________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobetirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
18४५०
पद्म भूमिगोचरा सब यही कहते भये हे देव प्रसन्न होय सौम्यता भजो हे नाथ अग्निसमान कठोर चित्त न करो पुराण, सीता सती है सीता अन्यथा नहीं अन्यथा जे महा पुरुषों की राणी हो । कद ही विकार रूप न हों।
सब प्रजा के लोक यही वचन कहते भये और ब्याकुल भये मोदी मोटी आंसूत्रों की बन्द डारते भये तम रामने कही तुम ऐसे दयावान् हो पहिले अपवाद क्यों उठाया रामने किंकरों को श्राज्ञा करी एक सीनसे हाथ चौखुटिया वापी खोदो और सूके ईधन चन्दन और कृष्णागुरु तिनकर भरो और अग्निसे जाज्वल्यमानकरी साक्षात् मत्युकास्वरूप कगे तव किंकरो'ने प्राज्ञा प्रमाण कुद्दालों से खोद अग्निवापिका बनाई और उसी रात्री कोमहेन्द्रोदय नामा उद्यान में सकलभूषण मुनिको पूर्व वैर के योग से महारौद्र विद्युद्धक्रनामा राक्षसी ने अत्यन्त उपसर्ग कीया सो मुनि अत्यंत उपसर्ग को जीत केवलज्ञान की प्राप्त भये। यह कथा सुन गौतमस्यामी से श्रेणिक ने पूछी । हे प्रभो राक्षसी के और मुनि के पूर्व बैर कहाँ ? तब गौतमस्वामी कहते भये । हे श्रेणिक सुन विजियार्द्ध गिरिकी उत्तर श्रेणी में महा शोभायमान गुंजमामा नगर वहां राजा सिंहविक्रम राणी श्री जिसके पुत्र सकलभूषण उसके स्त्री पाटसै तिन में मुख्य किरण मण्डला सो एक दिन उसने अपनी सौकिन के कहे से अपने मामा के पुत्र हेमशिख का रूप चित्रपट में लिखा सो सकलभूषण ने देख कोप कीया तव सब स्त्रियों ने कही यह हमने लिखा है इसका कोई दोष नहीं तव सकलभूषण कोप तज प्रसन्न भया एक दिन यह किरणमण्डला पतिनता पलि सहित सूती थी सो प्रमाद थकी घरडकर हेमशिख ऐसा नोम कहा सो यह तो निषि इसके हेमशिख भाई की वृद्धि और सकलभूषण ने कछ और भाव विधारा राणीसे कोपकर बैराश्य को प्राप्त भए और राणी किरणमंडला।
For Private and Personal Use Only