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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir । हस्ती ४ महिष ५ वृषभ ६ वानर ७ चीता ८ ल्याली मीढा १० और जलचरस्थलचर के अनेक भव ११ श्रीभूत पुरोहित १२ देवराजा पुनर्बमु विद्याधर १४ तीजे स्वर्ग देव १५ बासुदेव १६ मेघा १७ कुटुम्बी का पुत्र १८ देव १६ बणिक २० भोग भूमि २१ देव २२ चक्रवर्ती का पुत्र २३ फिर कइयक उत्तमभव धर पुष्करार्द्धक विदेह में तीर्थकर और चक्रवर्तीदोयपदकाधारी होय मोक्ष पावेगा और दशानन के भव श्रीकांत १ मृग २ सूकर ३ गज ४ महिष वृषभ ६ बादर७चीता ल्यालीहमींढा १०और जल चर थलचर के अनेक भव ११ शंभु १२ प्रभासकुन्द १३ तीजे स्वर्ग १४ दशमुख १५ बालुका १६ कुटुम्बी पुत्र १७ देव १८ बणिक १६ भोगभूमि २० देव २१ चक्रीपुत्र २२ फिर कईएक उत्तमभव धर भरत क्षेत्र में जिनराज होय मोक्ष पावेगा फिर जगत जाल में नहीं और जानका के भव गुणवती ? मृगी २ शूकरी ३ हथिनी ४ महिषी ५ गाय ६ वानरी ७चीतीपल्यालनी गारढ १० जलचर स्यलचर के अनेकभव ११ चितोत्सवा १२ पुरोहतकी पुत्री बेदवती १३ पांचमेंस्वर्ग देवी अमृतवत्ती १४ बलदेवकी पटराणी १५ सोलहवें स्वर्ग प्रतेन्द्र१६चक्रवर्ती१७अहिमिंद्र१८ रावणकाजीव तीर्थंकर होयगा उसके प्रथम गणधर देव होय मोक्ष प्राप्त होयगा। भगवान सकलभूषण विभीषण से कहे हैं श्रीकांतका जीव कइयक भव में शंभुप्रभासकुन्द होय अनुक्रम से गवणभया जिसने अर्द्धक्षेत्र में सफल पृथिवी वश करी एक अंग्रल आज्ञा सिवाय नरही और गुग्णवती का जीव श्रीभूत की पुत्री होय अनुक्रमकर सीता भई रजा जनककी पुत्री श्रीरामचन्द्र की पटगणी विनयवतीशीलवती पतिव्रतावों में अग्रेसर भई जैसे इन्द्रकेशची | चन्द्रके रोहणी रवि के रेणा चक्रवती के सुभद्रा तैसे राम के सीता सुन्दर है चेष्टा जिसकी और जो For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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