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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir करें इस लिये तुमभी चलो तब सीता पुत्रोंकी वधू संयुक्त भामण्डल के विमान में बैठ चस्ली राम लक्षमण पुराण महा क्रोधकर रथ घोटक गज पयादे देव विद्याधर तिनकर मण्डित समुद्र समान सेनालेय बाहिर निकसे और घोड़ों के रथ चढ़ाशनम्न महाप्रतापी मोतियों के हार कर शोभायमान है वचस्थल जिसका सो राम के संग अया, शोर कृत्तांतवक सब सेमा का अग्रसर भया जैसे इन्द्र की सेना का अग्रगामी हृदयकेशी नामा देव होय उसका रथ अत्यंत सोहता भया देवों के विमान समान जिसका रथ सो सेनापति चतुरंग सेना लिये अतुलबली अतिप्रतापी महाज्योति को धरे धनुष चढ़ाय वाण लिये चलाजाय है, जिसकी श्याम ध्वजा शत्रुवों से देखी न जाय उसके पीछे त्रिमन वन्हिशिख सिंहविक्रम दीर्घभुज सिहोदर सुमेरु बालखिल्य रौद्रभूत जिसके अष्टापदों के रथ वज्रकर्ण पथुमार दमन मृगेन्द्रहव इत्यादि पांचहजार नृपति कृतांतवक्र के संग अग्रगामी भए बन्दीजन बखाने हैं विरद जिनके और अनेक रघुवंशीकुमार देखे हैं अनेक रण जिन्हों ने शस्त्रों पर है दृष्टि जिनकी युद्धका है उत्साह जिनके, स्वामीभक्ति में तत्पर महाबलवस्त धरतीको कंपातेशीघही निकसे, कईएक नानाप्रकारके रथो परचढे कईयक पर्वत समान ऊंचे कारीघय समान हाथीयों परचढे, कईयक समुद्र की तुरंग समान चञ्चल तुरंग तिनपर चढ़े । इत्यादि अनेक वाहनों पर गढ़े यद्धको निकसे वादित्रों के शब्दकर करी है व्याप्त दशो दिशा जिन्होंनेवखतर पहिरे टोपधरेकोधकर संयुक्त है चित्त जिनका, तब लव अंकुश परसेना का शब्द सुन युद्ध को उद्यमी भए वजंघको प्राज्ञा करी, कुमार की सेना के लोक युद्धके उद्यमी थे ही । प्रलयकाल की अग्नि समान महाप्रचण्ड अंगदेश बंग देश नेपाल बर्वर पौंड मागध पारसैल स्यंघल कटिंग इत्यादि अनेक देशों के राजा रत्लाईको प्रादि दे. For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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