स्त्री., भाव. [अकृतवेदित्व], कृतघ्नता, अकृतज्ञता, उपकार को न मानने की दुष्टता-भरी मनोवृत्ति - केवला एसा, भिक्खवे, असप्पुरिसभूमि यदिदं अकतञ्जता अकतवेदिता. अ. नि. 1(1).78; - संविधान नपुं.. [अकृतसंविधान]. वस्त्रों एवं परिधानों का अपूर्ण-निर्माण - चीवरत्थाय उप्पन्नवत्थानं विचारणसिब्बनादीहि ... अकतं संविधानं पि वट्टति, म. नि. अट्ठ. (उप.प.) 3.115, 'कतपरिभण्ड' का विप., पाठा. अकतं संविधानं; - संसग्ग त्रि., ब. स. [अकृतसंसर्ग], अपरिचित, अप्रसिद्ध - तत्थ असन्थुतन्ति अकतसंसग्गं, जा. अट्ठ. 3.53; - संकेत त्रि.. ब. स. [अकृतसंकेत]. वह, जिसके बारे में कोई संकेत अथवा अनुमोदन प्राप्त नहीं हुआ है, अननुमोदित - पठममेव कतसङ्केता वा हुत्वा अकतसङ्केता वापि. जा. अट्ठ. 5.433; - सहाय त्रि., ब. स. [अकृतसहाय], वह, जिसके साथ समान संवास वाला कोई भिक्षु न हो - या पन भिक्खुणी ... भिक्खं ... अकतसहायं तमनुवत्तेय्य .... पाचि. 293; समानसंवासका भिक्खू वुच्चन्ति सहाया, सो तेहि सद्धि नत्थि, तेन वुच्चति अकतसहायोति, पाचि. अट्ठ. 166; - For Private and Personal Use Only
SR No.020528
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2007
Total Pages761
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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