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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अनन्तरधान ही निरोध को प्राप्त अनन्तरपच्चयोति अनन्तरनिरुद्धा चित्तचेतसिका धम्मा, अभि. अव 175; पच्चय पु.. [ अनन्तरप्रत्यय ] अत्यासन्न कारण, चौबीस प्रत्ययों में से एक अनन्तरपच्चयोति अनन्तरनिरुद्धा चित्तचेतसिका धम्मा, अभि. अव. 175; पच्चयकथा स्त्री०, [अनन्तरप्रत्ययकथा] कथा के चौदहवें वर्ग की तीसरी कथा का एक शीर्षक कथा. 399-402: पटिविस्सकघर नपुं. [ अनन्तरप्रतिवेशिकगृह], बिल्कुल बगल वाले पड़ोसी का घर, निकटतम प्रतिवेशीगृह घरा निक्खमित्वा अनन्तरं पटिविस्सकघर गन्या जा. अड. 3.444 पाठा. अनन्तरं पटिविस्सकधर पेय्याल पु०, नपुं० [बौ० सं० अनन्तरपरियाय] किसी स्थल- विशेष की पुनरावृत्ति, किसी अनुच्छेद या परिच्छेद की पुनरावृत्ति अनन्तरपेप्यालं निद्वित् परि. 205 पाठा, अन्तरपेय्याल निहितं परि. 205 - मण्डक नपुं महाबालुकगङ्गा के एक घाट का नामरक्खणत्थं ठितो तित्थे नामे नन्तरभण्डके, चू. वं. 72.16; वत्थु नपुं. [ अनन्तरवस्तु] ठीक पहले आयी कथा सेस अनन्तरवत्थुसदिसमेद पे व अट्ठ. 81 विमोक्ख त्रि.. [ अनन्तरविमोक्ष] सद्यः प्राप्त होने वाली विमुक्ति, सदयःप्राप्य विमोक्ष अद्वपि विमोक्खा अनन्तरविमोक्खा नाम न होन्ति, थेरीगा. अ. 110 सामन्त पु.. [अनन्तरसामन्त ]. पड़ोस का राजा, प्रतिवेशी राजा तुच्छ किर रज्जन्ति अनन्तरसामन्तकोसलराजा महतिया सेनाय आगन्त्वा नगरं परिवारेसि, जा. अट्ठ. 2.17 - सुत्त नपुं० [ अनन्तरसूत्र ], पूर्ववर्ती सूत्र अनन्तरसुत्ते वुत्तत्थमेव उदा. अड 352. अनन्तरधान नपुं, अन्तरधान का निषे, तत्पु [ अनन्तर्धान] अदृश्य न होना, अन्तर्हित न होना, विलुप्त न होना, अलोप, स्थिति, विद्यमानता सद्धम्मस्स ठितिया असम्मोसाय अनन्तरधानाय संवत्तति, अ. नि. 1 (1).23. अनन्तरहित [अनन्तरहित] अतिरोहित, अनाच्छादित, उन्मुक्त, खुला हुआ एसो सुदिन्नो अनन्तरहिताय भूमिया निपन्नो पारा 15: न च अनन्तरहिताय भूमिया पत्तो निक्खिपितब्बो महाव. 52. " - - - www.kobatirth.org - 194 अनन्तरा निपा [ अनन्तरा] 1. क्रि. वि. तुरन्त बाद में, आगे खयरिगं पठमं आणं, ततो अञ्ञा अनन्तरा, इतिवु. 39. अ.नि. 1(1).263; अनन्तराति ततो चतुत्थमग्गजाणतो अनन्तरा अञ्ञा उप्पज्जति, अ. नि. अट्ठ. 2.208 2. षष्ठ्यन्त तथा पञ्चम्यन्त के साथ उप के रूप में प्रयुक्त; अगला, इसके अतिरिक्त तुरन्त बाद में - सुमुखो Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनन्तरे अज्जुपावेक्खि धतरद्वस्सनन्तरा, जा. अड. 5.373; कुसलो खत्तधम्मानं ततो पुच्छि अनन्तरा, तदे, मनोधातुसम्पटिच्छन पन चक्खुविज्ञाणादीनं अनन्तरा रूपादिविजानन लक्खणं, अभि. अव. 11; - विमोक्ख त्रि. [ अनन्तराविमोक्ष ], अग्रमार्ग के तुरन्त बाद में उत्पन्न विमोक्ष - अनन्तराविमोक्खासिं, अनुपादाय निब्बुता, थेरीगा. 105: अनन्तराविमोक्खासिन्ति अग्गमग्गस्स अनन्तरा उप्पन्नविमोक्खा आसि थेरीगा. अड. 110. अनन्तरापयुक्त्त त्रि, चार प्रकार के गम्भीर पापकर्मों (आनन्तरीय कर्मों) के लिये उत्तरदायी व्यक्ति, चार गंभीर पापकर्म करने वाला - अनन्तरापयुक्तो युग्गलो अभब्बो सम्मत्तनियामं ओक्कमितुन्ति ? कथा. 386 कथा स्त्री, कथा के तेरहवें वर्ग की तीसरी कथा का शीर्षक कथा. 386-387. : अनन्तराय त्रि अन्तराय का निषे. ब. स. [ अनन्तराय]. अन्तराय-रहित, उपसम्पदा की अर्हता के बाधक लक्षणों से रहित, बाधारहित, निर्विघ्न, निर्भय, कालव्यवधान के बिना दससु अन्तरायेसु एकेनपि अन्तरायेन अनन्तराया पाचि अ. 195; अक्खतन्ति वा अनाबाधं अनुप्पीळं, अनन्तरायेनाति अत्थो, वि. व. अ. 298 यिक त्रि. [अनन्तरायिक]. बाधारहित, निर्बाध, निर्विघ्न, उपसम्पदा के लिये निर्दिष्ट दस प्रकार के अन्तरायों से मुक्त अनन्तरायिकोति यस्स दससु अन्तरायेसु एकोपि नत्थि, चूळव. अट्ठ. 20 अनन्तरायिका आपत्ति जानितब्बा परि. 236, पाठा. अन्तरायिका टि. ब्रह्मचर्य आवास की परिपूर्णता में पांच बाधक तत्त्वों को अन्तराय कहते है ये है 1. कम्मन्तरायिक 2. किले सान्तरायिक 3 विपाकान्तरायिक 4. उपवादान्तरायिक 5 आणावितक्कान्तरायिक इनसे युक्त भिक्षु 146वें पाचित्तिय आपत्ति में आपतित होता है तथा जो इनसे रहित है वह अनन्तरायिक कहलाता है. इसी प्रकार उपसम्पदा - प्राप्ति के लिये 13 अनर्हताओं से मुक्त भिक्षु को भी अनन्तरायिक कहते हैं द्रष्ट, महाव. 97 - विकिनी स्त्री, अन्तरायों अथवा भिक्षु-जीवन में प्रवेश के लिये अयोग्य बनाने वाले तत्त्वों से रहित भिक्षुणी विघ्न तथा बाधाओं से सर्वथा मुक्त भिक्षुणी या पन भिक्खुनी भिक्खुनिया चीवर सा पच्छा अनन्तरायिकिनी नेव सिब्बेप्य पाचि 383. अनन्तरे अ, अनन्तरा का सप्तम्यन्त रूप, समीप में, निकट में, पास में गङ्गाय चेव एकस्स व जातस्सरस्स अनन्तरे पण्णसालं कत्वा, जा. अट्ठ. 5.388; पाठा. अन्तरे. For Private and Personal Use Only -
SR No.020528
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2007
Total Pages761
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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