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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुराण पद्म विशाल कीर्ति का धारक है और अनेक अद्भुतकार्य किए हैं परन्तु तुम को वन में तजी सो भला न ॥६२७॥ कीया इसलिये हम शीघही राम लक्ष्मणका मानभंग करेंगे तुम विषादमतकरो, तब सीता कहतीभई हेपुत्र होवे तुम्हारे गुरुजन हैं उनसे विरोध योग्य नहीं । तुम चित्त सौम्य करो। महाविनयवन्त होय जाय कर पिताको प्रणाम करो यह ही नीतिका मार्ग है, तब पुत्र कहते भये हे मता हमारा पिता शत्रुभावको प्राप्त भया हम कैसे जाय प्रणाम करें और दीनतोके वचन कैसे कहें हमतो माता तुम्हारे पुत्रहैं इसलिये रण संग्राम में हमारा मरण होय तो होवो परन्तु योधावों से निन्द्य कायर वचन तो हम न सहें, यह बचन पुत्रों के सुन सीता मौन पकड़ रही परन्तु चित्तमें अति चिन्ता है दोनों कुमार स्नानकर भगवान्की पूजा कर मंगल पाठ पढ़ सिद्धों को नमस्कार कर माता को धीर्य बन्धाय प्रणाम करदोनों महामंगलरूपहाथीपर चढे मानों चान्द सूर्य गिरिक शिखरतिष्ठहैं अयोध्या ऊपर युद्धको उद्यमी भये जैसे रामलक्ष्मण लंका ऊपर उद्यमी भये थे इनका कूब सुन हज़ारों योधा पुण्डरीकपुर से निकसे सब ही योधा अपना अपना हल्ला देते भये वह जाने मेरी सेना अच्छी देखी वह जाने मेरी, महाकटक संयुक्त नित्य एक योजनका कूचकर सी पृथिवीकी रक्षा करते चले जायहैं किसीका कछ उजा नहीं पृथिवी नानाप्रकारके धान्य से शोभायमान है कुमारों का प्रताप आगे आगेबढ़ता जायहे मार्गके राजा भेटदे मिलेहैं, दस हजार बेलदारकुदाल लिए आगे आगे चलेजायहें और धरती ऊंची नीची को सम करें हैं और कल्हाडे हैं हाथ में जिनके वेभी आगे आगे चले जायहें और हाथी ऊंट भ सा बलद खच्चर खजानेके लदे जायहें, मन्त्री प्रागेाग चलेजांय हैं || ओर प्यादे हिरणों की नाईं उछलते जाय हैं और तुरंगों के असवार अति तेजी से चलेजाय, तुरंगोंकी। For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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