SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 287
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुपसम्पन्न 260 अनुपस्सयमान अप्पटिसरणे, दी. नि. 3.87; म. नि. 3.30; स. नि. 3(2).. देखता है - ठितं, आनेजप्पत्तं, वयञ्चस्सानुपस्सति, महाव. 443; अनुपसमसंवत्तनिकेति रागादीनं उपसमं कातुं असमत्थे, 256; अमिस्सीकतमेवरस चितं होति ठितं आनेञ्जप्पत्तं दी. नि. अठ्ठ. 3.80; म. नि. अट्ठ. (उप.प.) 3.21; - रत। वयञ्चस्सानुपस्सति, अ. नि. 2(2).88; अत्तनो अत्तानं त्रि., [अनुपशमरत], अशान्ति में डूबा हुआ, शान्ति में नानुपस्सतीति ज्ञाणसम्पयुत्तेन चित्तेन विपस्सन्तो अत्तनो आनन्द का अनुभव न करने वाला - अनुपसमारामा, भिक्खवे, खन्धेसु अझं अत्तानं नाम न पस्सति, सु. नि. अट्ठ. 2.124; पजा अनुपसमरता अनुपसमसम्मुदिता, अ. नि. 1(2).149; - येन चक्खुपसादेन रूपानिमनुपस्सति, अभि. अव. 84; - समाराम त्रि., [अनुपशमाराम], अशान्ति में ही मन को सन्त वर्त. कृ. -- अनिच्चं दुक्खमनत्ताति, सङ्घारे अनुपस्सतो, रमाने वाला, शान्ति में आनन्द का अनुभव न करने वाला अभि. अव. 162; - स्समान वर्त. कृ., आत्मने. - अनुपसमारामा, भिक्खवे, पजा अनुपसमरता कायानुपस्सीति कायमनुपस्सनसीलो, कायं वा अनुपस्समानो, अनुपसमसम्मुदिता, अ. नि. 1(2).149 - सम्मुदित त्रि., म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).252. [अनुपशमसम्मुदित], अशान्ति में आनन्द अनुभव करने अनुपस्सन नपुं., अनुपश्यना, सम्यक-दृष्टि, गम्भीर दर्शन - वाला, चित्त की शान्ति में आनन्दित न होने वाला - पजा भवं अङ्गारकासुंव, आणेन अनुपस्सनो, थेरगा. 420; - सील अनुपसमरता अनुपसमसम्मुदिता, अ. नि. 1(2).149. त्रि., अनुपश्यना या गम्भीर अनुचिन्तन करने के स्वभाव अनुपसम्पन्न त्रि., उपसम्पन्न का निषे. [अनुपसम्पन्न]. वाला - कायानुपस्सीति कायमनुपस्ससीलो, म. नि. अट्ठ. ऐसा श्रामणेर, जिसे अभी तक उपसम्पदा प्राप्त नहीं हुई है (मू.प.) 1(1).252. - उपसम्पन्नो ... अनुपसम्पन्नस्स पेसुञ्ज उपसंहरति, अनुपस्सना स्त्री., [अनुपश्यना], गम्भीर ज्ञान-दर्शन, आपत्ति दुक्कटस्स, पाचि. 25; अनुपसम्पन्नो नाम भिक्खुञ्च अनुपश्यना, धर्मों का प्रविचयात्मक ज्ञान, अमोह - अट्ठ भिक्खुनिञ्च ठपेत्वा अवसेसो अनुपसम्पन्नो नाम, पाचि. 263; अनुपस्सनाञाणानि, अट्ठ च उपट्ठानानुस्सतियो, चत्तारि - दूसक त्रि., [अनुपसम्पन्न-दूषक], ऐसी स्त्री को दूषित ...., पटि. म. 178; अट्ठ अनुपस्सनाञाणानीति दीघं रस्सं करने वाला व्यक्ति, जिसे उपसम्पदा प्राप्त नहीं हुई है -- सब्बकायपटिसंवेदी परसम्भयं कायसवार न्ति वुत्तेसु चतूसु सचे अनुपसम्पन्न-दूसको उपसम्पदं, विन. वि. 2539; - वत्थूसु अस्सासवसेन चतस्सो, परसासवसेन चतस्सोति अट्ठ सज्ञी त्रि., [अनुपसम्पन्न-संज्ञी], उपसम्पदा-प्राप्त भिक्षु को । अनुपस्सनाञआणानि, पटि. म. अट्ठ. 2.105; अनुपस्सनापि भी उपसम्पदा न पाया हुआ मानने वाला - उपसम्पन्ने आणन्ति, वरत्राणेन देसितं, अभि. अव. 158; या पा अनुपसम्पन्नसी विनयं विवण्णेति आपत्ति पाचित्तियस्स, पजानना ... अमोहो धम्मविचयो सम्मादिट्ठि- अयं वुच्चति पाचि. 192; - सील नपुं॰, कर्म. स., उपसम्पदा न पाये हुए अनुपस्सना, विभ. 218; सत्तविधा अनुपस्सना नाम श्रामणेरों के लिए निर्धारित दस प्रकार के शील या शिक्षापद अनिच्चानुपस्सना, दुक्खानुपस्सना अनत्तानुपस्सना - सामणेरसामणेरीनं दससीलानि अनुपसम्पन्नसीलं विसुद्धि. निबिदानुपस्सना, विरागानुपस्सना, निरोधानुपस्सना 1.16; - टि. उपसम्पदा न पाये हुए श्रामणेरों के लिये पटिनिस्सग्गानुपस्सनाति, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).166; भगवान बुद्ध द्वारा प्रज्ञप्त निम्नलिखित दस शिक्षापद इदं दुक्खं अयं दुक्खसमुदयोति अयमेकानुपस्सना, सु. नि. अनुपसम्पन्न-सील कहे गये हैं :- 1. प्राणिहत्या से विरति, (पृ.) 190; स. उ. प. के रूप में अनत्तानुपस्सना, अनिच्चानु, 2. अप्रदत्त वस्तु को ग्रहण करने से विरति, 3. मैथुन से अनिमित्तानु.. अप्पणिहितानु., आदीनवानु.. कायानु.. खयानु.. विरति 4. असत्यभाषण से विरति 5. मादक पदार्थों के सेवन चित्तानु, दुक्खानु., दयतानु, धम्मानु., निब्बानानु., निबिदानु., से विरति 6. विकाल-भोजन से विरति 7. नृत्य, गीत आदि निरोधानु, पटिनिसग्गानु, पटिसङ्खानु.. वयानु., विपरिणामानु, से विरति 8. प्रसाधन-सामग्रियों के प्रयोग से विरति 9. विरागानु., विवट्ठानानु., वेदनानु., सतिपट्ठानानु., सुञतानु. बहुमूल्य, बिछावनों/पलङ्गों के प्रयोग से विरति 10. चांदी, के अन्त. द्रष्ट; -टि. विपश्यना ध्यान-पद्धति में विकसित सोने को दान में ग्रहण करने से विरति. प्रज्ञा द्वारा धर्मों के यथार्थ स्वरूप का तटस्थभाव से प्रत्यवेक्षण अनुपस्सति अनु + दिस का वर्त, प्र. पु., ए. व. ही अनुपश्यना है. [अनुपश्यति], अनुपश्यना करता है, गम्भीर आन्तरिक अनुपस्सयमान त्रि., उप + Vसी के वर्त. कृ. उपस्सयमान अनुचिन्तन करता है, निरीक्षण करता है, आन्तरिकरूप में का निषे., आश्रय ग्रहण न करता हुआ, सङ्गति न करने For Private and Personal Use Only
SR No.020528
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2007
Total Pages761
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy