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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 'पद्म मदा नहीं मानों कल्पवृक्ष के समान शोभे हैं जहां वे फूलों के गुच्छे बन रही हैं जिन पर भ्रमर गुंजार करे हैं मानो यह बेलतो स्त्री है उन के जो पल्लव हैं सो हाथोंकी हथेली हैं और फलों के गुच्छे कुच हैं और भ्रमर नेत्र हैं वृक्षों से लग रहे हैं और ऐसेही तो सुन्दर पक्षी बोले हैं और ऐसेही मनोहर भ्रमण गुंजार करे हैं मानो परस्पर श्रालाप करे हैं जहां कैएक देश तो स्वर्ण समान कांतिको धरे हैं कैएक कमल समान कैएक वैडूर्य माणि समान है वे देंश नाना प्रकार के वृत्तों से मंडित हैं जिनको देख कर स्वर्ग भूमि भी नहीं रुचे है जहां देव क्रीड़ा करे हैं जहां हंस सारिस सूवा, पैना, कबूतर, कमेरी इत्यादि अनेक जाति के पक्षी क्रीड़ा करें हैं जहां जीवों को किसी प्रकार की बाधा नहीं नाना प्रकार के वृक्षों की छाया के मंडप रत्न स्वर्ण के अनेक निवास पुष्पों की अति मुगंधी ऐसे उपवन में सुन्दर शिला के ऊपर राजा जाय बिराजे और सेनाभी सकल बनमें उतरी हंसों,सारिसों मयूरोंके नाना प्रकार के शब्द सुने और फल फूलों की शोभा देखी सरोवरों में मीन केल करते देखे वृक्षों के फूल गिरें हैं और पक्षियों के शब्द होय रहे हैं सो मानों वह बन राजा के प्रावने से फूलों की वर्षा करे हैं और जयजयकार शब्द करें हैं नाना प्रकार के रत्नों से मंडित पृथ्वी मंडल की शोभा देख देख विद्याधरों का चित बहुत सुखी हुश्रा और नन्दनबन सारिखा वह बन उस में राजा श्रीकंठ ने क्रीड़ा करते बहुत बानर देखे जिनकी अनेक प्रकार की चेष्टा हैं राजा देखकर मनमें चितवने लगा कि तिर्यंच योनि के यह प्राणी मनुष्य समान लीला करें हैं जिनके हाथ पग सर्व श्राकार मनुष्य का सा है सो इनकी चेष्टा देख राजा थकित होय रहे निकटवर्ती पुरुषोंसे कहा कि इनको मेरे समीप । For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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