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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra पद्म पुराण १६२५ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अयोध्या केतीक दूर तब नारद ने कही यहां से एकसौ साठ योजन है जहां राम विराजे हैं तब दोनों कुमार बोले हम रामलक्षमण पर जायेंगे इस पृथ्वी में ऐसा कौन जिसकी हमारे आगे प्रबलता, नाग्व सों यह कह और वज्रजंघ से कही हे मामा सूझ देश सिंधु देश कलिंग देश इत्यादि देशों के राजावों को आज्ञापत्र पटावहु जो संग्राम का सव सरंजाम लेकर शीघ्र ही यावें हमारा अयोध्या की तरफ कूच है और हाथी समारो मदोन्मत्त केते और निर्मद केते और घोडे. बायु समान है बंग जिनका सो संग लेकर और जे योधा रणसंग्राम में विख्यात कभी पीठ न दिखावें तिनको लाग्लेवो, सब शस्त्र सम्हारो बक्तरों की मरम्मत करावो और युद्ध के नगारे दिवा वो ढोल बजावो शंखों के शब्द करावो सब सामंतों को युद्ध का विचार करो यह आज्ञा कर दोनों वीर मन में युद्धका निश्चय कर तिष्ठे मानों दोनों भाई इन्द्र ही हैं देवों समान जे देशपति राजा दिनको एकत्र करिव को उद्यमी भए तब राम लक्ष्मण पर कुमारों की सवारी सुन सीता रुदन करती भई. और सीता के समीप नारदको सिद्धार्थ कहता भया यह शोभनकार्य तुम क्यों प्रारंभा में उद्यम करिब का है उत्साह जिनके ऐसे तुम सो पिता और पुत्रों में क्यों विरोध का उद्यम किया व का भांति यह विरोध निवारो कुटुम्बद बना पंचित नहीं तब नारद ने कही मैं तो ऐसा कछू जान्या नहीं इन विनय किया में असीस दई कि तुम राम लक्ष्मण से हावो इन्होंनेसुन कर पूछी राम लक्ष्मण कौन ? मैं सब वृतांत कहा अभी तुम भय न करो सब नीकं ही होयगा अपना मन निश्चल करो कुमारीने सुनी कि माता रुदन करें है तब दोनों पुत्र माता के पासच्याए कहते भए ह मातः तुम रुदन क्यों करो हो कारण कहो तुम्हारी आज्ञा को कौन लोप हुन्दर वचन For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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