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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 11900 कर सकल बस्तुसे विरक्त होय मुनिके बतधार कैएक मोचको गये कईएक स्वर्गमें देवता भये, उस बंशमें एक राजा रक्ष भर उनके राणी मनोवेगाउसके पुत्र राक्षस बामा राजा भये तिनके नामसे राक्षस बंग कहाया यह विद्याधर मनुष्यहें राक्षस योनि नहीं, राजा राक्षसके राणी सुप्रभा उसके दो पुत्र भए अादित्यगति नामा बड़ा पुत्र और छोटा वृहत्कीर्ति, यह दोनों चन्द्र सूर्य समान अन्याय रूपबंध कार को दूर करते भये, उन पुत्रों को राज देय राजा राक्षस मुनि होय देवलोक गये राजा आदित्यगति राज्य कर और छोटा भाई युवराज हुवा बड़े भाई की स्त्री सदनपद्मा और छोटे भाईकी स्त्री पुष्पनखा थी आदित्यगति का पुत्र भीमप्रभ भया उसकी हजार राणी देवांगना समान और एकसौ अाठ पुत्र भये जो पृथ्वी के स्थम्भ होते भए उनमें बड़े पुत्र को राज्य देय भीमप्रभ वैराग्य को प्राप्त होय परमपद को प्राप्त भए पूर्व राक्षसों के इन्द्र भीममुभीम ने कृपा कर मेघवाहन को रात्तस द्वीप दिया था सो मेघवाहन के बंश में बड़े २ गजा राक्षस द्वीप के रक्षक भये भीमप्रभका बड़ा पुत्र पूजार्ह सो अपने पुत्र जितभास्कर को राज्य देय मुनि भये और जितभास्कर संपरकीति नामा पुत्र को राज्य देय मुनि भए और संपरकीर्ति सुग्रीव नामा पुत्र को राज्य देय मुनि भये सुग्रीव हरिग्रीव को राज्य देय उग्रतप कर देवलोक गया और हरिग्रीव श्रीग्रीव को राज्य देय वैराग्य को प्राप्त भये और श्रीग्रीव सुमुख नामा पुत्रको राज्य देय मुनि भये अपने बडोंहीका मार्ग अंगीकार किया और सुमुख भी सुब्यक्त को राज देय श्राप परम ऋषि भए और सुव्यक्त अमृतवेग को राज देय वैरागी भये और अमृतवेग भानुगत को राज देय यती भये और वे द्विचिन्तागत को राज देकर निश्चिन्त For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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