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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir को प्रणामकर समस्त विधि विषे प्रवीण घर से बाहिर अाए तब भले भले शकुन भये दोनोरथ चढ | पुराण ।६१६१ | सम्पूर्ण शस्त्रों कर युक्त शीघ्रगामी तुरंग जोड़ पृथुपरचले महा सेनाकर मंडित धनुषवाणही हैं सहाय जिनके महा पराक्रमी परम उदारचित्त संग्रामके अग्रेसर पांच दिवसमें बनजंघ पै जाय पहुंचे तब राजापृथु शत्रुवोंकी बडी सेनाबाई सुन आपभी बडीसेनासहित नगर से निकसा जिसके भाई मित्र पुत्र मामाके पुत्र सबही परम प्रीति पात्र और सूझ देश अंगदेश बंगदेश मगधदेश श्रादिअनेक देशों के बडे २ राजा तिन सहित रथ तुरंग हाथी पयादे बडे कटक सहित बज्रजंघ पर पाया तब बज्रजंघके सामन्त परसेनाके शब्द सुन युद्धको उद्यमी भये दोनों सेना समीपभई तब दोनो भाई लवणांकुशमहा उत्साहरूप परसेना में प्रवेश करते भये वेदोनों योधामहा कोपको प्राप्तभय अतिशीघहै परावर्त जिनका पर सेना रूप समुद्रमें क्रीडा करते सब ओर परसेना का निपात करते भये जैसे बिजली का चमत्कार इस ओर चमक उस ओर चमक उठे तैसे सब ओर मार मार करते भये शत्रुवों मे न सहा जाय पराक्रम जिनका धनुष पकडते बाण चलाते दृष्टि न पड़े और बाणों कर हते अनेक दृष्टि पड़ें नाना प्रकार के क्रूर वाण तिन कर वाहन सहित परसेना के अनेक योधा पीड़े पृथिती दुर्गम्य होय गई एक निमिष में पृथुकी सेना भागी जैसे सिंहके त्राससे मदोन्मत्त गजों के ममूह भागे एक क्षणमात्रमें पृथुको सेनारूपनदी लवणांकुशरूपसूर्य तिनकेवाणरूपकिरणोंसे शोककोप्राप्तभईकैयकमारपड यकभयो पीडित होय भागे, जैसे पाक से फूल उडे उडे फिरें राजा पृथु सहायरहित ग्विन्न होय भागने को उद्यमी भया तब दोनों भाई कहते भये हेप्टथु हम अाज्ञात कुल शील हमारा कुल कोई जाने नहीं तिनपै भागता न । For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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