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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनञ 183 अनजात अत्तगरहिनोयेव होन्ति अनगरहिनो, म. नि. 2.207; - त्त नपुं.. भाव. [अनन्यत्व], एक ही होना, अभिन्नता - चेतनाय अनञत्ता, अभि. अव. 107; - थ त्रि., अञथा का निषे०, तत्पु., दूसरे रूप में नहीं, यथार्थ रूप में, वास्तविक रूप में - चत्तारिमानि ... तथानि अवितथानि अनअथानि, स. नि. 3(2).493; इदं दुक्खान्ति, भिक्खवे, तथमेतं अवितथमेतं अनञथमेतं, पटि. म. 283; तानि ... भगवतो आणानि तस्मिं तस्मिं विसये ... अविसंवादनतो ... अनञथानि, उदा. अट्ठ. 111; - थता स्त्री., अनाथ का भाव., यथार्थ रूप में रहने की अवस्था - या तत्र तथता अवितथता अनञथता इदम्पच्चयता - अयं वुच्चति, भिक्खवे, पटिच्चसमुप्पादो, स. नि. 1(2).24; - था अ., निपा. [अनन्यथा], दूसरे अथवा विपरीत रूप में नहीं, यथार्थ रूप में- तञ्च होति भूतं तच्छ अनजथा, म. नि. 2.389, विप. मुसा; - थाभावी त्रि., [अनन्यथाभावी]. दूसरी दशा में अथवा दूसरे रूप में परिवर्तित नहीं होने वाला - अनजथाभाविमनञ्जनेय्यं ..., महाव. 41; - धेय्य/थेय्य त्रि., [अनन्यधेय, अनन्यस्तेय], शा. अ. दूसरों द्वारा न चुराये जाने योग्य, दूसरों के पास न रखने योग्य ला. अ. पत्नी के समान दूसरे राजाओं के अधिकार में न सौपें न जाने योग्य पृथ्वी - एकस्सेव सिया अनअधेय्या, जा. अट्ठ. 4.100; या सीलवती अनञ्जथेय्या .... जा. अट्ठ. 6.209; अनजथेय्याति किलेसवसेन अञ्जन न थेनितब्बा, तदे. पाठा. अनाथेय्य; - नेय्य त्रि., [अनन्यनेय], 1. दूसरों द्वारा न ले जाने अथवा मार्ग दर्शन न कराने योग्य, अपना मार्ग स्वयं खोजने वाला - ... उप्पन्नाणोम्हि अनञ्जनेय्यो .... सु. नि. 55 (अओहि इदं सच्च, इदं सच्चान्ति न नेतब्बो, सु. नि. अट्ठ. 1.84): नेतारमओसमनञ्जनेय्यं सु. नि. 215; अत्तनो पन अञ्जन केनचि मग्गं दस्सेत्वा अनेतब्बत्ता अनञ्जनेय्यं सु. नि. अट्ठ. 1.220; 2. निर्वाण, ऐसा पद, जो दूसरों द्वारा पहुंचाये जाने योग्य नहीं है - अनञ्जथाभाविमनञ्जनेय्यं..., महाव. 41; अत्तना भावितेन मग्गेनेव अधिगन्तब्ब, न अञ्जन केनचि अधिगमेतब्बन्ति अनञ्जनेय्यं महाव. अट्ठ. 243; - नेय्यता स्त्री., अनञ्जनेय्य से व्यु. भाव., स्वयं मार्ग प्राप्त करने की स्थिति - अनञ्जनेय्यताय बुद्धो, महानि. 344; - पाचित्तिय नपुं., (ब. स. में ही), पाचित्तिय के अन्त. परिगणित उन चार आपत्तियों (भिक्षु के पापकर्मों) का नाम, जिन में 'एतदेव पच्चयं करित्वा अनञ्च का वचन कहा जाए, पाचि. संख्या 16, 42, 77 तथा 78 इसी नाम के अन्त. आते हैं - चत्तारि अनञपाचित्तियानि, परि. 251; एतदेव पच्चयं करित्वा अननं पाचित्तियन्ति एवं वुत्तानि ... इमानि चत्तारि परि. अट्ठ. 172; - पोसी त्रि., [अनन्यपोषी], क. वह, जो दूसरों अर्थात् पुत्र, पत्नी आदि का पालन-पोषण न करता हो, गृहत्यागी भिक्षु या मुनि; ख. वह, जो अन्यों द्वारा पोषित न हो, अल्प इच्छाओं वाला हो, वीतराग मुनि - रसेसु गेधं अकरं अलोलो, अनञ्जपोसी सपदानचारी, स. नि. 65; अनञ्जपोसीति पोसेतब्बकसद्धिविहारिकादिविरहितो, कायसन्धारणमत्तेन सन्तुट्ठोति, सु. नि. अट्ठ. 1.93-94; अकिञ्चनो भिक्खु अनञपोसी, स. नि. 1(1).167; - वाद त्रि., अन्य लोगों के मतों के साथ नहीं जुड़ा हुआ, मिथ्यादृष्टि से पूर्ण सिद्धान्तों से मुक्त - अनञवादो सारत्थो सद्धम्ममनुरक्खनो, दी. वं. 4.24; - सत्थुक त्रि., किसी भी अन्य को शास्ता अथवा शिक्षक न बनाने वाला, दूसरे शिक्षक से रहित - अनञ्जसत्थुकं तीहि सरणगमनेहि सरणं गतं, उदा. अट्ठ. 235; पारा. अट्ठ. 1.131; - साधारण त्रि., [अनन्यसाधारण], वह, जिसमें दूसरों की साधारण बातें न पाई जाएं, विशिष्ट प्रकार का - ... अनञसाधारणं ... भगवतो यमकपाटिहारियाणं, उदा. अट्ठ. 112; यस्मा पनेतं सद्धावित्तं अनुगामिकं अन साधारणं..., सु. नि. अट्ठ. 1.196; - सरण त्रि., ब. स. [अनन्यशरण]. वह, जो किसी दूसरे की शरण नहीं लेता, आत्मदीप, आत्मप्रकाश, आत्मनिर्भर - ... भिक्खु अत्तदीपो विहरति अत्तसरणो अनअसरणो, दी. नि. 2.78; अत्तदीपो ... अत्तसरणो अनञसरणो एव भवेय्य, उदा. अट्ठ. 272. अनआत त्रि., अज्ञात का निषे. [अनाज्ञात], अज्ञात, नहीं जाना हुआ - अनिमित्तमनञआतं, मच्चानं इध जीवितं. सु. नि. 579; अनातं मया नत्थि अप. 1.40; धम्मानं अनजातानं ध. स. 296; तुल. अात; - अस्सामीतिन्द्रिय नपुं., अनञआत + अस्सामि + इति + इन्द्रिय, [बौ. सं. अनाज्ञातं आज्ञास्यामीन्द्रिय], किसी अज्ञात धर्म को जानने हेतु संकल्प लेने वाली इन्द्रिय, स्रोतापत्ति-मार्ग की प्रज्ञातीणिमानि, ... इन्द्रियानि ... अनञआतञस्सामीतिन्द्रिय अञिन्द्रिय, अञआतावीन्द्रिय, इतिवु. 39, द्रष्ट. अज्ञातावीन्द्रिय तथा अभिन्द्रिय; - टि. आर्यमार्ग पर चल रहे आर्यश्रावक की प्रज्ञाइन्द्रिय के क्रमशः सूक्ष्मतर हो रहे स्वरूप का विभाजन अभिधम्म की शैली में अनातज्ञस्सामीतिन्द्रियं, अभिन्द्रियं तथा अआतावीन्द्रिय, For Private and Personal Use Only
SR No.020528
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2007
Total Pages761
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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