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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir पराया 18001 पभ । भील महा म्लेछ कृत्य अकृत्यके भेद से रहित है मन जिनका सो तुझे पकड़भयंकरपल्ली मेंलेगयेहो-गेसो पहिले दुख से भी यह अत्यंतदुख है तू भयानक बन में मोविना महादुःखकोप्राप्त भईहोयगी अथवा तू खेदखिन्न महा अन्धेरी रात्री में बनकी रजकर मण्डित कहीं पड़ी होयगी सो कदाचित् तुझ हाथियों ने दाबी होय तो इस समान और अनथकहां औरगृध्ररीछ सिंह व्याघ्र प्रष्टापद इत्यादिदुष्ट जीवोंकर भराजोवन उस में कैसे निवास करेगी जहां मार्ग नहीं विकराल ढाढ के धरणहारे व्याघ महा क्षुधातुर तिन ऐगी अवस्था को प्राप्त करी होयगी जो कहिवे में न आवे अथवाअग्निकी ज्वाला के समूहकर जलताजोक्नउसमें अशुभ स्थानक को प्राप्तभई होयगी, अथवा सूर्यकी अत्यंतदुस्सह किरण तिनके आतापकर लाखकी न्यांई पिगलगई होयगी, छायामें जायवे की नहीं है शक्तिजिसकी अथवा शोभायमान शील की घरणहारी मो निर्दई में मन कर हृदय फटकर मृत्युको प्राप्तभई होयगी पहिले जैसेरत्नजटीनेमोहे सीताके कुशल की वार्ता प्राय कही थी तैसे कोई अवभी कहे, हाय प्रिये पतिव्रते विवेकवती सुखरूपिणी त कहां गई कहां तिष्ठेगी क्या करेगी अहो कृतांतवक्र कह क्या तैने सचमुच बन ही में डारी, जो कहुं शुभठौर मेली होय तोतेरे मुखरूप चन्द्रसे अमृतरूप वचन खिरें जबऐसा कहातब सेनापतिने लज्जाके भारकर नीचा मुखकिया प्रभा रहित हो गया कछू कह न सके अति व्याकुल भया मौन गह रहा तब रामने जानी सत्यही यह सीता को भयंकर बन में डार पाया तब मूर्खाको प्राप्त होय रामगिरे बहुत बेरमें नीठि २ सचेतभए तब लक्षमण पाए अंतःकरण विषे सोच को घरे कहते भए हे देव क्यों ब्याकुल भये हो धीर्यको अंगीकार करो जोपूर्वकर्म उपार्जा उसका फल भाय प्राप्तभया और सकल लोक को अशुभके उदयकर दुःख । For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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