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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 281 अनुयोगी अनुयुत्त केसमस्सुओरोपनकासायपटिग्गहणसरणगमनउपज्झायरगहणकम्मवाचानिस्सयधम्मे पुच्छियमानो, महाव. अट्ठ. 282; - जियमाना स्त्री., कर्म. वा., वर्त. कृ., प्र. पु., ए. व., जांची जा रही, पूछी जा रही - एवमनुयुजियमाना सा, रहिते धम्मदेसनाकुसला, थेरीगा. 406; अनुयुजियमानाति पुच्छियमाना, सा इसिदासीति योजना, थेरीगा. अट्ठ. 289. अनुयुत्त त्रि., अनु + युज का भू. क. कृ., द्वि. वि. में अन्त होने वाले पद के साथ प्रयुक्त [अनयुक्त], 1. स्वयं को किसी में लगाया हुआ, किसी के प्रति पूर्णरूप से समर्पित - ... ते एवरूपं बीजगामभूतगामसमारम्भं अनुयुत्ता विहरन्ति, दी. नि. 1.6; .... यस्स समारम्भं अनयत्ता विहरन्तीति, दी. नि. अट्ठ. 1.75; ... ते एवरूपं जूतप्पमादट्ठानानुयोगं अनुयुत्ता विहरन्ति, दी. नि. 1.6; ये अत्तानयोग अनुयुत्ता सीलादीनि सम्पादेत्वा देवमनुस्सानं सन्तिका सक्कारं लभन्ति, ध. प. अट्ठ. 2.160; 2. अनुसरण या अनुगमन करने वाला, अधीनस्थ, आज्ञाकारी, सेवक - यो लोभगुणे अनुयुत्तो, सो वचसा परिभासति अजे. सु. नि. 668; अनुयुत्तोति अग्गसावकानं भेदकामताय सु. नि. अट्ठ. 2.180; - त्ते द्वि. वि., ब. व. - सो यावता जम्बूदीपे पदेसराजानो ते सब्बे अनयुत्ते अकासि, मि. प. 193; स. उ. के रूप में अनन.. चेतोसमथानु., जागरियानु.. झानानु., सरीरमण्डनानु. के अन्त. द्रष्ट.. अनुयोग पु., अनु + युज से व्यु. [अनुयोग]. क. पूर्ण रूप से समर्पण, पूर्ण निष्ठा, सुदृढ़ लगाव, पुनः पुनः योग - अनुयोगे किलिन्ने च सुतोभिधेय्यलिङ्गिको, अभि. प. 797; ... अनुयोगमन्वाय अप्पमादमन्वाय सम्मामनसिकारमन्वाय तथारूपं चेतोसमाधि फुसति, दी. नि. 1.11; पुनप्पुन युत्तवसेन अनुयोगोति, दी. नि. अट्ठ. 1.90; ख. प्रश्न, परीक्षण, जांच पड़ताल - पञ्हो तीस्वनुयोगो च पुच्छा, प्यथ निदस्सनं, अभि. प. 115; एतस्मिञ्च पाठे ... सम्बन्धित्वा पुन कस्माति अनुयोगं दस्सेत्वा, खु. पा. अट्ठ. 179; ग. Vदा से व्यु., क्रि. रू. के साथ प्रयुक्त - परीक्षा देना या उत्तीर्ण होना - ..., अङ्गेहि समन्नागतस्स भिक्खुनो अनुयोगो न दातब्बो ति, परि. 360; सो आचरियस्स अनुयोगं दत्वा बाराणसिं पच्चागच्छि, जा. अट्ठ. 3.368; स. उ. प. के रूप में अत्तकिलमथानु., अत्तपरितापनानु., अननु., अभिज्ञानु., असुभभावनानु.. आतपनानु., उदकोरोहणानु., उपादानपञत्तानु.. उपेक्खभावनानु., कामसुखल्लिकानु.. कामसुखानु., कायभावनानु., किलमथानु, केसमस्सुलोचनानु., जागरियानु०, जूतपमादट्ठानानु, दूतेय्यपहिणगमनानु., देवदूतानु, धम्मानु. पञत्तानु, पधानानु, परपरितापनानु, परियायभत्तभोजनानु, भावनानु., मण्डनानु.. सतिपट्टानभावनानु., सिक्खत्तयानु०, सोमनस्सानु के अन्त. द्रष्ट.; - क्खम त्रि., [अनुयोगक्षम]. वह जो परीक्षण अथवा प्रश्न पूछने की स्थिति का सामना करने में सक्षम या समर्थ है, परीक्षा या जांच का सामना करने में समर्थ - नो अनुयोगक्खमो, नो विमज्जनक्खमोति अनुयोग वा वीमंसं वा न खमति, ..., म. नि. अट्ठ. (म.प.) 2.68; तस्स भगवतो वादो ..., अनुयोगक्खमो च विमज्जनक्खमो चाति, म. नि. 2.54; - दापन नपुं., तत्पु. स., परीक्षण करवाना, प्रश्न पुछवाना, जांच पड़ताल कराना - तेन नं भगवा अनुयोगक्खमो अयन्ति अत्वा सीहनादे अनुयोगदापनत्थं इमम्पि देसनं आरभि, दी. नि. अट्ठ. 3.563B .... अनुयोगं दापनत्थं, अनुयोगं दत्वा, दानं दत्वा, सद्द. 2.480; - भयभीत त्रि., परीक्षण या प्रश्नों को पूछे जाने से भयग्रस्त - तथेव भगवतो अनुयोगभयेन भीतो अज्ञपि अत्तनो सहायके आचिक्खन्तो पठम गाथमाह, जा. अट्ठ. 3.316; पाठा. अनुयोगभयेन भीती; - वन्तु त्रि.. [अनुयोगवत्], पूरी तरह से स्वयं को लगा देने वाला, पूर्णरूप से समर्पित, सुदृढ़ निष्ठा वाला - ... सततं सब्बकालं अनुयोगवन्ता, ते पुञ्जवन्तो केवलं .... पे. व. अट्ठ. 180; - वत्त नपुं.. [अनुयोगवृत्त], अनुयोग या परीक्षण या जांच पड़ताल सम्बन्धी प्रक्रिया, सङ्घसम्बन्धी किसी विषय का विनिश्चय - अनुयोगवत्तं निसामय, कुसलेन बुद्धिमता कतं, परि. 302; 313; ... भगवा अनुयोगवत्तं दस्सेन्तो सा पनावुसो, ..., म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).322; समनुयुञ्जतीति अनुयोगवत्तं आरोपेन्तो पुच्छति, ..., अ. नि. अट्ठ. 2.118; अनुयोगवत्तन्ति अनुयोगे कते वत्तितब्बवत्तं, आरोपेन्तोति कारापेन्तो, अत्तनो पुच्छं उद्दिस्स पटिवचनं दापेन्तो पुच्छति, अ. नि. टी. 2.106. अनुयोगी त्रि., अनु + vयुज से व्यु. [अनुयोगी], निष्ठावान्, समर्पित, स्वयं को पूरी तरह से किसी में लगा देने वाला, केवल स. उ. प. के रूप में ही प्रयुक्त - अत्थं हित्वा पियग्गाही, पिहेतत्तानुयोगिनं, ध. प. 209; ये च ते सततानुयोगिनो, धुवं पयुत्ता सुगतस्स सासने, पे. व. 487; सततानुयोगिनोति ओसानगाथाय अयं सङ्घपत्थो - अहम्पि नाम रत्तियं पाणवधमत्ततो विरतो एवरूपंसम्पतिं अनुभवामि, पे. व. अट्ठ. 179-180; पिहेतत्तानुयोगिनन्ति ताय पटिपत्तिया सासनतो चुतो गिहिभावं पत्वा पच्छा ये अत्तानुयोग अनुयुत्ता For Private and Personal Use Only
SR No.020528
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2007
Total Pages761
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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