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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तर इस सुगन्ध वस्त्र माला के धारकने तुरंग से उतर अतिदयाकर बैल के कानमें नमोकार मंत्र दिया । मो बलदने चित्त लगाय सुना और माण तज राणी श्रीदत्ता के गर्भ में पायउपजा राजा छत्रछाय के पुत्र न था सो पुत्रके जन्म में अतिहर्षित भया नगर की अतिशोभा करो बहुत द्रव्य खरचा बड़ा उत्सव । कीया वादित्रों के शब्द कर दशों दिशा शब्दायमान भई यह वालक पुण्यकर्म के प्रभावकर पूर्वजाम जानता भया सो बलद के भवका शीत पाताप आदि महादुख और मरण समय नमोकार मंत्र सुना उसके प्रभावकर राजकुमार भया सो पूर्व अवस्था यादकर बालक अवस्था में ही महा वियकी होतामया जब तरुणअवस्था भई तब एक दिन विहार करता बलदके मरण के स्थानक गया अपना पूर्व चारित्र चितार यह वृषभध्वज कुमार हाथी से उतर पूर्वजन्म की मरण भूमि देख दुखित भया अपने मरणका सुधारण हारा नमोकार मंत्रका देनहारा उसकेजानिबेकेअर्थ एक कैलाश के शिखर समान ऊंचा चैत्यालय बनाया और चैत्यालय के द्वार विषे एक बड़े बैलकी मूर्ति जिसकेनिकट बैठा एक पुरुष नमोकार मंत्र सुनावे है ऐसा एक चित्रपट लिखाय मेला और उसके समीप समझने मनुष्य मेले दर्शन करबेकोमेरु श्रेष्ठी का पदमरुचि आया सो देख अति हर्षित भया और भगवान का दर्शन कर पीछे पाय बलेकी चित्रपटके और निरखकर मनमें विचारे है बैलको नमोकार मंत्र मैंने सुनायाथा सो खड़ा खड़ा देखेवे पुरुष रखवारे थे तिन जाय राजकुमार को कही सो सुनते ही बड़ी ऋद्धि से युक्त हाथी चढ़ा शीघ्रही अपने परम मित्रसे मिलने आया हायी से उतर जिनमंदिर में गया कि फिर बाहिर अाय पद्मरुचिको बैलकी ओर निहारता देखा राजकुमारने श्रेष्ठी के पुत्रको पूछी तुम बैलके पटकी ओर कहां निरखा हो तव For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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