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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra पद्म www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir से कहिये एक ठौर नहीं चित्तजिसका तू कहा हमारे प्राणों को पीड़े है तू न देखे यह गर्भवती स्त्री खड़ी है पीड़ित है कोऊ कहे' टुक परे होहु कहा अचेतन होय रही है कुमारों को न देखनेदे हे यह दोनों रामदेव के कुमार रामदेव के समीप बैठे अष्टमी के चंद्रमासमान है ललाट जिनका कोई पूछे है इनमें लग कौन और अंकुश कौन यहतो दोनों तुल्यरूप भासे हैं तब कोई कहे है यह लाल वस्त्र पहिरे लवण है । और यह हरे वस्त्र पहिरे अंकुश है अहो धन्य सीता महापुण्यवती जिसने ऐसे पुत्रजने और कोई कहे है धन्य है वह स्त्री जिसने ऐसे वर पाए हैं एकाग्रचित्त भई स्त्री इत्यादि बार्ता करतीं भई इनके देखवे में है चित्त जिनकी प्रति भीड भई सो भीड में कर्णाभरणरूप सर्पकी डाढकर इसे गये हैं कपोल जिनके सोन जानती भई दगा है चित्त जिनका काहूकी कांची दाम जाती रही सो उसे खबर नहीं काहू के मोतियों के हार टूटे सो मोती बिखर रहें हैं। मानों कुमार ये सो ये पुष्पांजली बरसे हैं और केई एकों को नेत्रों की पलक नहीं लगे है सवारी दूर गई है तो भी उसी ओर देखे हैं नगरकी उत्तम स्त्री वेई भई वेलसा पुष्पवृष्टि करती भई सो पुष्पों का मकरंदकर मार्ग सुगंध होय रहा है श्रीराम प्रति शोभा को प्राप्त भये पुत्रसहित वन के चैत्यालयों का दर्शनकर अपने मंदिर आये कैसा है मंदिर महा मंगल कर पूर्ण है ऐसे अपने प्यारे जनोंके ग्रागनका उत्साह सुखरूप उसका वरणन कहां लग करिये पुण्य रूपी 1. सूर्य के प्रकाशकर फूला है मन कमल जिनका ऐसे मनुष्य वेईं अद्भुत सुख को पावें हैं ॥ इति १०३ पर्व पूर्ण अथानन्तर विभीषण सुग्रीव हनूमान् मिलकर राम से बिनती करते भये हे नाथ हम पर कृपा करो हमारी विनती मानों जानकी दुःख से तिष्ठे है इसलिये यहां लायवे की श्राज्ञा करो, तब राम दीर्घ उष्ण For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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