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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अत्थतो 138 अत्थधम्म महाव. 331; अत्ति एवत्थतञ्चेव, महाव. 353; उपरिअत्थतेन अजिनचम्मेन .... जा. अट्ठ. 5.403; सन्थतेति ... कप्पियत्थरणेहि अत्थते, सु. नि. अट्ठ. 2.98; - कथिन त्रि. ब. स., कठिन-चीवर नामक विधान पूरा कर चुका व्यक्ति, - अत्थतकथिनानं वो, भिक्खवे, इमानि पञ्च कप्पिस्सन्ति, महाव. 331, द्रष्ट. कठिन(कथिन) के अन्त... अत्थतो प. वि., प्रतिरू. निपा. [अर्थतः], वास्तविक अभिप्राय की दृष्टि से, आशय के अनुसार अर्थ की दृष्टि से - ... आयस्मन्तानं अत्थतो चेव नानं व्यञ्जनतो च नानं, म. नि. 3.25; इमम्पि... कारणं अत्थतो सम्पटिच्छ..., मि. प. 118. अत्थत्तिक पु., समा. द्व., स. [अर्थत्रिक]. अर्थ त्रितय, तिहरा अर्थ - यो इमं अत्थतिक सुविभत्तं, सद्द. 1.313; - विभाग पु. सद्द. के 14वें अध्याय का नाम - विझून कोसल्लत्थाय कते सहनीतिप्पकरणे अत्थत्तिविभागो, सद्द. 1.314. अत्थत्थ पु., अत्थ + अत्थ- [अर्थार्थ], क. उपयोगी अथवा हितकारक वस्तु - अत्थत्थमेवानुविचिन्तयन्तो, जा. अट्ठ. 7.183; ख. अत्थत्थाय रूप में, लाभ अथवा हित के निमित्त - या तत्थ तस्स परिसपरियेसना, सा अत्थत्थाय, मि. प. 246; - पटिपुच्छा/परिपुच्छा स्त्री., [अर्थार्थप्रतिपृच्छा], स्वयं के हित अथवा कल्याण के विषय में प्रश्न - अत्थत्थपरिपुच्छासम्पदा, तित्थवाससम्पदा, ... इमाहि सत्तहि । सम्पदाहि समन्नागतो.... जा. अट्ठ. 4.86; पाठा. अत्तत्थ०. अत्थत्थिकभाव पु.. [अर्थार्थीभाव], अर्थार्थी होने की दशा, हित-कल्याण को चाहने की अवस्था अथवा मनोवृत्ति - अत्थेन अस्थिको तस्स अत्थत्थिकभावस्स अनुरूप.... सु. नि. अट्ठ. 2.120. अत्थदस्स/अत्थदस त्रि., अत्थः + दस्स, [अर्थदर्श], हितकारक बात को देखने अथवा समझने वाला, अपने लिए कल्याणकारक अथवा शुभ को खोजने वाला - ये पण्डिता अत्थदसा भवन्ति, जा. अट्ठ. 7.150; ... अत्थदसाति अत्थदस्सनसमत्था, तदे.; अत्थदसोति हितानपस्सी, सु. नि. अट्ठ. 2.94, समाना. अत्थदस्सी. अत्थदस्सिमा त्रि., अत्थ + दस्सी + मन्तु, सुस्पष्ट दृष्टि वाला, प्रत्युत्पन्नमति - तं तत्थ गतिमा धितिमा, मतिमा अत्थदस्सिमा, जा. अट्ठ. 7.180, तुल. अत्थदस्सी. अत्थदस्सी' त्रि., अत्थदस्स से व्यु. [अर्थदर्शी], उपरिवत् - ततो च मघवा सक्को अत्थदस्सी, जा. अट्ठ. 5.135; पण्डिता अत्थदस्सिनी, जा. अट्ठ. 6.300; अत्थदस्सिनन्ति अनागतं अत्थं पस्सन्तानं, जा. अट्ठ. 3.284; विलो. अनत्थदस्सी. अत्थदस्सी पु., व्य. सं. क. चौदहवें बुद्ध का नाम - तत्थेव मण्डकप्पम्हि, अत्थदस्सी महायसो, बु. वं. 16; एकस्मि कप्पे पियदस्सी, अत्थदस्सी, धम्मदस्सीति तयो बुद्धा निब्बत्तिंस जा. अट्ठ. 1.48; अत्थदस्सी तु भगवा, सयम्भू अपराजितो, अप. 1.85, 97, 171; ख. वाराणसी के एक प्राचीन राजा का नाम - रामो, बिलारथो नाम चित्तदस्सी अत्थदस्सी, दी. वं. 3.41; ग. श्रीलङ्का के एक स्थविर का नाम - थेरेन अत्थदस्सिना, जा. अट्ठ. 1.2. अत्थदीपक त्रि., [अर्थदीपक], अर्थ को प्रकाशित करने वाला, अर्थ को स्पष्ट करने वाला - निरुद्धन्ति अत्थदीपकापदवतीति, सद्द, 1.178. अत्थद्वय नपुं. समा. द्व. स. [अर्थद्वय], भिन्न-भिन्न प्रकार के दो अर्थ- इध पन ... अत्थद्वये युज्जति, खु. पा. अट्ठ. 82. अत्थद्ध त्रि., थद्ध का निषे. [अस्तब्ध], घमण्ड-रहित, अहंभाव से मुक्त, हठ न करने वाला - अत्थद्धो होति अनतिमानी, दी. नि. 3.34; म. नि. 1.137; अत्थद्धोति थद्धमच्छरियविरहितो, जा. अट्ठ. 7.181, पाठा. अथद्ध; - ता स्त्री., भाव., अहंकार रहित चित्तवृत्ति, निरहंकारता - अवित्थनताति ... अथद्धता, ध. स. अट्ठ. 194; अथद्धताय अनतईसो, जा. अट्ठ. 7.143, पाठा. अथद्धता. अत्थधम्म पु., द्व. स. [अर्थधर्म], अर्थ और धर्म का प्रतिसंवित ज्ञान - अत्थधम्मस्स कोविदो, जा. अट्ठ. 3.299; पाठा. अत्थं धम्मस्स; - निरुत्ति स्त्री., समा. द्व. स., [अर्थधर्मनिरुक्ति], प्रथम तीन प्रतिसंवित् ज्ञान - अत्थधम्मनिरुत्तीस. पटिभाने तथेव च अप. 2.212; - टि. अर्हत्व की अवस्था की प्राप्ति होने पर प्राप्त होने वाले चार प्रकार के विशिष्ट ज्ञान प्रतिसंवित् (पटिसंभिदा अथवा पटिसंविहित) हैं। ये विशिष्ट आन्तरिक ज्ञान, अत्थपटिसंभिदा या अर्थों का सुस्पष्ट ज्ञान, धम्म-पटि. या हेतुओं, प्रत्ययों तथा हेतु-प्रत्ययसम्बन्धों का ज्ञान, निरुत्तिपटि. या निर्वचनात्मक व्याख्याओं का ज्ञान तथा पटिभानपटि. या वह बुद्धि जिसके द्वारा प्रथम तीन प्रतिसंवित् ज्ञानों की प्राप्ति का अनुभव होता है, द्रष्ट. अ. नि. 1(2).185; अ. नि. 2(1).105; पटि. म. 81; 109; - पटिसंवेदी त्रि., [अर्थधर्मप्रतिसंवेदी]. अर्थ एवं धर्म की गम्भीर समझ रखने वाला - अत्थधम्मप्पटिसंवेदी हुत्वा ..., उदा. अट्ठ. 253; - विदू त्रि., [अर्थधर्मवित], अर्थ एवं धर्म को जानने वाला - अत्थधम्मविदूति पाळिअत्थञ्चेव, पाळिधम्मञ्च जानन्तो, जा. अट्ठ. 7.105; - म्मानुसत्थि/ म्मानुसिट्ठि स्त्री., तत्पु. स., [अर्थधर्मानुशिष्टि], अर्थ एवं For Private and Personal Use Only
SR No.020528
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2007
Total Pages761
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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