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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir xviii संख्या का उल्लेख हुआ है। सुत्तनिपात के गद्यभाग के सन्दर्भो का सङ्केत पृ. का उल्लेख कर तथा गाथाओं का संकेत गाथा-संख्या द्वारा किया गया है। 11. जातक की गाथाओं एवं अट्ठकथा दोनों से गृहीत उद्धरणों के सन्दर्भ जातक अट्ठकथा की पृष्ठ-संख्या द्वारा सङ्केतित किये गये हैं। 12. विनय एवं अभिधम्म के विशिष्ट पारिभाषिक शब्दों के निहितार्थ के स्पष्टीकरण हेतु संक्षिप्त टिप्पणियाँ दी गयीं हैं। 13. पालि-शब्दों के संस्कृत-समानान्तर कोष्ठक [ ] के अन्तर्गत सङ्केतित कर दिये गये हैं। 14. प्रायः मूल-शब्दों की संक्षिप्त व्युत्पत्ति शब्द के उपरान्त ही दे दी गयी है। 15. मूल-शब्द से व्युत्पन्न उस शब्द के विविध प्रयोगों को प्रायः (क) उसी मूलशब्द के अन्तर्गत पड़ी रेखा - के पश्चात् रखा गया है, जैसे कि भगवन्तु के भगवा, भगवता, भगवति आदि विभिन्न विभक्तियों के पदों को मूल प्रातिपदिक भगवन्तु के ही अन्तर्गत रखा गया है. (ख) समस्त पदों को मूल-शब्द के ही अन्तर्गत पड़ी रेखा -के पश्चात् रखा गया है, जैसे कि बोधि के अन्तर्गत - रुक्ख, 'बोधिरुक्ख' का सूचक है। 16. विभिन्न धातुओं से निष्पन्न क्रियारूपों को सम्बद्ध धातु के वर्तमान काल के प्रथम पुरुष एकवचन के रूप के ही अन्तर्गत रखा गया है, जैसे कि गिम् (जाना) धातु से व्युत्पन्न विविध कालों, भावों एवं कृत्प्रत्ययान्त रूपों को 'गच्छति' शीर्षक के अन्तर्गत रखा गया है। यत्र-तत्र कुछ क्रिया-रूपों को स्वतन्त्र प्रविष्टि के अन्तर्गत भी रखा गया है। 17. उपसर्गयुक्त धातुओं के रूप पृथक्रूप से उपसर्ग के आदिवर्ण की क्रम-स्थिति के अनुरूप विन्यस्त किये गये हैं। 18. उद्धरणों को तिरछे (Italics) टंकण में प्रस्तुत किया गया है। 19. संकेतसूची 'क' के अन्तर्गत व्याकरण आदि के विशिष्ट पारिभाषिक शब्दों के सङ्केताक्षर उल्लिखित हैं जबकि संकेत-सूची 'ख' में सन्दर्भ-ग्रन्थों के नामों के सङ्केतक प्रस्तुत किये गये है। 20. पालि-साहित्य में उल्लिखित उपाख्यानों, प्रयुक्त छन्दों, अलङ्कारों, विशिष्ट पारिभाषिक शब्दों एवं भौगोलिक शब्दों आदि के सामान्य व्याख्यानों को शब्दकोश के अन्त में विभिन्न परिशिष्टों के रूप में जोड़ दिये जाने की योजना है। 21. शब्दकोश के शब्द-व्युत्पत्तिपरक संक्षिप्त निर्देशों में हिन्दी-भाषी पाठकों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए व्याकरणों में गृहीत पारिभाषिक शब्दों का प्रयोग किया गया है। जैसे कि बुद्धो के व्युत्पत्ति-परक निर्वचन में प्र. वि., ए. व. तथा गच्छति के लिए वर्त., प्र. पु.. ए. व. लिखा गया है। पारिभाषिक शब्दों की संकेताक्षर-सूची में व्याकरण के इन पारिभाषिक शब्दों के पालि-समानान्तर भी दे दिए गए है। 22. यद्यपि आधुनिक हिन्दी-लेखन में परसवर्ण के स्थान पर प्रायः अनुस्वार का ही प्रयोग होने की प्रवृत्ति बनती है परन्तु शब्दकोश के हिन्दी-निर्वचनों में दोनों का प्रयोग हुआ है। 23. चन्द्रविन्दु के स्थान पर अनुस्वार का ही प्रयोग हुआ है। For Private and Personal Use Only
SR No.020528
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2007
Total Pages761
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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